राम मनोहर लोहिया जिनका नाम लेते हैं उन नेताओं की छवि मन में उभरती है जिन्होंने इस राजनीति को बिना राजनीति में आए ही सही राजनीति चलाने का संकल्प लिया था। सत्ता परिवर्तन और समाजवाद के सबसे बड़े परिचायक है राम मनोहर लोहिया। उनका जीवन सादगी भरा रहा। गरीबी और अमीरी की बढ़ती खाई को पाटने में उनका योगदान काफी अहम रहा है।
अपने मानववादी दृष्टिकोण से वे चाहते थे कि जाति, वंश, धर्म, लिंग, संस्कृति और संपत्ति के भेदभाव से मुक्त न्याय पर आधारित सामाजिक न्याय की स्थापना की जाए। इस तरह की व्यवस्था को अपनाने के लिए वह क्रांतिकारी व्यवस्था को अपनाना जरूर समझते थे। सामाजिक बदलाव के लिए आम जनता में में तड़प पैदा होना जरूरी है। तभी सामाजिक परिवर्तन के लिए पृष्ठभूमि तैयार हो सकेगी। वे भले ही दुनिया को अलविदा कह चुके हैं लेकिन उनके विचार आज भी जीवित है। राम मनोहर लोहिया का 12 अक्टूबर को 57 साल की उम्र में देहांत हो गया था। उनकी पुण्यतिथि पर जानते हैं उनके बारे में विशेष बातें -
- राम मनोहर लोहिया का जन्म 23 मार्च 1910 को यूपी के फैजाबाद जिले में हुआ था। लोहिया के पिता जी पेशे से शिक्षक थे और मां गृहिणी थी। ढाई साल की उम्र में ही राम मनोहर के सिर से मां का साया उठ गया था। पिता जी गांधी जी के अनुयायी थे। वे अक्सर गांधी जी से मिलने जाते थे तो कभी अपने साथ राम को भी ले जाते थे। इस वजह से राम मनोहर पर गांधी जी का काफी असर रहा।
- राम मनोहर की शुरुआती पढ़ाई टंडन स्कूल से हुई थी। 1927 में काशी यूनिवर्सिटी से 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद वह जर्मनी चले गए। जहां उन्होंने दो साल में ही अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट की डिग्री ली।
- गांधी जी का राम मनोहर पर बहुत प्रभाव रहा। वह सिर्फ 10 साल की उम्र में ही सत्याग्रह से जुड़ गए थे। आजादी के आंदोलन में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1935 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे जवाहर लाल नेहरू ने राम मनोहर को कांग्रेस का महासचिव नियुक्त किया।
- अपने लेख की वजह से राम मनोहर लोहिया को 1940 में दो साल के लिए ब्रिटिश सरकार ने जेल की सजा सुनाई थी। राम मनोहर ने 'सत्याग्रह अब' लेकर एक लेख लिखा था। हालांकि मजिस्ट्रेट ने भी उनके लेख की तारीफ की थी। लेकिन 1941 में दिसंबर में उन्हें रिहा कर दिया गया था।
- जेल से राम मनोहर का गहरा नाता रहा। 9 अगस्त 1942 को गांधी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन छोड़ दिया था। इसके बाद आंदोलन कर्ताओं की बड़े पैमाने पर गिरफ्तारी होने लगी। जब तक बड़े आंदोलनकर्ता जेल में बंद रहे तब तक राम मनोहर ने आंदोलन की अगुवाई की। हालांकि 1944 में उन्हें भी लाहौर जेल में बंद कर दिया गया। इस बीच राम मनोहर के पिता जी का देहांत हो गया। लेकिन अंग्रेजों का एहसान नहीं लेना चाहते थे, इसलिए पेरोल ठुकरा दी। 1946 में उन्हें रिहा कर दिया।
- हालांकि 1947 में आजादी के बाद लोहिया और नेहरू के बीच मतभेद होने लगा था। और उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी। वह एक समाजवादी नेता के रूप में पहचाने जाने लगे। 30 सितंबर 1967 को उनकी अचानक तबीयत बिगड़ गई। इसके बाद से उनका इलाज जारी था लेकिन 12 अक्टूबर को उन्होंने अंतिम सांस ली।