पेड़-पौधों में पाया जाने वाला सेलुलोज ही दीमक का भोजन होता है। इसलिए वे तमाम चीजें दीमक का भोजन होती हैं जिनमें सेलुलोज होता है। बहुत सी सूखी लकड़ी पर तुमने दीमक का घर बना देखा होगा। लकड़ियों के बने फर्नीचर, कॉपी-किताबों जैसी बहुत सी चीजों को दीमक चट कर जाती है और फिर वह सामान किसी काम का नहीं रह जाता। दीमक जो सेलुलोज भोजन के रूप में प्राप्त करती है उसे पचा पाने की क्षमता उसमें नहीं होती है। इसे पचाने के लिए दीमक को दूसरे जीव की मदद लेना पड़ती है।
ये दूसरे जीव प्रोटोजोआ कहलाते हैं, जो दीमक की आँतों में रहते हैं। दोनों के बीच सहभागिता का रिश्ता होता है। दीमक लकड़ी को चबाकर निगल जाती है और आँतों में रहने वाले प्रोटॅजोअंस इस लकड़ी की लुगदी को भोजन में बदल देते हैं। इस भोजन से ही दोनों जीव अपना जीवन चलाते हैं। दीमक पर्यावरण में सफाईगार की भूमिका निभाती है पर कई बार यह कीमती सामान को खराब करके नुकसानदायक भी साबित होती है। दीमक समूह में रहती है और भोजन तलाशने में एक-दूसरे की मदद भी करती है। ये चींटियों से मिलती-जुलती लगती हैं। इसलिए इन्हें 'व्हाइट एंट' भी कहा जाता है। आकार के अलावा चींटियों से इनकी कोई समानता नहीं होती।