वनस्पति जगत के अंतर्गत एक विशाल वर्ग वाली ऐसी किस्म भी है जो क्लोरोफिल के अभाव में चूँकि अपने लिए भोजन बनाने में असमर्थ होती है अत: यह या तो परजीवी के रूप में दूसरे जीवधारियों पर आश्रित रहती है या फिर मृतजीवी के रूप में अन्य पदार्थों पर। आश्चर्य की बात तो यह है कि इसका वृहद परिवार दस बीस नहीं बल्कि 80 हजार से भरा पड़ा मिलेगा। इसमें बहुत से ऐसे हैं जो आपके द्वारा तैयार अचार, मुरब्बे जैसे जैली, पनीर और डबलरोटी जैसे खाद्य पदार्थों के सहारे विकसित होते रहते हैं।
बहुत बारीक-बारीक कणों से जिन्हें स्पोर्स कहते हैं। मिलकर बनने वाला यह समूह जैसे ही अपने उपयुक्त नमी वाले खाद्य पदार्थ पर आकर जमता है तो वहाँ बड़ी तेजी के साथ यह हरे या भूरे रंग की अपनी पूरी एक बस्ती बसा लेते हैं। फिर भोजन के उसी आधार पर अपनी पूर्ण विकसित अवस्था प्राप्त करने के पश्चात इनसे निकलने वाले बारीक कण हवा के साथ उड़कर दूसरी नई बस्तियाँ बसाने के लिए निकल पड़ते हैं।
अब तो आप अच्छी तरह समझ गए होंगे कि डबलरोटी पर जमने वाली फफूँद वास्तव में उन परिस्थितियों का परिणाम है जिनके कारण हवा में तैरते इनके कण डबलरोटी के ऊपर जमकर अपने विकास की प्रक्रिया पूरी कर लेते हैं।