- डॉ. सुषमा सिंह
हेनरी पार्किन लंदन के एक भवन निर्माता थे। 12 मार्च 1838 में उनके यहाँ एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम उन्होंने प्यार से विलियम रखा। वह प्रारंभ से ही बहुत कुशाग्र बुद्धि का था। तरह-तरह के सवाल पूछने का उसे बड़े शौक था। बचपन से ही वह फूल पत्तों से बहुत प्यार करता था। वह फूलों की कागजों के बीच में रखकर फूलों को मसल देता और जब उन फूलों के पराग का रंग उनमें लग जाता तो देखकर खुश होता, तालियाँ बजाता, माँ को दिखाता और हँस-हँस कर अपनी प्रसन्नता व्यक्त करता। उसके माता-पिता भी उसके इस अद्भुत खेल में रस लेते।
विलियम पढ़ने में बहुत होशियार था, विज्ञान के सभी विषय उसे पसंद थे किंतु रसायन शास्त्र उसे विशेष प्रिय था। रसायन शास्त्र की प्रयोगशाला में उसे जितना आनंद आता था, उतना खेल के मैदान में भी नहीं। उसकी अभिरुचि देखकर उसके प्राध्यापक भी उसमें रुचि लेने लगे। पिता चाहते थे कि विलियम जल्दी से अपनी पढ़ाई पूरी करे और उनके भवन निर्माण के कार्य में मदद करे किंतु उस क्षेत्र में उसकी बिल्कुल दिलचस्पी नहीं थी। वह तो रसायनशास्त्री बनना चाहता था।
जब विलियम ने अपने पिताजी की इच्छा के विषय में अपने गुरु रॉयल कॉलेज के रसायन प्रमुख हाफमैन को बताया तो उन्होंने पार्किन साहब को समझाया कि 'विलियम रसायनशास्त्र के क्षेत्र में बहुत नाम करेगा और आपके परिवार की प्रतिष्ठा में चार चाँद लगाएगा। हमें इस प्रतिभाशाली युवक से बहुत आशाएँ हैं।' तब वे भी मान गए और विलियम निश्चिंत होकर रॉयल कॉलेज में ही शोध सहायक के पद पर रहते हुए अपने प्रयोगों को गति देने लगे। यहाँ तक कि उन्होंने घर पर भी एक प्रयोगशाला बना ली।
विज्ञान के प्रयोगों में कई बार अनजाने ही बहुत से आविष्कार हो जाते हैं। प्रयोग कुछ सोचकर किया जाता है और परिणाम कुछ और ही निकल आता है। विलियम के साथ भी यही हुआ। वे हाफमैन साहब के निर्देशन में कुनैन बनाने की कोशिश कर रहे थे। जो तब तक 'सिनकोना' वृक्ष से हासिल नहीं हो पा रही थी। यद्यपि कुनैन से मिलता-जुलता पदार्थ निर्मित हो गया था। विलियम ने देखा कि इस प्रयोग में परखनली की तली में थोड़ा सा काला पदार्थ है। उसे उन्होंने बाहर निकाला और थोड़े से पानी में घोल दिया, बड़ा सुंदर बैंगनी रंग बन गया, यह देखकर उनकी आँखों में चमक आई और उन्होंने कपड़े का एक छोटा सा टुकड़ा उसमें भिगोकर धूप में सुखा दिया, कपड़े पर बैंगनी रंग चढ़ गया। यह देखकर उनके हर्ष का ठिकाना न रहा। दोबारा उन्होंने वह पदार्थ बनाया और उसमें एक सूती एवं एक रेशमी कपड़ा डाला।
जब इन कपड़ों को धोया गया तो पता चला कि रेशमी कपड़े पर पक्का रंग चढ़ा है जबकि सूती कपड़े में थोड़ा सा रंग निकला। अब तक कपड़ों को रंगने के लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग होता था और अमीर लोग ही उनका प्रयोग कर सकते थे। गरीब आदमी के लिए रंगीन कपड़ा पहनना एक स्वप्न था। किंतु इस रासायनिक रंग का प्रयोग तो काफी सस्ता और सरल था। खोजते-खोजते उन्होंने 'टैनिन' नामक पदार्थ भी खोजा जो सूती वस्त्र पर पक्का रंग चढ़ाने में समर्थ था।
विलियम ने अपने रंगों को पेटेंट कराया और उसका प्रचार-प्रसार करने का प्रयत्न किया। कुछ विरोधियों ने इस प्रकार का दुष्प्रचार किया कि ये रासायनिक रंग स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकते हैं।
विलियम पार्किन का प्रयोग फिर भी जारी रहा, पहले तो बैंगनी रंग के हल्के गहरे अनेक शेड्स बनाए और फिर अन्य रंगों की खोज की। दुनिया का यह अनोखा रंगों का जादूगर सबकी दुनिया रंगीन बनाकर 14 जुलाई, 1907 में दुनिया से विदा हो गया। इस प्रसिद्ध रंगरेज विज्ञानी महान रसायनशास्त्री को हमारा शत-शत प्रणाम।