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बिल गेट्स के हवाले बिहार की सेहत

पटना से राघवेंद्र नारायण मिश्र

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हिम्मते मर्दा मददे खुदा" का मुहावरा बिहार के संदर्भ में सही साबित होता दिख रहा है। इस राज्य ने अपनी पुरानी छवि बदलकर विकास की डगर पर चलना शुरू किया तो मदद के लिए कई हाथ बढ़ने लगे। ब्रिटेन ने बिहार के नगरों के विकास का बीड़ा उठाया है तो कनाडा ने फूड प्रोसेसिंग के क्षेत्र में तकनीकी सहयोग का वादा किया है। ब्रिटेन के उच्चायुक्त रिचर्ड स्टेग, अमेरिकी राजदूत रोमर और कनाडा के कृषि मंत्री डॉ. बेरी टॉड अलग-अलग दौरों में बदलते बिहार की विकास की रफ्तार से न सिर्फ चमत्कृत हुए बल्कि सहयोग की योजनाओं का ऐलान भी कर गए। बिहार की मदद के लिए बढ़े विदेशी हाथों में अब एक और महत्वपूर्ण नाम जुड़ गया है -बिल गेट्स। दुनिया के सबसे अमीर लोगों की सूची में शुमार माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के इस मुखिया ने बिहार की स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार का संकल्प लिया है। बिल गेट्स ने बिहार सरकार के साथ करारनामे पर हस्ताक्षर कर योजना की बुनियाद भी रख दी है।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बिल गेट्स की पहली बातचीत पिछले साल जुलाई में वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए हुई। वह प्रभावित हुए और मदद योजना का ब्लू प्रिंट तैयार कर दस महीने बाद इस सप्ताह बिहार पहुँच गए। बिल गेट्स बिहार आए तो जहाँ बिहार में हो रहे विकास से वह प्रभावित हुए वहीं राज्य के गरीबों से नाता जोड़ने में भी उन्होंने कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी। बांका का तेतरिया हो या खगड़िया का गुलरिया गाँव, बिल गेट्स गरीबों के साथ दुख-दर्द बाँटते नजर आए। यह वोट बैंक की चाहत में गरीबों की झोपड़ी तक पहुँचने की कवायद नहीं थी बल्कि सेवा का अंदरूनी जज्बा था जो इस नामचीन शख्स को गरीबों की चटाई पर बैठने को प्रेरित कर रहा था। गेट्स ने बिना चप्पू की नाव पर बैठकर कोसी के गांव का मुआयना किया।

तेतरिया पहुंचे बिल गेट्स के लिए कुर्सी लगाई गई थी लेकिन वह ताड़ के पत्तों से बनी छतरी के नीचे चटाई पर ग्रामीणों के साथ बैठे। उनकी दिलचस्पी ऐसी जगी कि दिन भर कुछ भी नहीं खाया और लोगों से मिलते रहे। निजी सचिव बार-बार घड़ी दिखाते रह गए लेकिन बिल गेट्स ने ग्रामीणों से संवाद जारी रखा। कहीं उन्होंने भारत की आत्मा की तारीफ में कसीदे पढ़े तो कहीं लोगों की जीवटता से अभिभूत नजर आए। कोसी की धार में रस्सियों के सहारे चलने वाली नाव में १५ मिनट का सफर किया। पैदल चले और गाँवों में स्वास्थ्य सुविधाओं को नजदीक से परखा। यह बिल गेट्स की आत्मीयता ही है कि तेतरिया और गुलरिया गाँव अब उनका हो चुका है। इन गाँवों के लोग उन्हें देवदूत की संज्ञा देने लगे हैं।

दरअसल, एक खबर ने बिल गेट्स के जीवन की दिशा बदल दी थी। बिल एंड मिलिंडा फाउंडेशन के बुलेटिन में बिल गेट्स ने लिखा है कि एक दशक पहले जब उन्होंने एक खबर पढ़ी कि गरीब देशों में हर साल लाखों बच्चे उन बीमारियों से मर जाते हैं जिनका बहुत पहले अमेरिका से खात्मा हो चुका है तो वह अंदर तक हिल गए। जब यह पढ़ा कि रोटावायरस नामक बीमारी से हर साल पाँच लाख बच्चे मर जाते हैं तो उन्हें विश्वास नहीं हुआ और इसे छपाई की गलती मान बैठे। बाद में उन्हें पता चला कि खबर सही थी।

लिहाजा अपनी पत्नी मिलिंडा के साथ मिलकर गरीब देश के बच्चों के लिए कुछ करने की ठान ली। इस काम में वक्त लगना था। लिहाजा खुद माइक्रोसॉफ्ट कंपनी के सीईओ पद से इस्तीफा दिया और इस काम में जुट गए। वह अब माइक्रोसॉफ्ट कंपनी में अध्यक्ष व चीफ सॉफ्टवेयर आर्किटेक्ट हैं और उनका संगठन हर साल गरीब देशों में स्वास्थ्य सुधार पर १.५ अरब डॉलर खर्च करता है। इस काम के लिए ब्रिटेन की महारानी ने उन्हें "सर" की उपाधि से नवाजा।

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बिहार में बिल गेट्स ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लंबी बातचीत के बाद समझौते पर हस्ताक्षर किया। इस करारनामे के तहत बिल गेट्स की कंपनी बिहार के आठ जिलों पटना, बेगूसराय, सहरसा, समस्तीपुर, खगड़िया, पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण और गोपालगंज में माताओं और शिशुओं से संबंधित बीमारियों के उन्मूलन के लिए काम करेगी जबकि राज्य के सभी ३८ जिलों में स्वास्थ्य सुधार में सक्रिय भूमिका अदा करेगी। कालाजार, पोलियो, निमोनिया, डायरिया जैसी बीमारियों का उन्मूलन बिल गेट्स की कंपनी के मुख्य एजेंडे में शुमार है।

उनकी योजना के तहत राज्य में वर्ष 2015 तक मातृ मृत्यु दर 312 से घटाकर 175 तक लाने, नवजात शिशु मृत्यु दर 40 से 28, शिशु मृत्यु दर 56 से 44, पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों की मृत्यु दर 85 से 55, कम वजन के बच्चों की संख्‍या दर 55 से 46 व यक्ष्मा का 80 फीसदी उन्मूलन शामिल है। समझौते के तहत पाँच साल में बिहार से कालाजार का उन्मूलन कर दिया जाएगा। वर्तमान में यह बीमारी हर साल दो सौ लोगों की जान लेती है।

गेट्‍स फाउंडेशन स्वयंसेवी संस्थाओं के जरिए धन देगी। समन्वय के‍ लिए विशेष सेल बनेगा जिसमें स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव और विभाग के अन्य अधिकारी शामिल रहेंगे। योजनाओं की हर तीन माह पर समीक्षा होगी। निगरानी के लिए विकास आयुक्त की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन होगा। प्रदेश के दौरे से लौटकर उन्होंने अपने बुलेटिन में लिखा कि चार साल में बिहार बदल गया है। विकास के इस रोल मॉडल से दूसरे प्रांतों को भी सीख लेनी चाहिए। बिहार में विकास की जरूरत सबसे ज्यादा है इसलिए उन्होंने इस प्रदेश को चुना। बदलाव एक व्यक्ति से नहीं आता। इसके लिए बहुत बड़ी टीम और सकारात्मक सोच की जरूरत होती है और बिहार में यह सब दिख रहा है।

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