- गुवाहाटी से रविशंकर रवि
पूर्वोत्तर में माल ढुलाई के क्षेत्र में रेलवे की भूमिका तो है ही, यात्री गाड़ियों की बढ़ती संख्या व नए रेल मार्गों के विस्तार ने पूर्वोत्तर रेल को नई पहचान दी है। इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूर्वोत्तर को देश से जोड़ने और जरूरी खाद्य वस्तुओं की आपूर्ति का एकमात्र आधार रहे उत्तर-पूर्व सीमा की रेलवे की कई महत्वाकांक्षी योजनाओं ने नई संभावनाओं को जन्म दिया है। पूर्वोत्तर में माल ढुलाई के क्षेत्र में रेलवे की भूमिका तो है ही, यात्री गाड़ियों की बढ़ती संख्या व नए रेल मार्गों के विस्तार ने पूर्वोत्तर रेल को नई पहचान दी है।असम के अंदर एक शहर से दूसरे शहर के बीच लोकल रेल सेवा की शुरुआत ने पर्वतीय इलाके में रेल सेवा को सुगम तो बनाया ही है, उन इलाके के लोगों में भी रेल सेवा का उपयोग करने का सपना दिखाया है जिन्होंने आज तक रेलगाड़ी को देखा तक नहीं है।अब अरुणाचल प्रदेश के सुदूर और घने जंगलों में रहने वाली जनजाति लोभन अपांग का रेल पर चढ़ने का सपना पूरा होने वाला है क्योंकि पासीघाट तक रेल सेवा के विस्तार का काम आरंभ हो गया है। अरुणाचल को रेलवे के नक्शे पर लाने में रंगिया-मोरेकसेलेक रेलमार्ग अहम भूमिका निभा सकता है। तभी तो इस अति पुराने रेल मार्ग को मीटर गेज से ब्रॉड गेज में बदलने का काम चल रहा है।इसी मार्ग से राजधानी ईटानगर को जोड़ा जाना है। चीन की सीमा पर तैनात सैनिकों की आवाजाही का यही एकमात्र रेलमार्ग है। इस रेलमार्ग के आधुनिक हो जाने से देश के किसी भी हिस्से से सेना के साजोसामान को पहुँचाना आसान हो जाएगा। केंद्रीय पूर्वोत्तर विकास मंत्री एच.के.हैंडिक की माने तो पूर्वी अरुणाचल प्रदेश को पश्चिमी अरुणाचल प्रदेश से जोड़ने वाली ब्रह्मपुत्र नदी पर निर्माणाधीन बोगीबिल पुल का निर्माण दो वर्षों में पूरा कर लिया जाएगा तब अरुणाचल के लोग अपने प्रदेश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक सीधे रेल से जा पाएँगे।मेघालय की राजधानी शिलांग के लोग सीधे नई दिल्ली तक जाने की तैयारी कर रहे हैं। इस बार के बजट भाषण में रेलमंत्री ममता बनर्जी की इस घोषणा ने वहाँ के लोगों को उत्साहित कर दिया है कि अब शिलांग से दिल्ली तक ट्रेन चलाई जाएँगी। अभी दिल्ली से शिलांग जाने के लिए पहले गुवाहाटी पहुँचना पड़ता है और उसके बाद सड़क मार्ग से शिलांग आना पड़ता है।अगरतला विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष विनोद मिश्र को उस दिन का इंतजार है जब वह अगरतला से सीधे दिल्ली और कोलकाता तक रेल की सेवा ले सकेंगे। वैसे गुवाहाटी से अगरतला तक सीधी रेल सेवा बहाल हो चुकी है लेकिन लामडिंग से अगरतला तक मीटरगेज होने की वजह से रफ्तार कम होती है और लामडिंग में आकर ब्रॉड गेज की ट्रेन पकड़नी पड़ती है। इस वजह से बाहर से आने वाली मालगाड़ी को भी लामडिंग में रुकना पड़ता है। वहाँ पर माल मीटर गेज की मालगाड़ी पर लादना पड़ता है जिसमें बहुत समय और धन बर्बाद होता है। मिजोरम, त्रिपुरा और बराक घाटी इस रेलमार्ग पर जरूरी वस्तुओं की आपूर्ति के लिए निर्भर है।लामडिंग से सिलचर के बीच ब्रॉड गेज बिछाने का काम जारी है। पूर्वोत्तर सीमा रेलवे के मुख्य जनसंपर्क अधिकारी बताते हैं कि सिलचर से अगरतला तक भले ही मीटर गेज है लेकिन ट्रैक का आधार ब्रॉड गेज को ध्यान में रखकर बनाया गया है। इसीलिए सिलचर तक ब्रॉड गेज आने के बाद अगरतला तक ब्रॉड गेज बिछाना मुश्किल नहीं होगा। तब दिल्ली और कोलकाता से अगरतला तक सीधी रेल यात्रा संभव हो पाएगी। उनका दावा है कि लामडिंग-सिलचर ब्रॉड गेज बिछाने का काम वर्ष 2012 तक पूरा कर लेने का लक्ष्य है।विनोद मिश्र बताते हैं कि भले ही ब्रॉड गेज सिलचर-अगरतला मार्ग में नहीं है लेकिन रेल सेवा आरंभ होने के बाद राज्य के एक हिस्से से दूसरे हिस्से तक जाना सुगम हो गया है। पहले लोगों को अगरतला से धरमनगर या सिलचर जाने के लिए पहाड़ों से गुजरती सड़कों से जाना पड़ता था। अब कई रेलगाड़ियाँ इस मार्ग पर चलती हैं जिसमें एसी डिब्बे भी हैं।पूर्वोत्तर के सभी राज्यों को रेल से जोड़ने के मकसद से मिजोरम के कोलाबी और मणिपुर के जीरीबाम को सिलचर से जोड़ने की प्रक्रिया आरंभ हो चुकी है। गुवाहाटी से एक और राजधानी के शुभारंभ ने दिल्ली को करीब ला दिया है। अब गुवाहाटी से तीन राजधानी एक्सप्रेस चल रही हैं। पटना होकर राजधानी सप्ताह में पाँच दिन और लखनऊ होकर सप्ताह में तीन दिन की सेवा है। इससे 28 घंटे में गुवाहाटी से नई दिल्ली पहुँचना मुमकिन हो गया है।
अलगाववादी आंदोलन से जर्जर पूर्वोत्तर के लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने में रेलवे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है। आजादी के बाद गुवाहाटी से दिल्ली पहुँचने में कई स्टेशनों पर ट्रेन बदलने के बाद पहुँचने में एक सप्ताह लग जाता था।
पहले लंबी दूरी तक की सभी मुख्य ट्रेन गुवाहाटी के रास्ते भी राजधानी चलने लगी है क्योंकि वहाँ से ऊपरी असम के अलावा पूर्वी अरुणाचल के लोग भी ट्रेन पकड़ते हैं। डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया से चंडीगढ़, रांची, कोलकाता और दक्षिण भारत के लिए सीधी रेल सेवा उपलब्ध है। साथ ही, रेल यात्रियों की सुविधाएँ बढ़ाई जा रही हैं। कई स्टेशनों को नया रूप दिया जा रहा है। पूर्वोत्तर के अधिकांश शहरों में आरक्षण टिकट सेवा आरंभ हो गई है। पहले मणिपुर के लोगों को आरक्षित टिकट के लिए गुवाहाटी या दिमापुर आना पड़ता था। अब वे इंफाल में भी टिकट कटा सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों से असम के एक शहर से दूसरे शहर के बीच स्थानीय रेल सेवा आरंभ हुई है। गुवाहाटी से विभिन्न शहरों के बीच इंटरसिटी, जनशताब्दी और लोकल ट्रेन आरंभ हुई हैं। कई नए रेलमार्ग भी शुरू किए गए हैं।इसमें दो राय नहीं है कि इन योजनाओं पर रेलवे को जितना खर्च करना पड़ रहा है। उसकी तुलना में आमदनी बहुत कम है लेकिन अलगाववादी आंदोलन से जर्जर पूर्वोत्तर के लोगों को राष्ट्र की मुख्यधारा से जोड़ने में रेलवे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह कर रहा है। आजादी के बाद गुवाहाटी से दिल्ली पहुँचने में कई स्टेशनों पर ट्रेन बदलने के बाद पहुँचने में एक सप्ताह लग जाता था। अब 28 से 36 घंटे में पहुँचा जा सकता है। खास बात यह है कि ट्रेनों की संख्या बढ़ने के बावजूद सभी गाड़ियाँ यात्रियों से खचाखच भरी रहती है।गुवाहाटी से दिल्ली, बेंगलुरू, मुंबई, लालगढ़ (राजस्थान) आदि शहरों तक जाने वाली ट्रेनों में जगह नहीं मिलती है। नई राजधानी एक्सप्रेस के शुभारंभ के मौके पर पूसी रेलवे के महाप्रबंधक शिव कुमार ने पूर्वोत्तर के लोगों को यह आश्वासन जरूर दिया कि पूर्वोत्तर में रेल सेवा का विस्तार जारी रहेगा। गुवाहाटी रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों की संख्या सीमा से अधिक हो गई हैं इसलिए दूसरे स्टेशन के रूप में कामाख्या रेलवे स्टेशन तैयार किया गया है।आधुनिक सुविधाओं से युक्त कामाख्या रेलवे स्टेशन से नई रेलगाड़ियाँ चलाने की तैयारी की जा रही है ताकि गुवाहाटी स्टेशन का दबाव कम किया जा सके। गुवाहाटी स्टेशन को विश्व स्तर का स्टेशन बनाने का काम जारी है।