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ग़ालिब का ख़त-4

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परसों तुम्हारा ख़त आया। हाल जो मालूम था, वह फिर मालूम हुआ। ग़ज़लें देख रहा था। आज शाम को देखना तमाम हुआ था। ग़ज़लों को रख दिया था। चाहता था कि इनको बंद करके रहने दूँ, कल नौ बजे, दस बजे डाक में भेज दूँ, ख़त कुछ जरूरी नहीं। मैं इसी ख्याल में था कि डाक का हरकारा आया, 'जानी जी' का ख़त लाया। उसको पढ़ा। अब मुझको ज़रूर हुआ कि खुलासा उसका तुमको लिखूँ। यह रुक्क़ा लिखा।

खुलासा बतरीक-ए-एजाज़ यह है कि अ़र्जी गुज़री, दीवान गुज़रा, रावल जी के नाम का खत गुज़रा। राजा साहिब दीवान के देखने से खुश हुए। जानी जी ने जो एक मोतमिद अपना सादुल्ला खां वकील के साथ करा दिया है, वह मुंतज़िर जवाब का है। रावल जी नए एजेंट के इस्तक़बाल हो गए हैं। और अब एजेंट इलाका जयपुर की राह से नहीं आता, आगरा और ग्वालियर, करौली होता हुआ अजमेर आएगा। और इस राह में जयपुर का अ़मल नहीं। पस, चाहिए कि रावलजी उल्टे फिर आवें।

उनके आने पर अर्जी का जवाब मिलेगा और उसमें दीवान की रसीद भी होगी। भाई, जानी जी तुमको बहुत ढूँढते और तुम्हारे बग़ैर बहुत बेचैन हैं। मैं न तुमको कुछ कह सकता हूँ और न तुमको समझा सकता हूँ। तुम वह करो कि जिसमें सांप मरे और लाठी न टूटे। हाँ यह जानी जी ने लिखा था कि बहुत दिन के बाद मुंशी जी का ख़त आया है।
असद

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