भारतीय राष्ट्रीय ध्वज की कहानी
तीन बार बदला तिरंगे का स्वरूप
* सन् 1921 में गांधी जी द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के लिए इस झंडे की पेशकश की गई।
* सन् 1931 में कांग्रेस द्वारा राष्ट्रीय ध्वज के लिए पारित स्वराज झंडा।
* सन् 1947 से इस ध्वज को स्वतंत्र भारत का राष्ट्रीय ध्वज स्वीकार किया गया।
हमारे देश की शान तिरंगा झंडा। स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आज तक तिरंगे की कहानी में कई रोचक मोड़ आए। पहले उसका स्वरूप कुछ और था और आज कुछ और है। आज देश 65वां स्वतंत्रता दिवस समारोह मना रहा है लेकिन बहुत ही कम लोगों को अपने राष्ट्रीय ध्वज के बारे में पूरी जानकारी है।
पेश है अपने पाठकों के लिए तिरंगे की कहानी के रूप में कुछ जानकारियां...
बापू की पेशकश :- सबसे पहले देश के राष्ट्रीय ध्वज की पेशकश 1921 में महात्मा गांधी ने की थी। जिसमें बापू ने दो रंग के झंडे को राष्ट्रीय ध्वज बनाने की बात कही थी। इस झंडे को मछलीपट्टनम के पिंगली वैंकैया ने बनाया था। दो रंगों में लाल रंग हिन्दू और हरा रंग मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधित्व करता था। बीच में गांधी जी का चरखा था, जो इस बात का प्रमाण था कि भारत का झंडा अपने देश में बने कपड़े से बना।
आगे पढ़े राष्ट्रीय ध्वज के लिए पारित स्वराज झंडा
स्वराज झंडा फिर बना :- इसके बाद स्वतंत्रता के आंदोलन के अंतर्गत खिलाफत आंदोलन में तीन रंगों के स्वराज झंडे का प्रयोग किया गया। खिलाफत आंदोलन में मोतीलाल नेहरू ने इस झंडे को थामा और बाद में कांग्रेस ने 1931 में स्वराज झंडे को ही राष्ट्रीय ध्वज की स्वीकृति दी।जिसमें ऊपर केसरिया बीच में सफेद और नीचे हरा रंग था। साथ ही बीच में नीले रंग से चरखा बना हुआ था।
कैसे हुआ नया तिरंगा झंडा राष्ट्रीय ध्वज घोषित