गुरुदक्षिणा का अर्थ है कि गुरु से प्राप्त की गई शिक्षा एवं ज्ञान का प्रचार-प्रसार व उसका सही उपयोग कर जनकल्याण में लगाएं। मूलतः गुरु दक्षिणा का अर्थ शिष्य की परीक्षा के संदर्भ में भी लिया जाता है। गुरुदक्षिणा गुरु के प्रति सम्मान व समर्पण भाव है। गुरु के प्रति सही दक्षिणा यही है कि गुरु अब चाहता है कि तुम खुद गुरु बनो। आओ जानते हैं इस संबंध में एक कथा।
प्राचीनकाल के एक गुरु अपने आश्रम को लेकर बहुत चिंतित थे। गुरु वृद्ध हो चले थे और अब शेष जीवन हिमालय में ही बिताना चाहते थे, लेकिन उन्हें यह चिंता सताए जा रही थी कि मेरी जगह कौन योग्य उत्तराधिकारी हो, जो आश्रम को ठीक तरह से संचालित कर सके।
उस आश्रम में दो योग्य शिष्य थे और दोनों ही गुरु को प्रिय थे। दोनों को गुरु ने बुलाया और कहा- शिष्यों मैं तीर्थ पर जा रहा हूं और गुरुदक्षिणा के रूप में तुमसे बस इतना ही मांगता हूं कि यह दो मुट्ठी गेहूं है। एक-एक मुट्ठी तुम दोनों अपने पास संभालकर रखो और जब मैं आऊं तो मुझे यह दो मुठ्ठी गेहूं वापस करना है। जो शिष्य मुझे अपने गेहूं सुरक्षित वापस कर देगा, मैं उसे ही इस गुरुकुल का गुरु नियुक्त करूंगा। दोनों शिष्यों ने गुरु की आज्ञा को शिरोधार्य रखा और गुरु को विदा किया।
एक शिष्य गुरु को भगवान मानता था। उसने तो गुरु के दिए हुए एक मुट्ठी गेहूं को पुट्टल बांधकर एक आलिए में सुरक्षित रख दिए और रोज उसकी पूजा करने लगा। दूसरा शिष्य जो गुरु को ज्ञान का देवता मानता था उसने उन एक मुट्ठी गेहूं को ले जाकर गुरुकुल के पीछे खेत में बो दिए।
कुछ महीनों बाद जब गुरु आए तो उन्होंने जो शिष्य गुरु को भगवान मानता था उससे अपने एक मुट्ठी गेहूं मांगे। उस शिष्य ने गुरु को ले जाकर आलिए में रखी गेहूं की पुट्टल बताई जिसकी वह रोज पूजा करता था। गुरु ने देखा कि उस पुट्टल के गेहूं सड़ चुके हैं और अब वे किसी काम के नहीं रहे।
तब गुरु ने उस शिष्य को जो गुरु को ज्ञान का देवता मानता था उससे अपने गेहूं दिखाने के लिए कहा। उसने गुरु को आश्रम के पीछे ले जाकर कहा- गुरुदेव यह लहलहाती जो फसल देख रहे हैं यही आपके एक मुट्ठी गेहूं हैं और मुझे क्षमा करें कि जो गेहूं आप दे गए थे वही गेहूं मैं दे नहीं सकता।
लहलहाती फसल को देखकर गुरु का चित्त प्रसन्न हो गया और उन्होंने कहा जो शिष्य गुरु के ज्ञान को फैलाता है, बांटता है वही श्रेष्ठ उत्तराधिकारी होने का पात्र है। मूलतः गुरु के प्रति सच्ची दक्षिणा यही है। सामान्य अर्थ में गुरुदक्षिणा का अर्थ पारितोषिक के रूप में लिया जाता है, किंतु गुरुदक्षिणा का वास्तविक अर्थ कहीं ज्यादा व्यापक है। महज पारितोषिक नहीं।
गुरुदक्षिणा उस वक्त दी जाती है या गुरु उस वक्त दक्षिणा लेता है जब शिष्य में सम्पूर्णता आ जाती है। अर्थात जब शिष्य गुरु होने लायक स्थिति में होता है। गुरु के पास का समग्र ज्ञान जब शिष्य ग्रहण कर लेता है और जब गुरु के पास कुछ भी देने के लिए शेष नहीं रह जाता तब गुरुदक्षिणा सार्थक होती है।