सर्वोच्च न्यायालय से अयोध्या मामले की सुनवाई जुलाई 2019 से करने की गुहार लगाकर सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील कपिल सिब्बल ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को एक बड़ा चुनावी मुद्दा थमा दिया। मोदी ने भी इसे चुनावी मुद्दा बनाने में कतई देर नहीं की।
मोदी ने अगले ही दिन यह कहकर कपिल सिब्बल को आड़े हाथों ले लिया कि एक वकील के रूप में वह किसी का केस लड़ने के लिए स्वतंत्र हैं, लेकिन लोकसभा चुनाव के बाद अयोध्या मामले की सुनवाई की बात कहकर उन्होंने साफ कर दिया है कि वे कांग्रेस की ओर से लड़ रहे हैं।
गुजरात की चुनावी सभा में नरेन्द्र मोदी ने कहा कि वोटों की परवाह किए बिना हमने तीन तलाक के मुद्दे पर फैसला लिया। कपिल सिब्बल का यह मामला ऐसे समय में सामने आया है जब कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मंदिर मंदिर जाकर अपनी छवि सॉफ्ट हिन्दू के रूप में रख रहे हैं, वहीं जीएसटी और नोटबंदी के मुद्दे पर केन्द्र की भाजपा सरकार घेरने में काफी हद तक सफल भी रहे हैं।
राजनीतिक विश्लेषकों का तो यह भी मानना है कि सिब्बल ने न सिर्फ मोदी को बड़ा मुद्दा थमा दिया बल्कि कांग्रेस के लिए यह सेल्फ या 'आत्मघाती गोल' साबित होगा।
इस संबंध में जानकारों के अपने तर्क भी हैं। उनका कहना है कि पिछले चुनाव में जब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नरेन्द्र मोदी के लिए 'मौत का सौदागर' जैसे शब्द का उपयोग किया था तो मोदी ने उसे अपने पक्ष में जमकर भुनाया था और चुनाव का परिणाम सब जानते हैं। अत: कोई आश्चर्य नहीं सिब्बल का बयान पूरे किए कराए पर पानी फेर दे।
क्या कहा कपिल सिब्बल ने : कपिल सिब्बल चाहते थे कि इस मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद हो। उन्होंने कहा कि कृपया इसके लिए जुलाई 2019 की तारीख निर्धारित कीजिए और हम आपको भरोसा दिलाते हैं कि हम एक बार भी सुनवाई स्थगित करने का आग्रह नहीं करेंगे। एक अन्य वकील दुष्यंत दवे ने इन अपीलों पर सुनवाई की जल्दी पर सवाल उठाते हुए कहा कि यह भी तथ्य है कि राम मंदिर का मुद्दा भाजपा के चुनाव घोषणा पत्र का हिस्सा था।