लगभग 21वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं लेकिन आज भी मानसिकता में बदलाव की जरूरत है। आज भी महिलाएं और लड़कियां लैगिंक भेद का शिकार होती है। समान काम के लिए भी महिलाओं को बराबर वेतन नहीं दिया जाना कौन से विकसित देश की परिभाषा है? जिसके लिए एक पहल शुरू गई हर साल 18 सितंबर को अंतरराष्ट्रीय समान वेतन दिवस मनाया जाता है। गौरतलब है विश्वभर में महिलाओं को समान काम के लिए कम वेतन दिया जाना एक आम बात मानी जाती है। यह जानकर आश्चर्य होगा कि संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार समूची दुनिया में आज भी महिलाओं को पुरूषों से करीब 23 फीसदी वेतन कम मिलता है। महिला और पुरूष के बीच इस खाई को कम करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक करीब 257 साल लग सकते हैं। जिस तरह से असमान वेतन महिलाओं को दिया जाता है इससे भेदभाव की खाई और भी अधिक गहरी होने लगेगी। लोगों को जागरूक करने
के लिए संयुक्त राष्ट्र महिला संगठन द्वारा #stoptherobbery अभियान चलाया गया था।
विकसित देशों की सूची में आने के लिए असमानता को कम करना होगा
जी हां, जहां एक और देश के विकास की बात होती है लेकिन असमानता खत्म नहीं होती है। तथ्यात्मक उदाहरण हमारे सामने है। साल 2018 में वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के जेंडर गैप इंडेक्स में भारत 108वें पायदान पर था। साल 2020 में भारत 112वें पायदान पर पहुंच गया है। मतलब जहां एक ओर विकास की बात की जा रही है दूसरी ओर असमानता की गहराई भी बढ़ती जा रही है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक कोरोना काल में करोड़ों लोग बेरोजगार हुए। वहीं उनका कहना है कि जिस तरह से अर्थव्यवस्था पर कोविड का असर हुआ है भारत वैश्विक स्तर रैंकिंग में और भी गिर सकती है। वहीं किसी देश को विकसित देशों की श्रेणी में आने के लिए इस असमानता की खाई को कम करना होगा।
सुंयक्त राष्ट्र के मुताबिक समान वेतन मानवाधिकार और लैंगिक समानता के लिए जरूरी है। हालांकि जमीनी स्तर पर इस अंतर को कम करने के लगातार प्रयास की जरूरत होगी। अंतरराष्ट्रीय संगठनों की चाल भी काफी कम रही है। मॉन्स्टर सैलरी इंडेक्स 2019 के अनुसार महिलाएं पुरूषों की तुलना में 19 फीसदी कम पैसे कमाती है। वहीं 2018 के सर्वेक्षण में सामने आया कि जहां पुरूषों को प्रतिघंटा वेतन 242.49 रूपए मिले वहीं महिलाओं को 196.3 रूपए मिले। मतलब 46.19 रूपए महिलाओं को कम मिले।