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पजल : पसंदीदा दिमागी खुराक

13 जुलाई पजल डे विशेष

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हमें फॉलो करें पजल : पसंदीदा दिमागी खुराक
अच्छा लगता है पजल में उलझन
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दिमागी कसरत भला किसे अच्छी लगती, लेकिन कुछ लोगों को इस कसरत से बेहद लगाव होता है और वह वक्त मिलते ही इस खास तरह की माथापच्ची में जुट जाते हैं। पजल को ऐसे लोगों की पसंदीदा दिमागी खुराक कहा जा सकता है।

पजल कई तरह के होते हैं। इनमें आप वर्ग पहेली, रूबिक क्यूब से लेकर सुडोकू तक को शामिल कर सकते हैं। इनकी खासियत यह होती है कि ये आपको मानसिक मशक्कत करने के लिए मजबूर करते हैं और आप बिना कोई शिकायत किए इनके खूबसूरत झाँसे में फँस जाते हैं।

पजल में दिलचस्पी रखने वाले मयंक मोटवानी बताते हैं ‘रूबिक क्यूब' पहली बार हंगरी के एक शिल्पकार और वास्तुकला के प्राध्यापक एरनो रूबिक ने 1974 में तैयार किया था। इसे ‘मैजिक क्यूब’ कहा जाता है लेकिन रूबिक के नाम पर यह रूबिक क्यूब कहलाने लगा। रूबिक ने 1980 में इसे आइडियल टॉयज कंपनी को बेचने के लिए लाइसेंस लिया।

जनवरी 2009 तक दुनिया भर में 35 करोड़ से अधिक रूबिक क्यूब बेचे जा चुके थे और यह सर्वाधिक बिक्री वाला पजल गेम बन चुका था।’ मयंक के अनुसार, इसमें 3. 3 के अनुपात में कई रंगों वाले खाने होते हैं। इसकी सभी छह सतहों में छोटे छोटे 9. 9 खाने होते हैं जिनमें नौ स्टीकर लगे होते हैं। इनमें से छह स्टीकर परंपरागत सफेद, लाल, नीला, नारंगी, हरे और पीले रंग के होते हैं। इन खानों को घुमा-घुमा कर एक ही रंग के खानों की पंक्ति बनानी होती है या मनचाहे तरीके से जमाना पड़ता है।

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रूबिक क्यूब का 3. 3. 3 संस्करण 2010 में अपनी 30वीं सालगिरह मना रहा है। कुछ देशों में 13 जुलाई को पजल डे मनाया जाता है। इस दिन की शुरूआत कैसे हुई, इसके बारे में खास जानकारी नहीं मिलती लेकिन कुछ यूरोपीय देशों में इस दिन का खास महत्व होता है। वैसे अब पजल दुनिया के सभी देशों में पहुँच चुके हैं और लोगों को अपना दीवाना बना चुके हैं।

पजल की बात हो और जिग सॉ पजल का जिक्र न हो, ऐसा कैसे हो सकता है। पहला जिग सॉ 1760 में एक ब्रिटिश नक्शानवीस जॉन स्पिल्सबरी ने बनाया था। भूगोल के विद्यार्थियों को पढ़ाने के लिए उसने दुनिया का नक्शा बनाया और प्रत्येक देश को काट कर अलग कर दिया। विद्यार्थियों को इसे व्यवस्थित करना था। यह बहुत पसंद किया गया। धीरे धीरे कई तरह के पजल तैयार किए गए। इनमें से एक है वर्ग पहेली।

फेंगशुई विशेषज्ञ निधि राघव का दिन वर्ग पहेली हल किए बिना नहीं गुजरता। वह कहती हैं कि वर्ग पहेली 9. 9 खड़े और आड़े खानों वाला एक गेम है। इसमें कुछ खानों में एक एक अक्षर लिखे होते हैं। इन अक्षरों में तारतम्य बनाते हुए शब्द पूरे करने होते हैं। वर्ग पहेली हिन्दी और अंग्रेजी दोनों में होती है।

सुडोकू का इतिहास दिलचस्प है। ‘सु’ का अर्थ जापान में संख्या और ‘डोकू’ का मतलब पजल बोर्ड पर वह स्थान होता है जहाँ प्रत्येक नंबर फिट किया जा सकता है। इसका नाम भले ही जापानी हो लेकिन इसकी शुरूआत यूरोप और अमेरिका में हुई थी।

18वीं सदी में स्विस गणितज्ञ लियोनहार्ड यूलर ने ‘लातिन स्क्वेयर्स’ की अवधारणा विकसित की जहाँ एक नंबर एक कतार में केवल एक ही बार आता है। चाहे वह सीधी कतार हो या आड़ी। इसी अवधारणा ने बाद में अंकों के खेल सुडोकू का रूप ले लिया।

हालाँकि सुडोकू गणित की माथा पच्ची नहीं है लेकिन यह अंकों का कौशल जरूर माना जा सकता है। इसमें एक से नौ तक की संख्या को प्रत्येक खाने में रखना पड़ता है। ये अंक किसी भी क्रम में लगाए जा सकते हैं लेकिन खानों की किसी भी पंक्ति में अंकों का दोहराव नहीं होना चाहिए। (भाषा)

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