उत्तराखंड का एक शहर हरिद्वार जहां लगता है विश्व प्रसिद्ध कुंभ मेला। गंगा के तट पर बसा यह नगर बहुत ही खूबसूरत और प्राकृतिक छटा से परिपूर्ण है। आओ जानते हैं हरिद्वार के संबंध में 10 रोचक बातें।
1. हरिद्वार का प्राचीन नाम है मायानगर या मायापुरी। हरिद्वार अर्थात हरि के घर का द्वार। इस गंगा द्वार भी कहते हैं। गंगा हरि के घर से निकलकर यहां मैदानी इलाके में पहुंचती है। हरि अर्थात बद्रीनाथ विष्णु भगवान जो पहाड़ों पर स्थित है। हरिद्वार का एक भाग आज भी 'मायापुरी' नाम से प्रसिद्ध है।
2. हरिद्वार को भारत की सात प्राचीन नगरियों में से एक माना जाता है। पुराणों में इसकी सप्त मोक्षदायिनी पुरियों में गणना की जाती थी।
3. हरिद्वार गंगा के पावन तट पर बसा है। कहा जाता है समुद्र मंथन से प्राप्त किया गया अमृत यहाँ हरिद्वार के हर की पैड़ी स्थान पर गिरा था। इसीलिए यहां पर कुंभ पर्व का आयोजन होता है।
4. हरिद्वार को 3 देवताओं ने अपनी उपस्थिति से पवित्र किया है ब्रह्मा, विष्णु और महेश। गंगा के उत्तरी भाग में बसे हुए 'बदरीनारायण' तथा 'केदारनाथ' नामक भगवान विष्णु और शिव के पवित्र तीर्थों के लिए इसी स्थान से आगे मार्ग जाता है। इसीलिए इसे 'हरिद्वार' तथा 'हरद्वार' दोनों ही नामों से पुकारा जाता है। वास्तव में इसका नाम 'गेटवे ऑफ़ द गॉड्स' है।
5. कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने हर की पैड़ी के ऊपरी दीवार में पत्थर पर अपना पैर प्रिंट किया है, जहां पवित्र गंगा हर समय उसे छूती है।
6. कनखल हरिद्वार का सबसे प्राचीन स्थान है। इसका उल्लेख पुराणों में मिलता है। यह स्थान हरिद्वार से लगभग 3.5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वर्तमान में कनखल हरिद्वार की उपनगरी के रूप में जाना जाता है। कनखल का इतिहास महाभारत और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कनखल ही वो जगह है जहां राजा दक्ष ने प्रसिद्ध यज्ञ किया था और सती ने अपने पिता द्वारा भगवान शिव का अपमान करने पर उस यज्ञ में खुद को दाह कर लिया था।
7. हरिद्वार को पंचपुरी भी कहा जाता है। पंचपुरी में मायादेवी मंदिर के आसपास के 5 छोटे नगर सम्मिलित हैं। कनखल उनमें से ही एक है।
8. हरिद्वार में शांतिकुंभ स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तप किया था तो दूसरी ओर सप्तऋषि आश्रम में सप्त ऋषियों ने तपस्या की थी। यह स्थान कई ऋषि और मुनियों की तपोभूमि रहा है। इसके अलावा श्रीराम के भाई लक्ष्मण जी ने हरिद्वार में जूट की रस्सियों के सहारे नदी को पार किया था, जिसे आज लक्ष्मण झुला कहा जाता है। कपिल मुनि ने भी यहां तपस्या की थी। इसलिए इस स्थान को कपिलास्थान भी कहा जाता है। कहते हैं कि राजा श्वेत ने हर की पौड़ी पर भगवान ब्रह्मा की तपस्या की थी। राजा की भक्ति से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने जब वरदान मांगने को कहा तो राजा ने वरदान मांगा कि इस स्थान को ईश्वर के नाम से जाना जाए। तब से हर की पौड़ी के जल को ब्रह्मकुण्ड के नाम से भी जाना जाने लगा।
9. यहां शक्ति त्रिकोण है। शक्ति त्रिकोण अर्थात पहला मनसा देवी का खास स्थान, दूसरा चंडी देवी मंदिर और तीसरा माता सती का शक्तिपीठ जिसे मायादेवी शक्तिपीठ कहते हैं। यहां माता सती का हृदय और नाभि गिरे थे। माया देवी को हरिद्वार की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है।
10. हरिद्वार में ही विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती आरती होती है। हरिद्वार की तर्ज पर बाद में गंगा आरती का आयोजन ऋषिकेश, वाराणसी, प्रयाग और चित्रकूट में भी होने लगा। हरिद्वार की गंगा आरती को देखते हुए 1991 में वाराणसी में दशाश्वमेध घाट पर प्रारंभ हुई थी।