आज विश्व ऊंट दिवस (World Camel Day) है। यह प्रतिवर्ष 22 जून को मनाया जाता है। माना जाता है कि सन् 2009 में पहला ऊंट दिवस पाकिस्तान में मनाया गया था। इस दिन को मनाने का उद्देश्य यह है कि आजकल लुप्त हो रहे पशु के संरक्षण हेतु लोगों को जागरूक करना है। ऊंट एक बार में 46 लीटर पानी पीने की क्षमता रखता है, तथा यह एक हफ्ते से ज्यादा समय तक बिना पानी पिए रह सकता है।
भारत में ऊंटों के नौ से अधिक वंश पाए जाते हैं। जिसमें खास तौर पर महाराष्ट्र, गुजरात में कच्छी और खराई और राजस्थान में जैसलमेरी, बीकानेरी, मेवाड़ी, जालोरी, मारवाड़ी तथा हरियाणा में मेवाती तथा मध्यप्रदेश में मालवी नस्ल के ऊंट पाए जाते हैं। वैसे तो ऊंट गर्म प्रदेश में अधिक पाए जाते हैं, अत: ऊंट के प्राकृतिक आवास वाले देशों में 22 जून को विश्व ऊंट दिवस मनाया जाता है। भारत में सामाजिक और आर्थिक विकास में ऊंट की अहम भूमिका मानी जाती है।
देश के कुल ऊंटों की आधी से अधिक संख्या राजस्थान में पाई जाती है। अत: ऊंट को 'रेगिस्तान का जहाज' के उपनाम से भी जाना जाता है। सबसे प्रसिद्ध ऊंट बीकानेरी व जैसलमेरी नस्ल है, इसमें एक कूबड़ वाला ऊंट, जिसे अरबी ऊंट भी कहा जाता है। माना जाता है कि ऊंट वास्तव में भी एक जहाज का ही काम करता है। ऊंट को राजस्थान का राज्य पशु माना जाता है। इस संबंध में राजस्थान सरकार ने 30 जून, 2014 को ऊंट को पशुधन श्रेणी में राज्य पशु घोषित किया तथा इसकी अधिसूचना 19 सितंबर, 2014 को जारी की गई थी।
सन् 1889 में बीकानेर रियासत के महाराजा गंगा सिंह ने 'गंगा रिसाला' नामक ऊंट सवार फौज तैयार की थी, जिसने प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया था। प्रतिवर्ष जनवरी माह में बीकानेर (राजस्थान) में ऊंट उत्सव का आयोजन किया जाता है। इतना ही नहीं ऊंटों का पहला अस्पताल संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में खोला गया है तथा अलग से यहां ऊंटनी के दूध की डेयरी भी स्थापित की गई है।
आज के दौर में इस पशु का संरक्षण सबसे जरूरी हो गया हैं क्योंकि ऊंट जहां सामाजिक और आर्थिक विकास में मददगार हैं, वहीं ऊंटनी के दूध में लौह तत्व विटामिनों का भंडार है, तो हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाता है तथा डायबिटीज, ऑटिज्म, दस्त, टीबी, गठिया आदि रोगों में भी इसका दूध बहुउपयोगी माना जाता है। अत: फूड सेफ्टी एंड स्टैंडर्ड अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने इसे खाद्य आहार के रूप में भी मान्यता दी है। ऊंट के संरक्षण को लेकर गौशाला की तरह ही ऊंटशाला स्थापित करने का कार्य, डेयरी पशु के रूप में इनका विकास तथा चारागाह के विकास करने को लेकर जागरूकता बढ़ना अतिआवश्यक है।