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सबको लुभाती, प्यारी-प्यारी रेलगाड़ी

सबसे पहले कब चली रेल...

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हमें फॉलो करें सबको लुभाती, प्यारी-प्यारी रेलगाड़ी
- रवीन्द्र गुप्ता

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रेल यात्रा हम सभी ने की है। शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने रेल यात्रा न की हो। छुक-छुक रेलगाड़ी क्या बच्चे, क्या बूढ़े सभी को लुभाती है। यह सस्ती होने के साथ-साथ आरामदेह व सुकूनदायी है। आओ रेलगाड़ी के बारे में हम कुछ रोचक जानकारी प्राप्त करते हैं।

सबसे पहले कब चली रेल :-
भारत में सबसे पहले मुंबई से ठाणे के बीच रेलगाड़ी चली। तारीख व सन् था 16 अप्रैल 1853। इस 35 किमी के सफर का जोरदार शुभारंभ किया गया था। भाप के इंजन के साथ 14 डिब्बों की रेलगाड़ी मुंबई से ठाणे के बीच रवाना हुई थी।

कितना लंबा नेटवर्क है भारतीय रेलवे का :-
भारतीय रेलवे का नेटवर्क 64 हजार 15 किमी से ज्यादा लंबा है। कोई 15 हजार रेलगाड़ियां इस नेटवर्क पर दौड़ती हैं। इस नेटवर्क पर 6 हजार से ज्यादा स्टेशन हैं। करीब 2 करोड़ लोग रोज रेल‍गाड़ियों के माध्यम से इधर से उधर आते-जाते हैं।

दुनिया का चौथा नेटवर्क : -
भारतीय रेलवे का नेटवर्क दुनिया में अमेरिका, रूस और चीन के बाद चौथा सबसे बड़ा नेटवर्क है। हां, यह बात जरूर है कि तकनीक के मामले में ये तीनों देश भारत से कुछ या बहुत आगे हैं, किंतु भारतीय रेलवे भी इनसे एकदम उन्नीस भी नहीं है, बीस ही है।

चीन आगे निकल गया :-
भारत में सबसे पहले रेल 1853 में दौड़ी थी, जबकि चीन में इसके 23 साल बाद यानी 1876 में। जब भारत आजाद हुआ तो भारत में रेल नेटवर्क की कुल लंबाई 53,596 किमी थी, जबकि चीन का रेल नेटवर्क सिर्फ 27,000 किमी ही था।

आजादी के इन 65 वर्षों में भारत में केवल 10,000 किमी की या उसे कुछ ही अधिक बढ़ोतरी हो पाई है, जबकि चीन 78,000 किमी के रेल नेटवर्क के साथ भारत से काफी आगे निकल गया है तथा उसका रेल नेटवर्क भारत की तुलना में फैलता ही जा रहा है। उसने ठेठ तिब्बत तक रेल लाइन डाल दी है।

तीन तरह की ‍प‍टरियां :-
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भारतीय रेलवे में तीन तरह की प‍टरियां बिछी हुई हैं, ये हैं- बड़ी लाइन (Broad guage), छोटी लाइन (Metre guage) तथा संकरी लाइन (Narrow guage)। इनमें से बड़ी लाइन की पटरियों का संजाल भारत के अधिकांश हिस्सों में फैला हुआ है। अधिकतर गा‍ड़ियां इसी पटरी पर चलती हैं।

छोटी लाइन की पटरियां अब धीरे-धीरे कम होती जा रही हैं। मध्यप्रदेश में संभवत: रतलाम से अकोला तक का छोटी लाइन का नेटवर्क बचा हुआ है। यह भाग भी अब शीघ्र ही बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा।

संकरी लाइन का भी भाग मप्र में संभवत: नागपुर-छिंदवाड़ा-जबलपुर वाले भाग में ही शेष रह गया है, जो कि भविष्य में बड़ी लाइन में बदल दिया जाएगा। इसके बाद शायद ही कोई छोटी या संकरी लाइन मप्र में शेष रह पाएगी।

सस्ती सवारी, रेलगाड़ी हमारी :
भारतीय रेलवे दुनिया में संभवत: सबसे सस्ता रेलवे है। कोई 10 पैसे प्रति किमी की दर से रेलवे द्वारा किराया वसूला जाता है, जबकि बसों में किराया इससे करीब 10 गुना ज्यादा यानी 1 रुपए प्रति किमी के करीब है। यही कारण है कि सस्ता होने के कारण रेलगाड़ियों में काफी भीड़भाड़ रहती है। लोग डिब्बों में ठूंस-ठूंसकर भरे रहते हैं। वार-त्योहार व शादी-ब्याह तथा ग्रीष्मकालीन अवकाश के दिनों में तो किसी भी श्रेणी में 'जगह खाली नहीं' रहती है। 'वेटिंग' काफी लंबी हो जाती है।

तीन तरह की रेल‍गाड़ियां व स‍ुविधाएं :-
आमतौर पर जनता की सुविधा हेतु 3 तरह की रेल‍गाड़ियां चलाई जाती हैं। ये हैं - पैसेंजर, एक्सप्रेस व मेल (एक्सप्रेस)। इनमें से पैसेंजर का किराया सबसे कम होता है। एक्सप्रेस का उससे ज्यादा तथा मेल (एक्सप्रेस) का सबसे ज्यादा किराया लगता है।

जनरल बोगी (सेकंड क्लास) का किराया सबसे कम होता है, जबकि स्लीपर में उससे ज्यादा तथा एसी का किराया सबसे अधिक लगता है।

जनरल बोगी में साधारण-सी सुविधाएं होती हैं। स्लीपर में जनरल से थोड़ी अच्‍छी व सोने की सुविधा होती है, ज‍‍बकि एसी कोच में वातानुकूलन समेत 'ए' क्लास की सुविधाएं मिलती हैं।

काफी पूंजी की जरूरत :-
नई रेलवे लाइन डालने व अन्य सुविधाओं के लिए रेलवे को काफी पूंजी की जरूरत है, किंतु राजनीतिक कारणों से रेलवे का इतना मामूली किराया पिछले 8-10 वर्षों में बढ़ाया गया है कि वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान ही है। अगर थोड़ी भी ज्यादा वृद्धि कर दी जाए तो रेलवे के पास काफी पूंजी आ सकती है और वह अपना 'कायाकल्प' कर सकता है। किन्तु वोटों की राजनीति के चलते रेलवे को मोहरा बनाया जा रहा है, जो इसके लिए नुकसानदेह ही साबित होगा।

इतना सब होने के बावजूद आज भी रेलगाड़ी की सवारी हम सबको खूब लुभाती है। हर कोई इसमें यात्रा करना चाहता है व चाहेगा, आखिर क्यों नहीं आरामदेह जो है।

जिन्हें बस या अन्य साधनों से परेशानी होती है, वे इसी में बैठना पसंद करते हैं। तो फिर देर किस बात की, आप भी तैयार हो जाइए लेलगाली' में बैठने के लिए।

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