कॉम्पिटिशन एक्जाम में टॉप करने वालों पर सभी रश्क करते हैं और सोचते हैं कि टॉपर्स में कुछ खास बात है, तभी ये ऊँचे मुकाम पर हैं, लेकिन जब यही बात टॉप करने वालों से पूछी जाती है तो वे कहते हैं कि वे खास नहीं हैं, बल्कि उन्होंने भी दूसरों की तरह ही तैयारी की है।
मैनेजेमेंट, फाइनेंस, मेडिकल, इंजीनियरिंग कॉम्पिटिशन के टॉपर्स मानते हैं कि उन्होंने अपनी तैयारी में अनुशासन और वक्त की पाबंदी को खास तवज्जों दी, जिसके कारण वे रेस में दूसरों से आगे निकल पाए।
साल 2009 में इंजीनियरिंग कॉम्पिटिशन एक्जाम के टॉपर्स रहे एक स्टूडेंट ने बताया कि एक्जाम के पहले ही मुझे इतना तो पता लग रहा था कि मेरा सिलेक्शन पक्का है, लेकिन फिर भी मैंने किसी भी टॉपिक को लाइट नहीं लिया और हर एक सब्जेक्ट और टॉपिक का लगातार रिविजन किया।
एक कोचिंग इंस्टिट्यूट के केमिस्ट्री फेकल्टी हबीब बनारसी का कहना है कि टॉपर्स होने के लिए स्टूडेंट को अपना कम्फर्ट जोन छोड़कर और कड़ी मेहनत करनी चाहिए। उसे अपना टाइम टेबल पूरी तरह फॉलो करना चाहिए। दरअसल टॉपर्स के लिए सेल्फ डिसिपिलिन जरूरी है।
सब्जेक्ट की सही समझ और उसे बेहतर तरीके से एक्सप्लेन करने से आप दौड़ में आगे निकल सकते हैं। करियर काउंसलर स्वाति का मानना है कि टॉपर्स होने के लिए सब्जेक्ट पर कमांड होना सबसे जरूरी बात है। इसके बाद आपका वे ऑफ प्रजेंटेशन मायने रखता है।