हिन्दू नववर्ष का प्रारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से होता है। महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा कहते हैं हिन्दी भाषी क्षेत्रों में नवसंवत्सर कहते हैं। हर प्रांत में इसका नाम अलग-अलग है। गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है। आओ जानते हैं इसके संबंध में 10 रोचक जानकारी।
1. प्राचीन संवत : विक्रम संवत से पूर्व भारत में 6676 ईस्वी पूर्व से शुरू हुए प्राचीन सप्तर्षि संवत को हिंदुओं का सबसे प्राचीन संवत माना जाता है, जिसकी विधिवत शुरुआत 3076 ईस्वी पूर्व हुई मानी जाती है। सप्तर्षि के बाद नंबर आता है कृष्ण के जन्म की तिथि से कृष्ण कैलेंडर का फिर कलियुग संवत का। कलियुग के प्रारंभ के साथ कलियुग संवत की 3102 ईस्वी पूर्व में शुरुआत हुई थी।
2. विक्रम संवत : 58 ईसा पूर्व राजा विक्रमादित्य ने खगोलविदों की मदद से पूर्व प्रचलित कैलेंडर और हिन्दू पंचांग पर आधारित एक कैलेंडर को इजाद करवाया जिसे बाद में विक्रमादित्य संवत कहा जाने लगा। यही हिन्दुओं का सबसे शुद्ध कैलेंडर माना जाता है। इसे नव संवत्सर भी कहते हैं। संवत्सर के पांच प्रकार हैं सौर, चंद्र, नक्षत्र, सावन और अधिमास। विक्रम संवत में सभी का समावेश है।
3. सूर्य, चंद्र और नक्षत्र : हिन्दू कैलेंडर सौरमास, नक्षत्रमास, सावन माह और चंद्रमास पर आधारित है। मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क आदि सौरवर्ष के माह हैं। यह 365 दिनों का है। चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ आदि चंद्रवर्ष के माह हैं। चंद्र वर्ष 354 दिनों का होता है, जो चैत्र माह से शुरू होता है। सौरमास 365 दिन का और चंद्रमास 355 दिन का होने से प्रतिवर्ष 10 दिन का अंतर आ जाता है। इन दस दिनों को चंद्रमास ही माना जाता है। फिर भी ऐसे बढ़े हुए दिनों को मलमास या अधिमास कहते हैं।
तीसरा नक्षत्रमाह होता है। लगभग 27 दिनों का एक नक्षत्रमास होता है। नक्षत्रमास चित्रा नक्षत्र से प्रारंभ होता है। चित्रा नक्षत्र चैत्र मास में प्रारंभ होता है। सावन वर्ष 360 दिनों का होता है। इसमें एक माह की अवधि पूरे तीस दिन की होती है।
4. इसी कैलेंडर से 12 माह और 7 दिवस बने : 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर रखा जाता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए।
5. धुलेंडी से ही होती है प्रथम माह की शुरुआत : वैसे तो नववर्ष चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की एकम से ही प्रारंभ हो जाता है। इसीलिए भी चैत्र माह की एकम को धुलेंडी पर्व मनाया जाता है। परंतु जब चैत्र माह के शुक्ल पक्ष का प्रथम दिवस जिसे प्रतिपदा कहते हैं आता है तभी से नववर्ष मनाने का प्रचलन रहा है। ज्योतिषियों के अनुसार इसी दिन से चैत्री पंचांग का आरम्भ माना जाता है, क्योंकि चैत्र मास की पूर्णिमा का अंत चित्रा नक्षत्र में होने से इस चैत्र मास को नववर्ष का प्रथम दिन माना जाता है।
6. बदले जाते हैं बहिखाते : चैत्र माह से ही पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती है। इस धारणा का प्रचलन विश्व के प्रत्येक देश में आज भी जारी है। आज भी भारत में चैत्र माह में बहिखाते नए किए जाते हैं।
7. प्राकृति का नववर्ष : चैत्र माह अंग्रेजी कैलेंडर के मार्च और अप्रैल के मध्य होता है। 21 मार्च को पृथ्वी सूर्य का एक चक्कर पूरा कर लेती है, उस वक्त दिन और रात बराबर होते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि इसी दिन से धरती प्राकृतिक नववर्ष प्रारंभ होता है। इसीलिए इस दिन संपूर्ण भारतवर्ष में उत्सव होता है। मिठाई का वितरण होता है और कुछ नया या मांगलिक कार्य किया जाता है। नवर्ष से ही रात्रि की अपेक्षा दिन बड़ा होने लगता है।
8. सूर्योदय से प्रारंभ होता नववर्ष : रात्रि के अंधकार में नववर्ष का स्वागत नहीं होता। नया वर्ष सूरज की पहली किरण का स्वागत करके मनाया जाता है। अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार रात 12 बजे ही नववर्ष प्रारंभ मान लिया जाता है जो कि वैज्ञानिक नहीं है। दिन और रात को मिलाकर ही एक दिवस पूर्ण होता है। दिवस का प्रारंभ सूर्योदय से होता है और अगले सूर्योदय तक यह चलता है। सूर्यास्त को दिन और रात का संधिकाल मना जाता है।
9. नववर्ष की परंपरा : नववर्ष के ब्रह्ममुहूर्त में उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि से घर में सुगंधित वातावरण कर दिया जाता है। घर को ध्वज, पताका और तोरण से सजाया कर नववर्ष का स्वागत किया जाता है। द्वीज, कन्या, गाय, कौआ और कुत्ते को भोजन कराया जाता है। फिर सभी एक-दूसरे को नववर्ष की बधाई देते हैं। एक दूसरे को तिलक लगाते हैं। मिठाइयां बांटते हैं। नए संकल्प लिए जाते हैं।
10. पौराणिक महत्व : ब्रह्म पुराण अनुसार ब्रह्मा ने इस दिन सृष्टि रचना की शुरुआत की थी। इसी दिन से सतयुग की शुरुआत भी मानी जाती है। इसी दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार लिया था। इसी दिन से चैत्र नवरात्रि का प्रारंभ भी होता है। इसी दिन को भगवान राम का राज्याभिषेक हुआ था और पूरे अयोध्या नगर में विजय पताका फहराई गई थी।