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90s के बचपन की वो यादगार चीज़ें...

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वो बचपन की यादें

प्रस्तुति : निवेदिता भारती 

रॉक-पेपर-सीजर, रिंगा रिंगा रोजेज, छोटा भीम, डोरोमोन, एंग्री बर्ड और टेम्पल रन; कुछ नाम और आज की जनरेशन का बचपन आपके सामने। अगर आपने नब्बे के दशक में बचपन गुजारा है तो आंखों के आगे कुछ अलग ही दृश्य गुजर जाता है। आज जहां बहुत छोटे बच्चे हाथ में मोबाइल लिए और कम्प्यूटर के सामने बैठे नजर आते हैं, नब्बे के दशक में बच्चे कागज की नाव बनाकर उसे पानी में तैराते हुए दिखाई दे जाते थे। आज के बच्चों और 90 के दशक के बच्चों के बचपन में बहुत फर्क है। देखते हैं कैसा रहा है 90 के दशक के बच्चों का बचपन। 
सभी के लिए बचपन ऐसा समय होता है जो पूरी जिंदगी सुहानी याद बनकर दिमाग में बस जाता है। आज टेक्नोलॉजी से खेलने वाले बच्चों के बचपन को देखने पर नब्बे के दशक में टेपरिकार्डर की केसैट में पेन डालकर उसकी फंसी हुई रील को ठीक करना आपको आज भी गुदगुदा देगा। आइए कुछ ऐसी यादें ताजा करते हैं जो नब्बे के दशक में बीते बेहतरीन पलों में गुजरी थी और याद करते हैं याद ऐसे सामान की जिनके आसपास 90 के दशक में बच्चों का बचपन बीता है। 
 
ऑडियो केसैट : गानों का शौक हमसे क्या क्या नहीं करता था। बचपन में गानों के लिए जितने ज्यादा जतन नब्बे के दशक में करने पड़ते थे आज उतनी ही अधिक हंसी आती है। उस समय टेप रिकॉर्डर पर गाने सुनने होते थे जिनमें केसैट चलती थी। केसैट में पतली और बहुत लंबी रील हुआ करती थी जो अक्सर केसैट के अंदर फंस जाती थी। यहां नब्बे के दशक के बच्चों की प्राकृतिक इंजीनियरिंग गुण का नजारा लगभग हर घर में मिलता था क्योंकि पैन लेकर इस रील को अंदर ठीक करना तो उन्हें ही आता था। पापा भी इसमें सिद्धहस्त होते थे और मिलजुल कर ही मिशन खत्म होता था।
अगले पन्ने पर, याद आता है डायल वाला फोन...
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लैंडलाइन का लॉक : जितने लोग उतने मोबाइल वाले जमाने में जब आपको याद आए लैंडलाइन का टाइम तो चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट फैल जाती है। मुस्कुराहट और लंबी हो जाती है अगर आपके पैरेंट्स उसमें ताला लगाते थे। फिर बच्चों की होशियारी और मम्मी-पापा के लगाए ताले में होता था मुकाबला और मजा तब आता था जब बच्चे ताले से यह जंग जीत जाते थे। जहां माता-पिता यह समझते रहते कि फोन का तो ताला लगा है आप नई नई ट्रिक्स लगाकर जहां चाहे बात कर लेते थे।
अगले पन्ने पर, जब सडकों पर लग जाता था कर्फ्यू ...  
 
 


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रामायण: किसी बात पर एक राय हो या न हो पर रामायण तो सबको पसंद थी। हर हफ्ते रविवार को छुट्टी का दिन होने के अलावा खास बनाने का श्रेय रामायण को भी जाता है। जहां घर के बुजुर्ग साक्षात रामायण को देखकर अभिभूत थे वहीं  घर के बच्चे राम को असली भगवान राम और सीता को असली माता सीता समझते थे। रामायण इतना लोकप्रिय धारावाहिक था कि सड़कें खाली हो जाती थीं। ऐसे में लाइट चली जाए तो सारे घरवाले इतने गुस्से में आ जाते थे चारों तरफ से बिजली विभाग के लिए गालियों की बौछार होने लगती थी। अगले पन्ने पर, ये था बच्चों का असली हीरो ... 

मोगली: रामायण से अपना मनोरंजन करने वाले बच्चों की लाइफ में जब उनके असली हीरो मोगली ने कदम रखा तो मानों जिंदगी में बहार छा गई। भारत में एनिमेशन की शुरुआत और गुलजार के लिखे गाने के साथ मोगली बच्चों के बीच जाना पहचाना नाम बन गया। उस समय बच्चों में  चड्डी पहनके फूल खिला है गाने की लोकप्रियता किसी भी सुपर हिट गाने से कहीं ज्यादा थी।  
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मैग्नेटिक पेंसिल बॉक्स: स्कूल और पढ़ाई जैसी बुरे कामों के बीच बच्चों का मन बहलाने के लिए मैग्नेटिक पैंसिल बॉक्स मौजूद था। बटन प्रेस करने पर खुलने वाला मैग्नेटिक पेंसिल बॉक्स बच्चों के छोटे छोटे सामान जैसे रबर, शार्पनर, पैंसिलों को सुरक्षित रखने की जगह था। आज हम जितना बैंक लॉकर को अपने सामान के लिए सुरक्षित मानते हैं बच्चों में मैग्नेटिक पैंसिल बॉक्स की अहमियत इससे कुछ कम नहीं थी।
अगले पन्ने पर, जापानी टेक्नोलॉजी से बनी बच्चों के लिए खास चीज... 

इंटरनेट एक्सप्लोरर में अचानक ट्रबल आना: नब्बे के दशक में नए नए शुरू हुए कम्प्यूटर के उपयोग की खुशी के बीच में इंटरनेट एक्सप्लोरर का अचानक किसी प्रोबलम से एंकाउंटर करना और यह मैसेज देने वाले आयताकार बॉक्स के अनगिनत क्लोन स्क्रीन पर बनकर कम्प्यूटर शट डाउन की डिमांड बहुत चिढ़ पैदा करती थी। 
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नटराज शार्पनर में जापानी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल: पैंसिल का इस्तेमाल हो और नटरान ब्रांड के जिक्र बिना हर चीज अधूरी है। नटराज के शार्पनर में जापानी टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया हो या नही परंतु बच्चों के लिए यह किसी समुराई तलवार से कम खास नहीं था।
अगले पन्ने पर, जानिए किसकी थी कर बुरा हो भला वाली किस्मत... 


केसैट कलेक्शन: ऐसा समय जब इंटरनेट की शुरूआत नहीं हुई थी तब गाने सुनने के लिए केसैट का कलेक्शन हर घर में मौजूद था। खास तरह के स्टैंड और अलमारी के शेल्फ में गानों और भजनों की केसैट सभी के यहां हुआ करते थे। कुछ स्टैंड ऐसे थे जिनमें कवर सहित केसैट रखीं रहती थीं तो कुछ में बिना कवर के। इसके अलावा हर घर में केसैट रखने के लिए एक खास पैटर्न का अपनाया जाता था वह गानों का अल्फाबेटिकल ऑर्डर हो सकता है, फिल्मों के नाम या उनके रिलीज होने का साल। 
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कॉमिक्स: गर्मियों की छुट्टियां यानी कॉमिक्स पढ़ने की छूट। नब्बे के दशक में अकेला दूरदर्शन बच्चों के मनोरंजन के लिए नाकाफी साबित होता था। यह वह दौर था जब न केवल प्रसारण का समय कम था बल्कि लाइट जाने की समस्या भी बहुत आम थी। ऐसे में बच्चों के भरपूर मनोरंजन के लिए कॉमिक्स सारी गर्मी साथ निभाती थीं। चाहे चाचा चौधरी का कम्प्यूटर से तेज दिमाग हो या पिंकी के नटखट किस्से। साबू की शक्ति और बांकेलाल की कर बुरा हो भला वाली किस्मत। ऐसी जोरदार कहानियां की घंटों बच्चे कॉमिक्स पढ़ते रहते थे। दोस्ती में कॉमिक्स शेयरिंग का मजा कोई नब्बे के दशक में पले लोगों से पूछे।
अगले पन्ने पर, क्या हुआ परिणाम जब बच्चे के हाथ लगी बंदूक ... 

टॉय गन: आज जब बच्चे वर्चुअल वर्ल्ड में किसी को भी गोली मार सकते हैं नब्बे के दशक के बच्चों खिलौने की बंदूक से खुद को जेम्स बांड समझते थे। अक्सर गुड़ियाओं के साथ पारिवारिक खेल खेलने वाली लड़कियों से बिल्कुल अलग उस दौर के लड़के खिलौने की बंदूक के साथ चोर पुलिस जैसे खेलों में डूबे रहते थे। इसके अलावा दिवाली पर स्पेशल गन मिलती थी जिनमें चिटपिटी रखकर फोड़ना तो क्या कहने। 
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टीवी में खराबी आने पर स्क्रीन पर रंगीन पट्टियां आना: नब्बे के दशक में टीवी अक्सर खराब होतीं थीं। टीवी खराब होने पर चौड़ी रंगीन पट्टियां या झिलमिल होना जिससे साथ गंदी सी आवाज आना बहुत आम था। इसे ठीक करने के उपायों में टीवी पर थप्पड़ पड़ना आम बात थी। 
अगले पन्ने पर, इनकी अजीब हरकतों के बावजूद रहे सबके चहेते...  
 
 

टॉम एंड जेरी: एनीमेटेड कार्यक्रमों की अगली कड़ी में टॉम एंड जेरी तो आज भी बच्चों की खास पसंद बना हुआ है। ये कार्टून केरेक्टर्स बिना संवाद के भी बच्चों को हंसाने में बरसों से कामयाब रहे हैं। नब्बे के दशक के बच्चे टॉम एंड जेरी के बीज की अजीब हरकतों पर जबरदस्त फिदा थे और इनके एपीसोड देखना नहीं भूलते थे। 
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धारावाहिकों की श्रृंखला: नब्बे का दशक टीवी का सबसे बेहतरीन समय था। अभी अपने बच्चों के साथ सास-बहु डेलीसोप देखकर मनोरंजन की जबरदस्त कमी महसूस कर रहे लोग दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले धारावाहिक देख भाई देख, अमर चित्रकथा, चित्रहार, रंगोली, व्योमकेश बक्शी, महाभारत, कैप्टन व्योम, सुराग, तहकीकात, विक्रम और बेताल, अलिफ लैला, द स्वार्ड ऑफ टीपू सुल्तान, चंद्रकांता और चाणक्य जैसे धारावाहिक दर्शकों को बांधे रखते थे। अगले एपीसोड के लिए हफ्ते भर इंतजार के बाद जबरदस्त कहानी के दम पर ये धारावाहिक हर उम्र के लोगों को भरपूर मनोरंजन देने के लिए काफी थे।  
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अगले पन्ने पर, ट्रेनों में बच्चों को चुप रखने के लिए अपनाया गया यह तरीका ... 

वीडियो गेम: कॉमिक्स की दुनिया में नए नए नजारे लेने वाले बच्चों के हाथ जब वीडियो गेम्स के रिमोट लगे तो मानो दुनिया ही बदल गई। विभिन्न प्रकार की चुनौतियों से भरे इन गेम्स ने स्पर्धा का नया दौर शुरू किया। मजे के साथ खेल के नए नए स्तर पर पहुंचना परीक्षा परिणाम घोषित होने जैसा आंदोलित कर जाता था। 
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फ्रूटी: नब्बे के दशक की यादगार चीजों में फ्रूटी को भूलना नामुमकिन है। हरे कागज के पैक पर दो रसीले आम और वैसा ही मजा। उस पर स्ट्रा से धीरे धीरे फ्रूटी पीते बच्चे ट्रेनों में और अन्य जगहों पर शांति कायम रखने की फीस के तौर पर अक्सर फ्रूटी के साथ देखे जा सकते थे। जब तक पैक में फ्रूटी तब तक पूरी शांति। बच्चों के अलावा इसका लाजवाब स्वाद बड़ों में भी इसकी लोकप्रियता की वजह था। 
 
पैंसिल नोक से बनी पैंसिल: नब्बे के दशक में पैंसिल के नोक से बनी प्लास्टिक की पैंसिल को उच्च वर्ग की निशानी समझा जाता था। बहुत ही नाजुक लगने वाली यह पैंसिल ट्रांसपरेंट प्लास्टिक में मिलती थी। इन पैंसिल के पास होने से इज्जत में कई गुना बढ़ोत्तरी हो जाती थी।
अगले पन्ने पर, स्कूल खुलने पर करना पड़ा यह भी... 
 
 

पान पसंद: टीवी पर मजेदार विज्ञापन, कम कीमत और पान जैसे स्वाद के कारण पान पसंद सभी के द्वारा पसंद की जाती थी। चॉकलेट स्वाद से अलग, पान पसंद देर तक मजा देती थी। 
 
किताबों पर कवर चढाना: स्कूल खुलने के बाद किताबों पर ब्राउन पेपर से कवर चढ़ाना, नेमचिट चिपकाना और सारी डिटेल डालना सबसे पहला काम होता था। इस बोरिंग काम से निपटने के बाद दूसरे नंबर पर हिन्दी और अंग्रेजी की किताबों में से सारी कहानियां पढ़ डालने का मजा ही और था। 
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पेप्सी: रंगबिरंगी, प्लास्टिक की थैली के लंबे पैक में भरी, आरेंज, मैंगों, कोला और अन्य फ्लैवर वाली पेप्सी बच्चों को खासी पसंद थी। पचास पैसे में मिलने वाली पेप्सी अधिकतर बच्चों के पास देखी जा सकती थी। पैरेंट्स के लाख मना करने के बावजूद बच्चों ने पेप्सी पीना नहीं छोड़ा। 
 
टेक्नोलॉजी के बढ़ चुके उपयोग के बाद नब्बे के दशक में बच्चे रहे और अब युवा हो चुके लोगों के लिए इन खास चीजों से जुड़े अनगिनत पल हैं जिन्हें याद करना मजेदार है। इन सभी चीजों ने बचपन को बहुत खास बनाया और हमेशा के लिए दिमाग में बस चुकी हैं। 
 

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