भारत की शतरंज ग्रेंड मास्टर कोनेरू हम्पी शतरंज में रूजि रखने वाले युवाओं के लिए एक मिसाल हैं। हम्पी ने अपनी प्रतिभा के दम पर साबित कर दिया कि अगर ठान लिया जाए तो कोई लक्ष्य मुश्किल नहीं है।
हम्पी दुनिया की दूसरे नंबर की शतरंज खिलाड़ी हैं। हम्पी ने भारतीय महिलाओं को शतरंज के प्रति नए सिरे से आकर्षित किया। हम्पी के नाम दुनिया की सबसे कम उम्र की ग्रेंडमास्टर बनने का भी रिकॉर्ड दर्ज है। उन्होंने 15 साल की उम्र में यह गौरव हासिल किया था।
हम्पी ने युवाओं में शतरंज का आकर्षण बढ़ाया है। उनके योगदान को देखते हुए 2003 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड, 2007 में पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया।
31 मार्च 1987 को विजयवाड़ा, आन्ध्रप्रदेश में जन्मीं हम्पी को बचपन से ही शंतरंज से लगाव रहा। उनके पिता कोनेरू अशोक ने उन्हें न केवल प्रोत्साहित किया, बल्कि वे उनके कोच भी रहे।
2001 में वर्ल्ड जूनियर गर्ल्स चेस चैंपियनशिप जीतकर हम्पी ने पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया।