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झारखंड में जिंदल का स्टील प्लांट

उम्मीद फिर जगी विकास की

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राँची सविष्णराजगढ़िया

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अप्रैल का आखिरी सप्ताह झारखंड के लिए बेहद राजनीतिक उथल-पुथल से भरा रहा। झारखंड में एक बार फिर वही चिर-परिचित संकट उपजा जिसके लिए वह अब देश भर में जाना जाता है। पिछले दस साल में इस राज्य में सात मुख्यमंत्री आए-गए हैं। इसी तर्ज पर शिबू सोरेन की सरकार एक बार फिर संकट में है। पिछले दस साल से जारी राजनीतिक संकट ने झारखंड को एक नाकाम राज्य का दर्जा दे रखा है लेकिन इसी राजनीतिक गहमागहमी के बीच २४ अप्रैल को जिंदल स्टील कारखाने का खुलना राज्य में औद्योगिक विकास के लिए एक नई उम्मीद है।

सबको मालूम है कि झारखंड में औद्योगिक विकास की तमाम संभावनाओं के बावजूद विभिन्न कारणों से बाधाएँ आती रही हैं। राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी राज्य को विकास की पटरी पर ला पाते, इससे पहले ही उनकी सरकार गिर गई। उनके बाद अर्जुन मुंडा ने वर्ष २००६ में राज्य के त्वरित औद्योगिक विकास के लिए देश के प्रमुख औद्योगिक घरानों के साथ लगभग पचास एमओयू किए जो देश भर में चर्चा का विषय रहा।

इन औद्योगिक इकाइयों में विद्युत उत्पादन और स्टील कारखानों की बड़ी तादाद थी जिनके खुलने से राज्य का चौतरफा विकास हो सकता था लेकिन नौकरशाही के ढुल-मुल रवैए और राजनीतिक गतिरोध के कारण एक भी कारखाना नहीं खुला और हर तरफ निराशा का माहौल छा गया। दूसरी ओर, अर्जुन मुंडा की सरकार के गिरने और मधु कोड़ा के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद की स्थितियों ने औद्योगिक विकास की पूरी हवा निकाल दी। रही-सही कसर कई कारखानों के बंद होने से पूरी हो गई।

राजधानी के समीपवर्ती क्षेत्र बलकुदरा में बिहार एलॉय स्टील कंपनी और इंडो असाही ग्लास कंपनी के बंद हो जाने से हजारों मजदूरों व स्थानीय लोगों के सामने जीवन-यापन का संकट खड़ा हो गया था लेकिन अब जिंदल कंपनी द्वारा बलकुदरा में बिहार एलॉय स्टील कंपनी का अधिग्रहण करके छह मिलियन टन स्टील उत्पादन का विशाल कारखाना खोले जाने से राज्य में औद्योगिक विकास की नई शुरुआत हुई है।

तीन दशक के बाद क्षेत्र में यह एक बड़ा कारखाना स्थापित हुआ है। बलकुदरा में जिंदल स्टील प्लांट को झारखंड के औद्योगिक विकास की नई यात्रा के रूप में देखा जा रहा है। इससे पूर्व जमशेदपुर और बोकारो में ऐसे बड़े स्टील प्लांट लगे थे। जमशेदजी टाटा ने वर्ष १९०८ में टाटा स्टील कारखाना लगाया था। प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने वर्ष १९६४ में बोकारो में स्टील प्लांट का शुभारंभ किया था। अब जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड ने इसे एक नया आयाम दिया है। मुख्यमंत्री शिबू सोरेन ने २४ अप्रैल को जेएसपीएल के ०.६ मीट्रिक टन प्रतिवर्ष क्षमता वाली वायर रॉड मिल का उद्‍घाटन किया।

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रामगढ़ जिले के पतरातू प्रखंड का एक गाँव है बलकुदरा। बलकुदरा में लंबे समय से चल रहा बासल कारखाना वर्ष 1997 में बंद हो गया था। कामगार सड़कों पर आ गए। स्थानीय दुकानदारों की रोजी-रोटी भी मारी गई। वर्ष 2007 में उद्योगति और सांसद नवीन जिंदल ने इस कारखाने को 108 करोड़ रुपए में नीलामी के जरिए खरीदा।

बदले में उन्हें केवल 560 एकड़ जमीन मिली जो प्लांट बैठाने के लिए पर्याप्त नहीं थी। कंपनी ने सबसे पहले स्थानीय लोगों का विश्वास हासिल करने का प्रयास शुरू किया। कंपनी के सहायक उपाध्यक्ष अविजीत घोष ने यह जिम्मा अपने ऊपर लिया। उन्हें लोगों के विरोध का कड़वा घूँट पीना पड़ा पर उन्होंने सबका विश्वास जीता।

अपनी व्यवहार कुशलता, दूरदर्शिता के बल पर उन्होंने लोगों के बीच अपनी पहचान बनाई। धीरे-धीरे कंपनी के पास 1300 एकड़ जमीन का इंतजाम हो गया। हालाँकि उन्हें अभी 800 एकड़ जमीन की और जरूरत है। कंपनी को शुरू करने के लिए न तो लौह अयस्क मिल रहा है और न ही कोयला खदान। तमाम हालात से जूझने के बाद बासल को जिंदा किया गया। पुराने कर्मचारियों को काम पर रखा। फिलहाल, कंपनी में 450 लोगों को प्रत्यक्ष तौर पर नौकरी मिली है और 2500 कर्मचारी अनुबंध पर कार्यरत हैं।

प्रत्यक्ष तौर पर कार्यरत कर्मचारियों में से 250 भूमिदाता हैं। पूरा प्लांट लग जाने पर छह हजार लोगों को प्रत्यक्ष और 20 हजार लोगों को अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। सूनसान पड़ा बलकुदार अब गुलजार हो गया है।

जेएसपीएल का बलकुदरा में छह एमटी का स्टील प्लांट लगाने का प्रस्ताव है। पहले चरण में तीन एमटी का प्लांट लगाया जाएगा। इसकी लागत 15 हजार करोड़ रुपए होगी। एक एमटी की बार मिल अक्टूबर, 2010 में तैयार होने की उम्मीद है। तीन एमटी का पूरा प्लांट जून 2012 जबकि छह एमटी का प्लांट 2015 तक चालू होने की उम्मीद है। पहले चरण के तहत ही अभी 0.6 एमटी की वायर रॉड मिल का उद्‍घाटन किया गया है।

इस वायर रॉड मिल में आधुनिक तकनीक का प्रयोग किया गया है। इसमें 5.2 मिली लीटर से 22 मिली लीटर तक के वायर रॉड का उत्पादन होगा। कारखाने में तार, छाते की कमानी, स्पोक, ट्रांसमिशन लाइन के तार आदि का भी निर्माण होगा। यह भी उल्लेखनीय है कि जिंदल समूह द्वारा लगाए जाने वाले सभी प्लांटों की तमाम मशीनरी अत्याधुनिक प्रदूष‍ण रहित व स्वचालित होगी। एक और खास बात यह है कि देश में बासल ही ऐसी जगह है जहाँ 560 एकड़ जमीन पर तीन मिलियन टन का स्टील प्लांट लगा है। एक मिलियन टन के स्टील कारखाने के लिए दो हजार एकड़ जमीन की जरूरत होती है लेकिन जेएसपीएल छह हजार एकड़ के बदले 560 एकड़ जमीन
पर ही तीन मिलियन टन का प्लांट स्थापित कर रहा है।

उद्‍घाटन के दौरान शिबू सोरेन ने जिंदल कारखाने को राज्य के लिए महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया। साथ ही कहा कि निवेशकों को गाँव वालों से संबंध बनाने पर भी ध्यान देना होगा।

कल-कारखानों के खुलने से गाँव की जमीन उसकी भेंट चढ़ जाती है। निवेश करने वाली कंपनियों को सामाजिक विकास के अलावा ग्रामीणों से बेहतर संबंध विकसित करने पर भी ध्यान देना होगा। इस मौके पर केंद्रीय इस्पात मंत्री वीरभद्र सिंह ने जेएसपीएल को विकास का प्रतिरूप बताया। उन्होंने कहा कि दस साल पहले जिस मंसूबे से झारखंड का गठन किया गया था, वह पूरा नहीं हो सका।

जिंदल के प्रयासों से न केवल झारखंड बल्कि पूर देश को इसका लाभ मिलेगा। नवीन जिंदल के मुताबिक, 'लोगों के सहयोग में ही हमारी सफलता छिपी है। हमारा उद्देश्य महज स्टील बनाना नहीं है। हमें इस क्षेत्र के विकास को भी अपनी आँखों से देखना है।'

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