आज मंगल के दिन पाँचवीं अप्रैल को तीन घड़ी दिन रहे डाक का हरकारा आया। एक ख़त मुंशी साहिब का और एक ख़त तुम्हारा और एक ख़त बाबू साहिब का लाया।
बाबू साहिब के ख़त से और मतालिब तो मालूम हो गए, मगर एक अम्र में मैं हैरान हूँ कि क्या करूँ! यानी उन्होंने एक ख़त किसी शख्स का आया हुआ मेरे पास भेजा है और मुझको यह लिखा है कि उसको उल्टा मेरे पास भेज देना। हालाँकि खुद लिखते हैं कि मैं अप्रैल की चौथी को सपाटु या आबू जाऊँगा और आज पाँचवीं है। बस तो वह कल रवाना हो गए, अब मैं वह ख़त किसके पास भेजूँ? नाचार तुमको लिखता हूँ कि मैं ख़त को अपने पास रहने दूँगा।
जब वे आकर मुझको अपने आने की इत्तिला देंगे, तब वह ख़त उनको भेजूँगा। तुमको तरद्दुद न हो कि क्या ख़त है। ख़त नहीं, मेंढोलाल कायथ ग़म्माज़ की अर्जी थी बनाम महाराजा बैकुंठबासी, शिकायत-ए-बाबू साहिब पर मुश्तमल कि उसने लिखा था कि हरदेवसिंह जानी जी का दीवान और एक शायर दिल्ली का दीवान महाराज जयपुर के पास लाया है और इसके भेजने की यह वजह है कि पहले उनके लिखने से मुझको मालूम हुआ था कि किसी ने ऐसा कहा है।
मैंने उनको लिखा था कि तुमको मेरे सर की क़सम, अब हरदेवसिंह को बुलवा लो। मैं अम्र-ए-जुज्बी के वास्ते अम्र-ए-कुल्ली का बिगाड़ नहीं चाहता। उसके जवाब में उन्होंने वह अर्जी भेजी और लिख भेजा कि राजा मरने वाला ऐसा न था कि इन बातों पर निगाह करता। उसने यह अर्जी गुजरते ही मेरे पास भेज दी थी। फ़कत-बारे, इस ख़त के आने से जानी जी की तरफ से मेरी ख़ातिर जमा हो गई।
मगर अपनी फिक्र पड़ी, यानी बाबू साहिब आबू होंगे। अगर हरदेवसिंह फिरकर आएगा तो वह बग़ैर उनके मिले और उके कहे मुझ तक काहे को आएगा। खै़र वह भी लिखता है कि रावल कहीं गया हुआ है, उसके आए पर रुख्सत होगी। देखिए वह कब आवे और क्या फर्ज है कि उसके आते ही रुख्सत हो भी जाए। तुम्हारी ग़ज़ल पहुँची। यह अलबत्ता कुछ देर से पहुँचेगी हमारे पास। घबराना नहीं।
6 अप्रैल सन् 1853 ई. असदुल्ला