संगीत हम सभी को लुभाता है। कहा जाता है कि संगीत के पीछे खुदा चलता है। संगीत की महत्ता इसी बात से पता चल जाती है। शायद ही कोई व्यक्ति होगा, जिसे संगीत पसंद न हो। आइए संगीत के बारे में हम जानते हैं।
भारतीय संगीत भारतीय संगीत प्राचीनकाल से ही सुना जाता रहा है। इस संगीत का मूल स्रोत वेदों को माना जाता है। हिन्दू परंपरानुसार ब्रह्मा ने नारद मुनि को संगीत वरदान स्वरूप दिया था।
संगीत के स्वर भारतीय संगीत के सात शुद्ध स्वर होते हैं। ये हैं- षड्ज (सा), ऋषभ (रे), गंधार (ग), मध्यम (म), पंचम (प), धैवत (ध), निषाद (नी)।
इन सात स्वरों के तालमेल से संगीत की रचना होती है। संगीत बिन जग सूना अगर कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। इससे सुनने से मन-मस्तिष्क पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
तीन प्रकार भारतीय संगीत को हम तीन भागों में बांट सकते हैं। ये हैं- शास्त्रीय संगीत, उपशास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत। इनमें से भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख पद्धतियां हिन्दुस्तानी संगीत और कर्नाटक संगीत हैं।
उपशास्त्रीय संगीत में ठुमरी, टप्पा, डोरी, कजरी आदि आते हैं। सुगम संगीत में भजन, भारतीय फिल्म संगीत, ग़ज़ल, भारतीय पॉप संगीत, लोक संगीत आदि आते हैं।
भारतीय संगीतकारों का योगदान
भारतीय संगीत को समुन्नत करने में संगीतकारों का अमूल्य योगदान रहा है। इनमें से इनके नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, जैसे नौशाद, शंकर-जयकिशन, रवि, मदनमोहन, सी. रामचन्द्र, खय्याम, एआर रहमान, अनिल बिश्वास, रोशन आदि। इनके अलावा भी अनेक नामीगिरामी तथा गुमनाम संगीतकारों ने भारतीय संगीत को समुन्नत किया है। यह परंपरा आज भी जारी है।
भारतीय संगीत तो अनमोल खजाना है। इसमें जितना डूबा जाए उतना ही कम है। इस रस का रसास्वादन करने हेतु सिर्फ अपने कानों को मांजना भर होता है। संगीत में जो जितना डूबता है वह उतना ही रसास्वादन करता है।