क्यों मनाया जाता है world cartoonist day, जानिए इस दिन का इतिहास
जानिए अखबार में प्रकाशित दुनिया के पहले कार्टून की कहानी
प्रथमेश व्यास
बड़े-बड़े अनुच्छेदों में छोटे-छोटे अक्षरों में लिखी गई अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं की खबरों को पढ़ने में आजकल भले ही लोगों की रूचि उतनी ना रही हो। लेकिन, जहां कोई कार्टून छपा हुआ दिख जाए, वहां ध्यान अपने आप चले जाता है। एक कार्टूनिस्ट अपनी सूझ-बूझ और रचनात्मकता से कार्टून के रूप में ऐसा आकर्षण पैदा करता है, जिससे पाठक को उसका पूरा उद्देश्य झट से समझ में आ जाता है। एक प्रभावी कार्टून कई वर्षों पाठकों के मानस पटल का छाया रहता है।
सालों बाद जब किसी पुराने मुद्दे की बात होती है, तो पाठक को उससे संबंधित कार्टून याद आ जाता है। किसी लेखक को अपनी बात पाठकों तक पहुंचाने के लिए कई सारे पन्ने और स्याही खर्च करना पड़ता है। लेकिन एक कार्टूनिस्ट उसी बात को छोटी-सी जगह में बनाए गए चित्र के माध्यम से पंहुचा देता है। इन्ही कार्टूनिस्ट्स की महत्ता को याद करने के लिए हर वर्ष 5 मई को पूरी दुनिया में 'नेशनल कार्टूनिस्ट डे' के रूप में मनाया जाता है।
कार्टूनिस्ट डे' का इतिहास -
बात है 5 मई 1895 की, जब न्यूयॉर्क के संडे मॉर्निंग पेपर 'न्यूयॉर्क वर्ल्ड' ने अपने पाठकों को एक सरप्राइज दिया। इस अखबार ने एक बड़े कान वाले छोटे लड़के का रंगीन चित्र जारी किया, जिसके चेहरे पर एक शरारती मुस्कराहट थी। अमेरिकी कॉमिक स्ट्रिप लेखक रिचर्ड आउटकॉल्ट द्वारा बनाई गई इस कॉमिक स्ट्रिप को 'होगन्स एले' कहा गया और बाद में इसका नाम बदलकर 'द येलो किड' कर दिया गया। ये दुनिता का पहला व्यवसायिक रूप से सफल कार्टून बना, जिसे बाद में होर्डिंग्स, पोस्टकार्ड्स आदि पर छापा जाने लगा। 'द येलो किड' की वजह से कार्टून एक लोकप्रिय समाचार पत्र की विशेषता बन गए और समय के साथ प्रतिभाशाली कार्टूनिस्टों और चित्रकारों की मांग भी बढ़ती गई। इसलिए तब से इस दिन को 'नेशनल कार्टूनिस्ट डे' के रूप में मनाया जाने लगा।
आज किसी भी राजनीतिक घटना पर कटाक्ष करने से लेकर समाज की बुराइयों को चित्रित करने के लिए और तो और लोगों को उनकी उपलब्धियों के लिए बधाई देने के लिए भी कार्टून को एक प्रभावशाली माध्यम के रूप में देखा जाता है।