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नीरज
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
हर नजर गमगीन है, हर होंठ ने धुनी रमाई,
हर गली वीरान जैसे हो कि बेवा की कलाई,
खुदकुशी कर मर रही है रोशनी तब आँगनों में
कर रहा है आदमी जब चाँद-तारों पर चढ़ाई,
फिर दीयों का दम न टूटे,
फिर किरन को तम न लूटे,
हम जले हैं तो धरा को जगमगाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
हम नहीं उनमें हवा के साथ जिनका साज बदले,
साज ही केवल नहीं अंदाज औ आवाज बदले,
उन फकीरों-सिरफिरों के हमसफर हम, हमउमर हम,
जो बादल जाएँ अगर तो तख्त बदले ताज बदले,
तुम सभी कुछ काम कर लो,
हर तरह बदनाम कर लो,
हम कहानी प्यार की पूरी सुनाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
नाम जिसका आँक गोरी हो गई मैली स्याही,
दे रहा है चाँद जिसके रूप की रोकर गवाही,
थाम जिसका हाथ चलना सीखती आँधी धरा पर
है खड़ा इतिहास जिसके द्वार पर बनकर सिपाही,
आदमी वह फिर न टूटे,
वक्त फिर उसको न लूटे,
जिंदगी की हम नई सूरत बनाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
हम न अपने आप ही आए दु:खों के इस नगर में,
था मिला तेरा निमंत्रण ही हमें आधे सफर में,
किंतु फिर भी लौट जाते हम बिना गाए यहाँ से
जो सभी को तू बराबर तौलता अपनी नजर में,
अब भले कुछ भी कहे तू,
खुश कि या नाखुश रहे तू,
गाँव भर को हम सही हालत बताकर ही उठेंगे
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।
इस सभा की साजिशों से तंग आकर, चोट खाकर
गीत गाए ही बिना जो हैं गए वापिस मुसाफिर
और वे जो हाथ में मिजराब पहने मुश्किलों की
दे रहे हैं जिंदगी के साज को सबसे नया स्वर
मौर तुम लाओ न लाओ,
नेग तुम पाओ न पाओ,
हम उन्हें इस दौर का दूल्हा बनाकर ही उठेंगे।
विश्व चाहे या न चाहे,
लोग समझें या न समझें,
आ गए हैं हम यहाँ तो गीत गाकर ही उठेंगे।