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ज्यादा वोट शेयर के बाद भी भाजपा नर्वस 99 की शिकार

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आमतौर पर चुनावों में ऐसा कम ही देखने को मिलता है। चुनाव में जीत दर्ज करने वाली भाजपा का वोट शेयर  कांग्रेस से काफी ज्यादा रहा, फिर भी उसकी सीटें घट गईं। पूरे प्रदेश की बात की जाए तो भाजपा को 49.1%  वोट मिले जो 2012 में मिले 47.9% वोट से ज्यादा हैं। जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव में मिले 59.1%  वोट शेयर से की जाए तो पार्टी को खासा नुकसान हुआ है। कांग्रेस ने भी पिछले चुनाव के मुकाबले अपना वोट  शेयर बढ़ाया है। पांच साल पहले पार्टी को 38.9% वोट मिले थे, जो इस चुनाव में बढ़कर 41.4% हो गए। 
 
लेकिन, सबसे हैरान करने वाली बात यह है कि उन इलाकों में भी भाजपा का वोट शेयर कांग्रेस से कुछ ज्यादा  रहा, जहां कांग्रेस ने ज्यादा सीटें जीती हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण इलाकों में कांग्रेस का प्रदर्शन सीटों के  हिसाब से तो अच्छा रहा, लेकिन वोट शेयर के मामले में भाजपा ही आगे रही। ऐसे में एक स्वाभाविक सवाल  यह है कि हर क्षेत्र में वोट शेयर कांग्रेस से बेहतर होने के बावजूद भाजपा को बड़ी जीत क्यों नहीं मिली? 
 
भाजपा बहुमत के आंकड़े से सिर्फ 7 सीटें ही ज्यादा क्यों जुटा पाई? इसकी सबसे बड़ी वजह यह रही कि पार्टी  ने शहरी क्षेत्रों की कई सीटों पर बड़े अंतर से जीत हासिल की है। 33 शहरी सीटों पर बीजेपी उम्मीदवारों की  जीत का औसत अंतर लगभग 47,400 मत रहा। 
 
इसी तरह ग्रामीण इलाकों में भी भाजपा के उम्मीदवार औसत 26,000 वोटों से जीते। ऐसे में पार्टी को वोट तो  खूब मिले, लेकिन उससे सीटें नहीं बढ़ीं। दूसरी तरफ कांग्रेस उम्मीदवार जीते तो जरूर, लेकिन उनकी जीत का  अंतर ज्यादा नहीं रहा। यही वजह है कि कांग्रेस उन इलाकों में भी बीजेपी से ज्यादा सीटें जीतने में कामयाब  रही जहां उसका वोट शेयर भाजपा से कम रहा। 
 
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इसका सबसे अच्‍छा उदाहरण है सौराष्ट्र, जहां भाजपा को कांग्रेस की 30 सीटों के मुकाबले 23 सीटें मिलीं, जबकि उसका वोट शेयर (45.9%) कांग्रेस के वोट शेयर (45.5%) से कुछ ज्यादा ही रहा। इसी तरह का ट्रेंड  उत्तर गुजरात में भी देखने को मिला। यहां बीजेपी का वोट शेयर 45.1% रहा जबकि कांग्रेस को 44.9% वोट  मिले। फिर भी भाजपा को 14 सीटें मिलीं पर कांग्रेस को 17 सीटें। 
 
पटेलों की कथित नाराजगी को चुनाव में बड़ा मुद्दा बताया जा रहा था, लेकिन भाजपा ने पाटीदारों की बहुलता  वाली 52 सीटों में से 28 सीटें जीतीं। हालांकि क्षेत्रवार बात करें तो इनमें से सिर्फ 9 सीटें सौराष्ट्र-कच्छ से  आती हैं, जबकि कांग्रेस ने 23 ऐसी सीटें जीतीं जहां पटेल बड़ी संख्या में हैं और ये सभी सीटें सौराष्ट्र-कच्छ की  हैं।
 
लेकिन इन सभी विरोधाभाषों के बावजूद भाजपा के लिए खुशी की बात यह है कि कांटे के चुनाव होने के  बावजूद गुजरात के वोटों के सभी मानकों पर भाजपा, कांग्रेस से आगे रही। हालांकि भाजपा को भी उम्मीद नहीं  रही होगी कि कांग्रेस 80 सीटें भी हासिल कर लेगी। 

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