गुड़ी पड़वा का पर्व महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और गोवा सहित दक्षिण भारतीय राज्यों में उल्लास के साथ मनाया जाता है। चैत्र मास की शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन को नवसंवत्सर के रुप में पूरे देश भर में मनाया जाता है। हिंदू धर्म में इस पर्व को लेकर खास मान्यताएं हैं। गुड़ी ध्वज यानि झंडे को कहा जाता है और पड़वा, प्रतिपदा तिथि को। मान्यता है के इसी दिन ब्रह्मा जी ने सृष्टि का निर्माण किया था।
दक्षिण भारत में गुड़ी पड़वा की लोकप्रियता का कारण इस पर्व से जुड़ी कथाओं से समझा जा सकता है। दक्षिण भारत का क्षेत्र रामायण काल में बालि का शासन क्षेत्र हुआ करता था। जब भगवान श्री राम माता को पता चला की लंकापति रावण माता सीता का हरण करके ले गये हैं तो उन्हें वापस लाने के लिये उन्हें रावण की सेना से युद्ध करने के लिये एक सेना की आवश्यकता थी।
दक्षिण भारत में आने के बाद उनकी मुलाकात सुग्रीव से हुई। सुग्रीव ने बालि के कुशासन से उन्हें अवगत करवाते हुए अपनी असमर्थता जाहिर की। तब भगवान श्री राम ने बालि का वध कर दक्षिण भारत के लोगों को उनसे मुक्त करवाया। मान्यता है कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का ही वो दिन था। इसी कारण इस दिन गुड़ी यानि विजयपताका फहराई जाती है।
एक और प्राचीन कथा शालिवाहन के साथ भी जुड़ी है कि उन्होंने मिट्टी की सेना बनाकर उनमें प्राण फूंक दिये और दुश्मनों को पराजित किया। इसी दिन शालिवाहन शक का आरंभ भी माना जाता है।
इस दिन लोग अपने घरों को आम के पत्तों की बंदनवार से सजाते हैं। खासकर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में इसे लेकर बहुत उल्लास होता है। आम के पत्तों की यह बंदनवार लोगों में खुशहाल जीवन की एक उम्मीद जगाती है। अच्छी फसल होने व घर में समृद्धि आने की आशाएं भी लोगों को होती हैं। गुड़ी पड़वा की गिनती वर्ष के तीन मुंहतारे में होती है।
स्वास्थ्य के नज़रिये से भी इस पर्व का महत्व है। इसी कारण गुड़ी पड़वा के दिन बनाये जाने वाले व्यंजन खास तौर पर स्वास्थ्य वर्धक होते हैं। चाहे वह आंध्र प्रदेश में बांटा जाने वाला प्रसाद पच्चड़ी हो, या फिर महाराष्ट्र में बनाई जाने वाली मीठी रोटी पूरन पोली हो। पच्चड़ी के बारे में कहा जाता है कि खाली पेट इसके सेवन से चर्म रोग दूर होने के साथ साथ मनुष्य का स्वास्थ्य बेहतर होता है। वहीं मीठी रोटी भी गुड़, नीम के फूल, इमली, आम आदि से बनाई जाती है।
इसी दिन चूंकि नवरात्र भी आरंभ होते हैं इसलिये इस पर्व का उल्लास पूरे देश में अलग-अलग रुपों में देखने को मिलता है जो कि दुर्गा पूजा के साथ रामनवमी के दिन समाप्त होता है।
इस दिन लोगों अपने घरों की सफाई कर रंगोली, बंदनवार आदि से घर के आंगन व द्वार को सजाते हैं। घर के आगे एक गुड़ी यानि झंडा रखा जाता है। इसी में एक बर्तन पर स्वास्तिक चिन्ह बनाकर उस पर रेशम का कपड़ा लपेट कर उसे रखा जाता है। पारंपरिक वस्त्र पहने जाते हैं। सूर्यदेव की आराधना की जाती है। इस दिन सुंदरकांड, रामरक्षास्त्रोत, देवी भगवती के मंत्रों का जाप भी किया जाता है।