कभी-कभी किसी बात को लेकर हमारा मूड खराब हो जाता है। किसी भी बात को लेकर। चाकलेट न मिलने पर या अपनी पसंद की चीज के खो जाने पर। जब मम्मी कार्टून चैनल नहीं देखने देती तब या फिर जब खेलने के लिए ज्यादा समय नहीं मिलता तब। जब ऐसा कुछ होता है तो मूड खराब हो जाता है। तो इस बारे में ऑस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक कहते हैं कि मूड खराब होना आपको कई बातें सिखाने वाला होता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि जब हमारा मूड खराब होता है तो कोई भी हमें उल्लू नहीं बना सकता। उदास होने पर या किसी बात से दुखी होने पर हम दूसरों की भावनाओं को समझना भी सीखते हैं। इसी तरह उदासी का हमारी याददाश्त पर भी असर होता है।
कभी-कभार मूड का खराब होना याददाश्त बढ़ाने का काम भी करता है। किसी हिन्दी फिल्म में एक गाना भी है। रोते-रोते हँसना सीखो, हँसते-हँसते रोना। बच्चों को हँसने के साथ दूसरों के तकलीफ को महसूस करते भी आना चाहिए।
यह अध्ययन करने वाले प्रोफेसर जोसेफ कहते हैं कि स्टूडेंट्स के जीवन में जब-जब उनका मूड खराब होता है तो वे अपने आसपास की कमियों को देख पाते हैं और चीजों पर भी ज्यादा ध्यान भी लगा पाते हैं। जबकि खुश रहते हुए अपने आसपास की छोटी-छोटी बातों पर उनका ध्यान नहीं जाता है। प्रोफेसर साहब कहते हैं कि दोनों ही तरह के मूड में होना जरूरी है क्योंकि जब हम खुश होते हैं तो हमें नए-नए काम करने के विचार सूझते हैं, हम दूसरों की मदद करते हैं और हममें आत्मविश्वास आता है। इसी तरह उदास होने पर हम ध्यान लगाकर काम करना सीखते हैं।
एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उदासी की स्थिति हमें कठिन परिस्थितियों में भी अच्छा प्रदर्शन करने को प्रेरित करती है। हम उदास होते हैं तो जो चीजें हमारे सामने आती हैं उनके प्रति ज्यादा चौंकन्ने होते हैं।
इस बात को परखने के लिए प्रोफेसर जोसेफ ने बच्चों के दो ग्रुप बनाए। एक तरह के बच्चों को हँसने-हँसाने वाली फिल्म दिखाई जबकि दूसरी तरह के बच्चों को भावुक और दुखद अंत वाली फिल्म दिखाई। इस तरह बने दोनों ग्रुप के बच्चों को काम दिए गए। जिन बच्चों ने कॉमेडी फिल्म देखी थी और जो खुश थे उन्होंने अपने काम को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जबकि जिन बच्चों ने दुखी कर देने वाली फिल्म देखी थी उन्होंने अपने काम को ज्यादा अच्छे से किया। तो प्रोफेसर जोसेफ कहते हैं कि कभी-कभी किसी बात को लेकर मूड खराब भी हो जाए तो कोई बात नहीं, खराब मूड अच्छी बातें सिखाता है।