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1 अप्रैल : क्यों मनाते हैं मूर्ख दिवस? यहां है जवाब

हमें फॉलो करें 1 अप्रैल : क्यों मनाते हैं मूर्ख दिवस? यहां है जवाब
भई, 1 अप्रैल दिन ही कुछ ऐसा है, कि सभी एक दूसरे को मूर्ख बनाना चाहता है, लेकिन बनना कोई भी नहीं चाहता। तभी तो इस दिन लोग गंभीर बातों को लेकर भी कुछ ज्यादा ही सतर्क होते हैं, कि कहीं कोई हमें उल्लू न बना दे। आखिर क्यों होता है ऐसा, और न जाने कब से शुरु हुआ 1 अप्रैल को यूं मूर्ख बनाने का चलन... जानिए यहां ... 
1 अप्रैल यानि अप्रैल फूल। 1 अप्रैल का दिन दुनिया भर में मूर्ख दिवस के रूप में मनाया जाता है। हर कोई अपने आस-पास के लोगों को उल्लू बनाने अर्थात मूर्ख बनाने का प्रयास करता है। वहीं हर कोई मूर्ख बनने से बचना भी चाहता है, इसलिए इस दिन मिलने वाली किसी भी सूचना या बात को अक्सर बिना जांच पड़ताल के गंभीरता से न हीं लिया जाता। अप्रैल फूल आखि‍र क्यों और कब से मनाया जाता है, जानिए -  
 
अप्रैल फूल डे (कभी-कभी ऑल फूल डे) हर वर्ष 1 अप्रैल को प्रेक्टिकल जोक्स (शरारतें) और अफवाहें फैला कर मनाया जाता है। जोक्स और शरारतें जिनके साथ की जाती हैं उन्हें अप्रैल फूल या अप्रैलमूर्ख कहा जाता है। लोग अपनी शरारतों का खुलासा, अप्रैल फूल चिल्ला कर करते हैं।
 

कब से मनाया जाता है अप्रैल फूल? 
19वीं शताब्दी से, अप्रैलफूल प्रचलन में है। हालांकि इस दिन कोई छुट्टी नही होती। अंग्रेजी साहित्य के पिता ज्योफ्री चौसर की कैंटरबरी टेल्स (1392) ऐसा पहला ग्रंथ है जहां 1 अप्रैलऔर बेवकूफी के बीच संबंध स्थापित किया गया था।
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अप्रैल फूल के पीछे कारण
अपने पहचान वालों को बिना अधिक परेशान किए, मजाक के लिए शरारतें करने का यह उत्सव हर देश में मनाया जाता है। माना जाता है कि अप्रैलफूल मनाने की प्रेरणा रोमन त्योहार हिलेरिया से ली गई है। इसके अलावा भारतीय त्योहार होली और मध्यकाल का फीस्ट ऑफ फूल (बेवकूफों की दावत) भी इस त्योहार की प्रेरणा माने जाते हैं। 
 
चौसर की कैंटरबरी टेल्स (1392) एक कहानियों का संग्रह थी। उसमें एक कहानी 'नन की प्रीस्ट की कहानी' मार्च के 30 दिन और 2 दिन में सेट थी। जिसे प्रिटिंग की गलती समझा जाता है और विद्वानों के हिसाब से, चौसर ने असल में मार्च खत्म होने के बाद के 32 दिन लिखे। इसी कहानी में, एक घमंडी मुर्गे को एक चालक लोमड़ी ने बेवकूफ बनाया था। 
 
1539 में फ्लेमिश कवि एडवर्ड डे डेने ने एक ऐसे ऑफिसर के बारे में लिखा जिसने अपने नौकरों को एक बेवकूफी की यात्रा पर 1 अप्रैलको भेजा था। 1968 में इस दिन को जॉन औब्रे ने मूर्खों का छुट्टी का दिन कहा क्योंकि, 1 अप्रैलको बहुत से लोगों को बेवकूफ बनाकर, लंदन के टॉवर पर एकत्रित किया गया था। 

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