हिन्दू कैलेंडर के अनुसार वर्ष का प्रथम माह चैत्र माह होता है। चैत्र माह कृष्ण पक्ष से प्रारंभ होता है। यानी इस माह की शुरुआत होलिका दहन के दूसरे दिन धुलेंडी से होती है। इसके 14 दिन बाद चैत्र माह का शुक्ल पक्ष प्रारंभ होता है तभी से हिन्दू नववर्ष प्रारंभ माना जाता है, जिसे महाराष्ट्र में गुड़ी पड़वा कहते हैं और यूं इसका कॉमन नाम नवसंवत्सर है। इसी दिन से नवरात्रि प्रारंभ हो जाती है।
गुड़ी पड़वा कब है? : अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार नवसंवत्सर 2 अप्रैल 2022 शनिवार से प्रारंभ हो रहा है। इस दिन चैत्र शुक्ल प्रतिपदा रहेगी।
हिंदू नववर्ष के शुभ मुहूर्त :
प्रतिपदा तिथि : आरम्भ अप्रैल 1, 2022 को 11:56:15 से समापन अप्रैल 2, 2022 को 12:00:31 पर। इस दिन राहुकाल सुबह 08:55:34 से 10:28:46 तक रहेगा। इसीलिए चैत्र नवरात्रि पर कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त 02 अप्रैल को सुबह 06.10 मिनट से 08.29 मिनट तक रहेगा।
अभिजीत मुहूर्त : सुबह 11:37 से दोपहर 12:27 तक।
विजय मुहूर्त : दोपहर 02:06 से 02:56 तक।
गोधूलि मुहूर्त : शाम 06:02 से 06:26 तक।
सायाह्न संध्या मुहूर्त : शाम 06:15 से 07:24 तक।
निशिता मुहूर्त : रात्रि 11:38 से 12:24 तक।
सूर्य के अर्घ्य की आसान विधि (Surya ko arghya dene ka tarika) :
1. सर्वप्रथम प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व शुद्ध होकर स्नान करें।
2. तत्पश्चात उदित होते सूर्य के समक्ष आसन लगाए।
3. आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।
4. उसी जल में मिश्री भी मिलाएं। कहा जाता है कि सूर्य को मीठा जल चढ़ाने से जन्मकुंडली के दूषित मंगल का उपचार होता है।
5. मंगल शुभ हो तब उसकी शुभता में वृद्दि होती है।
6. जैसे ही पूर्व दिशा में सूर्यागमन से पहले नारंगी किरणें प्रस्फूटित होती दिखाई दें, आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़ कर इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें।
7. प्रात:काल का सूर्य कोमल होता है उसे सीधे देखने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
8. सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा आसन पर आ गिरे ना कि जमीन पर।
9. जमीन पर जलधारा गिरने से जल में समाहित सूर्य-ऊर्जा धरती में चली जाएगी और सूर्य अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे।
10. अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पाठ करें-
'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।' (11 बार)
11. ' ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय।
मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा: ।।' (3 बार)
12. तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें।
13. अपने स्थान पर ही तीन बार घुम कर परिक्रमा करें।
14. आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।