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गुड़ी पड़वा : हिन्दू नववर्ष का आरंभ, जानिए कैसे मनाएं

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पं. अशोक पँवार 'मयंक'

हिन्दू वर्ष नववर्ष का शुभारंभ चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। चैत्र महीने के पहले दिन नए साल की शुरुआत के रूप में गुड़ी पड़वा मनाते हैं।


 

एक डंडे में पीतल का बर्तन उलटकर रखते हैं जिस पर सुबह की पहली किरण पड़ती है। इसे गहरे रंग की रेशम की साड़ी व फूलों की माला से सजाया जाता है। इसे आम के पत्ते और नारियल से घर के बाहर उत्तोलक के रूप में टांगा जाता है।

यह वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक होता है। यह अंग्रेजी माह मार्च-अप्रैल के महीने में आता है। महाराष्ट्रीयनों के लिए गुड़ी पड़वा एक पवित्र दिन होता है। इस दिन को विवाह, गृह प्रवेश या नए व्यापार के उद्घाटन के लिए शुभ माना जाता है। इस दिन सोना, चांदी या संपत्ति खरीदी जाती है। इस साल अप्रैल की 8 तारीख के दिन गुड़ी पड़वा मनाया जाएगा।

वसंत के आगमन का संकेत
 
जब सूर्य अपने पूरे चरम पर होता है और किरणों के तेज से गर्मी इतनी बढ़ जाती है जैसे कि वह जाड़े को अपनी गर्मी से समाप्त कर देगी। यही वह समय होता है, जब किसान की फसल कटने के लिए पककर तैयार हो जाती है।

हवा में आम और कटहल की महक घुलने लगती है। पेड़ों पर बहार आ जाती है और उसकी महक पूरे वातावरण में हवा की तरह फैल जाती है। गहरे रंग और गंध की धूम वसंत के आगमन के समय का संकेत करती है और मौसम अपनी पूरी संपदा प्रदान कर देता है।
 


ब्रह्म पुराण के अनुसार यही वह दिन है, जब भगवान ब्रह्मा ने संसार की सृष्टि जलप्रलय के बाद की थी और इस दिन के चौथे दिन से समय शुरू हुआ था। सतयुग (सत्य और न्याय का युग) की शुरुआत हुई थी। 

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एक दूसरी दंतकथा है गुड़ी पड़वा को लेकर कि भगवान राम ने अयोध्या विजय से लौटने के बाद राजा बाली को खत्म किया था। भगवान विष्णु ने भी इसी दिन कहा था कि वे मत्स्य के रूप में अवतार लेंगे।

गुड़ी पड़वा का महत्व 
 
सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक महाराष्ट्रीयनों के घर के बाहर गुड़ी को देखा जाता है। गुड़ी की पूजा चंदन, हल्दी और सिन्दूर से की जाती है, फिर आसपास के लड़के और पुरुष एकसाथ मिलकर पिरामिड बनाते हैं और कोई एक व्यक्ति पिरामिड के ऊपर नारियल को फोड़ता है, जो कलश में रहता है।

महाराष्ट्रीयनों के लिए छत्रपति शिवाजी महाराज के मराठा सेना के विजय का प्रतीक गुड़ी है। गुड़ी घर में बुराई को रोकता है और समृद्धि और सौभाग्य का आगमन करता है। 'पड़वा' शब्द संस्कृत के प्रदुर्भ या प्रतिपद से आया है जिसका मतलब है चन्द्रमा के महीने का पहला दिन।

वसंत का आरंभ नए जीवन का ईश्वरीय प्रतीक है। युगादि धर्म और विज्ञान की मंजूरी है। प्रसिद्ध भारतीय गणितज्ञ ने बहुत बड़ी गणना करके चैत्र सुगंध युगादि में सूर्य उदय के समय नए साल का आरंभ बताया था। यह चन्द्रमा के उस दिन अपने कक्ष के बदलने के दृष्टांत पर आधारित है।

'युगादि' 2 शब्दों के मेल युग (युग) और आदि (शुरुआत) से बना है। यह त्योहार होली से ही शुरू होता है, जो पुराने के खत्म होने को बताता है। भक्तगण इस दिन विशेष प्रार्थना करते हैं और मंदिर में दान देते हैं। लोग युगादि के पवित्र दिन कुछ नए की शुरुआत करना अच्छा मानते हैं।


इस दिन कुछ लोग घर साफ करते हैं और नए कपड़े पहनते हैं। वे नए साल में समृद्धि की प्रार्थना करने के लिए मंदिरों में भी जाते हैं। 


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