युवराज सिंह : बुलंद हौंसलों का बुलंद बल्लेबाज
, शनिवार, 21 अप्रैल 2012 (12:55 IST)
युवराज सिंह, क्रिकेट जगत का एक जाना-माना और सफल नाम। भारतीय टीम के मैच विनर, फिनिशिंग प्लेयर, एक उम्दा फील्डर, एक आक्रामक बल्लेबाज और एक मस्तमौला इंसान। यही सब नाम युवराज उर्फ युवी की पहचान हैं। अपने बिंदास खेल के कारण वे कई युवाओं की पहली पसंद यूं भी हैं लेकिन हाल ही में कैंसर जैसी घातक बीमारी को हराकर उन्होंने अपनी फैन लिस्ट में कई और लोगों को शामिल कर लिया है।
युवी ने जिस तरह से इस नाजुक दौर को आत्म संयम के साथ जिया है उससे न केवल युवी को जीत मिली बल्कि वे कई लोगों के लिए प्रेरणा का कारण बन गए। उनके इस जज्बे से युवाओं में नए जोश और जुनून का संचार हुआ है और वे एक आदर्श के रूप में गिने जाने लगे हैं। युवराज के कैंसर की खबर ने उनके प्रशंसकों को चिंता में डाल दिया था, लेकिन युवी का एकदम स्वस्थ होकर भारत लौटना उनके चेहरों पर मुस्कान ले आया है और युवी उनके और भी खास हो गए हैं। प्रतिभावान युवी का जन्म 12 दिसंबर 1981 को चंडीगढ़ पंजाब में एक हुआ। उनके पिता योगराज सिंह एक क्रिकेटर और एक अभिनेता हैं। हालांकि उनके पिता ने केवल एक ही टेस्ट मैच खेला है इसके बाद चोट और अन्य कारणों से उन्हें खेल से बाहर होना पड़ा, लेकिन उन्हें इस बात का हमेशा दु:ख रहा और क्रिकेट में अपने सपनों को उन्होंने अपने बेटे युवराज के द्वारा पूरा किया। युवी को क्रिकेट जगत में लाने वाले उनके पिता ही थे। उन्हीं ने युवराज को क्रिकेट सिखाया, वे एक काफी सख्त गुरू साबित हुए। खुद युवी भी मानते हैं कि उनके पिता क्रिकेट सिखाते समय कई बार बहुत कठोर हो जाते थे, लेकिन यह उन्हीं की डांट-मार का ही फल है जो सफलता के रूप में युवी को मिला है और वे एक क्रिकेट का एक नायाब हीरा साबित हुए हैं। युवराज की मां का नाम शबनम सिंह हैं, युवी अपनी मां के बेहद करीब हैं और वे उनकी आदर्श हैं। उनकी मां ने ही कैंसर से लड़ने की ताकत युवी को दी, उनका हौंसला बढ़ाया, उनके हरदम साथ रहीं। अमेरिका में भी इलाज के दौरान उनकी मां शबनम युवी के साथ ही थीं। अपने करियर में युवराज लोगों की नजर में तब आए जब उन्होंने कूच-बिहार ट्रॉफी के फाइनल मैच में बिहार के खिलाफ पंजाब अंडर 19 टीम की तरफ से बल्लेबाजी करते हुए 358 रन बनाए। उस समय वे टीम के कप्तान थे। उनके इस शानदार प्रर्दशन के कारण साल 2000 में उन्हें अंडर 19 की वर्ल्ड कप टीम में जगह दी गई। मोहम्मद कैफ की कप्तानी वाली टीम में युवी भागीदार बने और भारत ने यह प्रतियोगिता जीत ली। इस टूर्नामेंट में भी युवी एक हीरो के रूप में सामने आए और इसी साल युवराज को बेंगलुरु के राष्ट्रीय क्रिकेट अकादमी के लिया चुना गया। आईसीसी नॉक-आउट ट्रॉफी के दौरान उन्होंने केन्या के खिलाफ अपना पहला अंतरराष्ट्रीय एकदिवसीय मैच खेला। इसी सिरीज के दूसरे मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ उन्होंने अपने बल्ले का दम दिखा दिया। इस मैच में उन्होंने 82 गेंदों में 84 रन बनाए। साल 2002 में नेटवेस्ट सिरीज के फाइनल मैच में मोहम्मद कैफ के साथ मिलकर उन्होंने जीत में अहम रोल निभाया। जब भारतीय टीम के दिग्गज बल्लेबाज कम स्कोर पर पैवेलियन लौट चुके थे तब कैफ और युवी ने टीम की डूबती नैया को पार लगाया। यह मैच युवी के क्रिकेट करियर का टर्निंग प्वॉइंट साबित हुआ। इसके बाद मैच दर मैच युवी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाते रहे और एक मैच विनर के रूप में सामने आने लगे। उन्हें मध्यमक्रम की रीढ़ कहा जाने लगा और इस उपनाम में वे खरे भी उतरते रहे। युवी ने अपने शानदार प्रदर्शन से न केवल दर्शकों का दिल जीता बल्कि कई मैचों की भी दिशा बदली। उन्हें खेलते हुए देखना वाकई एक रोमांच से भरपूर है। उनका खेल के प्रति समर्पण लोगों को एक नई ऊर्जा देता है। कभी खराब फील्डिंग के कारण अंडर 15 टीम से उन्हें बाहर कर दिया गया था, लेकिन अब वे एक विस्फोटक बल्लेबाज के साथ-साथ वे एक बेहतरीन फील्डर भी है। इतना ही नहीं उन्होंने गेंदबाजी में भी कमाल दिखाए हैं और उनकी गिनती एक बढ़िया ऑल-राउंडर में की जाती है। 2007
में टी-ट्वेंटी वर्ल्ड कप में इंग्लैंड के खिलाफ एक ओवर में 6 छक्के लगाकर युवी ने अपनी आक्रामक बल्लेबाजी का सबूत दिया। उनके लगाए गए इन 6 छक्कों का जादू आज भी लोगों के सर चढ़कर बोलता है। टी-ट्वेंटी में सबसे तेज अर्द्धशतक लगाने का रिकॉर्ड युवी के नाम ही है। उन्होंने सिर्फ 12 गेंदों में 50 रन बनाए थे। 2011
में वर्ल्ड कप जीतने वाली भारतीय टीम के असली हीरो युवी ही साबित हुए। वर्ल्ड कप में उनके शानदार प्रर्दशन के लिए उन्हें प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का खिताब दिया गया। जिसे उन्होंने अपने आदर्श सचिन को डेडीकेट किया। वर्ल्ड कप में युवी ने बल्लेबाजी में कमाल दिखाते हुए 362 रन बनाए और गेंदबाजी करते हुए 15 विकेट झटके। वर्ल्ड कप के दौरान से ही उन्हें अपने स्वास्थ्य में खराबी से रूबरू होना पड़ा जिसका असर बाद में उनके खेल पर भी दिखने लगा। कई बार हमने फील्ड पर युवी का गुस्से वाला रूप भी देखा है, लेकिन युवराज स्वभाव से बेहद मजाकिया हैं उन्हें साथी खिलाड़ियों के साथ मस्ती-मजाक करते रहना पसंद है। युवराज ने अपने करियर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। कई बार उन्हें आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा है, लेकिन इनसे विचलित हुए बिना युवी ने अपना ध्यान सिर्फ अपने खेल पर रखा और कड़ी मेहनत कर इन आलोचनाओं का जवाब दिया। कहा जा रहा है कि कैंसर के बाद युवी दोबारा क्रिकेट में वापिसी नहीं कर पाएंगे, लेकिन इन बातों की परवाह न करते हुए युवी को उम्मीद है कि वे जल्द वापिसी करेंगे। उनके फैन भी उन्हें जल्द फील्ड पर चौके-छक्के लगाते हुए देखना चाहते हैं।