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अपने ही देश में कैद हैं दो गाँव

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- गुवाहाटी से रविशंकर रवि

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यह दर्दनाकहानी है भारत-बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बसे असम के उन दो भारतीय गाँवों के लोगों की जो अपने ही देश में कैदियों सा जीवन बिता रहे हैं। उनका दुर्भाग्य है कि उनके गाँव बांग्लादेशी घुसपैठ रोकने के लिए सीमा पर लगाई गई कँटीली बाड़ के उस पार हैं। बांग्लादेश वे जा नहीं सकते हैं और भारत की तरफ आने के लिए पहले उन्हें परिचय पत्र दिखाना होता है।

आने-जाने का जो एकमात्र (गेट) रास्ता है वह रात में बंद कर दिया जाता है। यदि रात में कोई बीमार पड़ जाए तो अस्पताल जाने के लिए सुबह का इंतजार करना पड़ता है। वहाँ न तो बिजली है और न ही कोई बुनियादी सुविधा। ँधेरा होते ही वे पूरी दुनिया से कट जाते हैं। बांग्लादेश वहां पर कोई भी निर्माण कार्य नहीं होने देता है।

अंतरराष्ट्रीय सीमा से कुछ दूर बांग्लादेश के कई गाँव बसे हुए हैं। इन दोनों गाँवों के लोग सीमावर्ती इलाके में बांग्लादेशी नागरिकों की अवैध गतिविधियों की जानकारी सीमा सुरक्षा बल को नियमित ेकर सीमा पर प्रहरी की भूमिका निभा रहे हैं लेकिन अभाव और असुविधा की वजह से अब वे भारत की सीमा के अंदर आकर बसना चाहते हैं। जहाँ पर कँटीली बाड़ के अंदर रहने की मजबूरी नहीं हो।

भारत-बांग्लादेश की अंतरराष्ट्रीय सीमा के बीच के नो मेंस इलाके में बसे दो भारतीय गाँव -भोगडांगा और फुसकारकुटी के ग्रामीण भारी परेशानी में जी रहे हैं और चाहते हैं कि केंद्र सरकार उन्हें भारतीय सीमा के अंदर बसाने की व्यवस्था करे। भोगडांगा-फुसकारकुटी भारत के अभागे गाँवों में शुमार हैं।

सीमा पर लगी कँटीली बाड़ के उस पार स्थित ये गाँव चारों ओर से बांग्लादेशी गाँवों से घिरे हैं और इसके प्रवेशद्वार पर सीमा सुरक्षा बल की देखरेख में खुलने और बंद होने वाला लोहे का विशाल गेट है। तय समय के बाद किसी भी ग्रामीण को गाँव में घुसने की इजाजत तभी दी जाती है, जब उसके पास विशेष परिचयपत्र हो। इन गाँवों की स्थिति विचित्र हैं। ये गाँव सीमा पर लगाई बाड़ के उस पार हैं। दिन में वे लोग अंदर आते-जाते रहते हैं लेकिन रात में बाड़ का द्वार बंद कर देने के बाद वे अपने देश के अंदर भी नहीं आ सकते। विशेष परिस्थिति में उन्हें परिचय पत्र दिखाने के बाद ही अंदर आने की इजाजत मिलती है।

उस गाँव में बुनियादी सेवा का बुरा हाल है। बांग्लादेश वहाँ किसी भी प्रकार के निर्माण की इजाजत नहीं देता। जब भी गाँव के विकास की कोशिश होती है, सीमा पार से बांग्लादेश राइफल्स आपत्ति करता है। बीडीआर तथा सीमा सुरक्षा बल के बीच हुई सहमति के अनुसार उस विवादित क्षेत्र में कोई नया निर्माण नहीं होगा। इसलिए उन गाँवों के किसान उस इलाके को खाली करके भारतीय सीमा के अंदर बसना चाहते हैं।

वे चाहते हैं कि सरकार उनके घर और खेत की भूमि के बदले मुआवजा देकर पुनर्वास करे। बीडीआर के जवान भी अक्सर बिना कोई वजह के फाइरिंग कर देते हैं। इस वजह से शाम के बाद लोग अपने ही घर में कैद हो जाते हैं। उस गाँव में कोई प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नहीं है। यदि कोई बीमार हो जाए तो उसे अस्पताल जाने के लिए सुबह का इंतजार करना पड़ेगा।

विनोद चंद्र राय नामक एक ग्रामीण ने अपनी दुर्दशा बताते हुए कहा कि वे लोग गाँव में ऐसे कैदियों की तरह रहते हैं, जिन्हें अपनी मर्जी से यहाँ-वहाँ घूमने तक की आजादी नहीं है। श्री राय ने कहा कि हम पूरी तरह भारतीय हैं और हम कँटीली बाड़ के उस ओर नहीं बल्कि स्वाधीन भारत की जमीं पर खुलकर साँस लेना चाहते हैं। कँटीली बाड़ हमें उस तरह की स्वाधीनता के साथ जीने से रोकती है, जिस तरह आप लोग स्वाधीन भारत में अपनी जिंदगी जीते हैं।

भोगडांगा-फुसकारकुटी सीमांत गाँव बचाओ (सुरक्षा) समिति के अध्यक्ष मिंटू कुमार राय बताते हैं कि सीमा सुरक्षा बल के जवान यदि सुरक्षा न दें तो गाँव वाले गाँव छोड़ने को तैयार हैं। उन्होंने कहा कि हमारे गाँव में जब भी कोई विकास मूलक योजना की शुरुआत होती है, बांग्लादेश के लोग बीडीआर की मदद से उस कार्य को बीच में ही रुकवा देते हैं। हाल ही में कालियादाह नदी पर निर्माणाधीन आरसीसी ब्रिज और सौर ऊर्जा से जलने वाली लाइट के खंभे लगाए जाने के कार्य को वह लोग बंद करा चुके हैं।

पुल न बनने से बारिश में लोगों को एक इलाके से दूसरे इलाके में जाने में परेशानी होती है। वहाँ पर बिजली की लाइन ले जाना संभव नहीं है। बिजली के अभाव में शाम होते ही गाँव अँधेरे में तो डूब ही जाता है। बाहरी दुनिया को जानने के लिए लोग रेडियो पर निर्भर हैं लेकिन आकाशवाणी के सिग्नल बहुत कमजोर हैं।

बांग्लादेश के रेडियो स्टेशन ज्यादा आसानी से लग जाते हैं। इसलिए धुबड़ी जिला प्रशासन ने सौर ऊर्जा से बिजली देने की योजना बनाई थी। इसके लिए उपकरण और खंबे आदि भी पहुँचा दिए गए ले‍किन बांग्लादेश की आपत्ति की वजह से वह काम भी रुक गया। तभी से वहाँ की स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है। बीडीआर के सिपाही बिना मतलब फायरिंग करते रहते हैं।

इससे गाँव वाले आतंकित रहते हैं ‍कि सीमा पार से कोई गोली आकर उनके प्राण न ले ले। इस मामले को दोनों देशों के सुरक्षा बलों की बैठक में भी उठाया गया।

पुलिस अधीक्षक को ग्रामीणों की सुरक्षा देने का वादा किया है। ग्रामीणों ने जिला उपायुक्त को पत्र देकर पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध कराने की गुहार लगाई है। अभाव, असुरक्षा और अशिक्षा की वजह से उन गाँवों से पलायन आरंभ हो गया है। करीब एक दर्जन परिवार वहाँ से पलायन कर चुके हैं।

घुसपैठ समस्या के सवाल पर संघर्षरत असम के सबसे ताकतवर छात्र संगठन आसू के अध्यक्ष शंकर प्रसाद राय हाल में उन दो गाँवों की जमीनी हकीकत जानने के लिए वहाँ का दौरा किया।

पिछले सप्ताह केंद्र, राज्य सरकार और आसू की त्रिपक्षीय बैठक में भी भोगडांगा-फुसकारकुटी गाँव की समस्याओं को उठाया गया। केंद्र ने समुचित कदम उठाने का आश्वासन दिया है। गाँवों की मौजूदा स्थिति के लिए असम समझौता कार्यान्वयन मंत्री डॉ. भूमिधर बर्मन ने कहा कि मंत्री ने कभी इन गाँवों की दुर्दशा को गंभीरता से किसी मंच पर नहीं उठाया।

आसू अध्यक्ष ने त्रिपक्षीय बैठक असम-बांग्लादेश अंतरराष्ट्रीय सीमा पर लगी बाड़ के उस ओर फैली हजारों बीघा भूमि की सुरक्षा का मामला भी उठाया है। आसू चाहता है कि केंद्र उन ग्रामीणों को दूसरी जगह बसाए और उनकी जमीन की एवज में पर्याप्त मुआवजा या खेती लायक जमीन उपलब्ध कराए क्योंकि ज्यादातर ग्रामीण किसान हैं।

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