हर साल 28 सितंबर को विश्व रेबीज दिवस मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने का उद्देश्य है रेबीज की रोकथाम के लिए लोगों को जागरूक करना। रेबीज वायरस है जो कुत्तों के काटने से होता है सही समय पर उपचार नहीं मिलने से कई सारे साइड इफेक्ट्स सामने आते हैं। इसलिए कुत्तों के काटने पर जल्द से जल्द डॉक्टर से इलाज कराने की जरूरत होती है। डब्ल्यूएचओ के मुताबिक हर साल रेबीज से करीब 20 हजार लोगों की मौतें होती हैं। आइए जानते हैं इस दिन का महत्व, इतिहास और थीम क्या है।
विश्व रेबीज डे - इतिहास
विश्व रेबीज डे सबसे पहले 28 सितंबर 2007 में मनाया गया था। विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर एलायंस फॉर रेबीज कंट्रोल और सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के बीच हुआ था। साल 2020 में 'एंड रेबीज कोलाबरेट, टीकाकरण' थीम थी। यह लुई पाश्चर की म़त्यू, फ्रांसीसी रसानयज्ञ और सूक्ष्म जीव विज्ञानी की म़त्यू की वर्षगांठ को रेखांकित करता है। जिन्होंने पहली बार वैक्सीन बनाई थी।
विश्व रेबीज दिवस का महत्व -
आज के दिन मेडिकल क्षेत्र में इसका विशेष महत्व है। इसका उद्देश्य वर्ष 2030 तक इस बीमारी को खत्म करने का है। दुनिया भर के स्वास्थ्य संगठन इस दिन को रेबीज के टीकाकरण शिविरों पर ध्यान केंद्रित करने और बीमारी को रोकने के लिए लोगों से भी ध्यान केंद्रित करने के लिए जागरूक किया जाता है। इस दिन को अलग-अलग तरह से सेलिब्रेट किया जाता है खासकर मेडिकल क्षेत्र में।
विश्व रेबीज दिवस 2021 थीम
विश्व रेबीज दिवस की हर साल अलग-अलग थीम होती है। इस वर्ष की थीम 'रेबीजः तथ्य, डर नहीं'। इस थीम का मतलब है लोगों के मन से डर को खत्म करना और तथ्यों से रूबरू कराना।
रेबीज के लक्षण
श्वान के काटने के 4 से 12 सप्ताह बाद लक्षण दिखते हैं। शुरूआत में बुखार के तौर पर सबसे पहला लक्षण नजर आता है। इसके बाद काटे हुआ स्थान पर दर्द और झुनझुनी महसूस होती है। साथ ही चिंता, अति सक्रियता, भ्रम हो जाना, अनिद्रा जैसे लक्षण नजर आते हैं। संक्रमित होने पर दो प्रकार के वायरस होते हैं जिसमें से एक होता है।
1. उग्र रेबीज - यह वायरस पाए जाने पर इंसान अति सक्रिय हो जाता है। अनियमित व्यवहार, डर, चिंता, नींद नहीं आना, मतिभ्रम, पानी का डर जैसे लक्षण दिखने लगते हैं। इतना ही नहीं श्वास में गड़बड़ी हो जाती है, जिससे मृत्यु का डर भी रहता है।
2.पैरालिटिक रेबीज - इसमें लक्षण एकदम तेजी से नहीं दिखते हैं लेकिन गंभीर होता है। व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है। संक्रमित स्थानों पर लकवा होने की संभावना भी रहती है। और धीरे - धीरे शरीर में फैलने लगता है। कोमा से बाहर नहीं आने पर इंसान की मृत्यु भी हो सकती है।