Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

हिंदी कविता के एक युग का अवसान

हमें फॉलो करें हिंदी कविता के एक युग का अवसान
ND

सीधे सरल शब्दों को कविता के पात्र में डालकर साहित्य रसिकों को 'काव्य रस' चखाने वाले हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. हरिवंश राय बच्चन के निधन के साथ ही हिंदी कविता का एक सूर्य अस्त हो गया।

प्रखर छायावाद और आधुनिक प्रगतिवाद के प्रमुख स्तंभ माने जाने वाले डॉ. बच्चन ने लंबी बीमारी के बाद 96 वर्ष की अवस्था में अपने जुहू स्थित आवास 'प्रतीक्षा' में अंतिम साँस ली थी। उनके निधन के साथ ही करीब पाँच दशक तक बही कविता की एक अलग धारा भले ही रुक गई हो, लेकिन वह अपनी रचनाओं के माध्यम से सदा अमर रहेंगे।

डॉ. हरिवंशराय बच्चन का जन्म 27 नवंबर 1907 को प्रयाग के पास अमोढ़ गाँव में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सरकारी पाठशाला, कायस्थ पाठशाला और बाद की पढ़ाई गवर्नमेंट कॉलेज इलाहाबाद और काशी हिंदू विश्वविद्यालय में हुई थी।

वह 1941 से 52 तक इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रवक्ता रहे। उन्होंने 1952 से 54 तक इंग्लैंड में रह कर कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की। शायद कम ही लोगों को पता होगा कि हिंदी के इस विद्वान ने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से डब्ल्यूबी येट्स के काम पर शोध कर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की और यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह पहले भारतीय रहे।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में डाक्टरेट की उपाधि लेने के बाद उन्होंने हिंदी को भारतीय जन की आत्मा की भाषा मानते हुए उसी में साहित्य सृजन का फैसला किया और आजीवन हिंदी साहित्य को समृद्ध करने में लगे रहे कैम्ब्रिज से लौटकर उन्होंने एक वर्ष अपने पूर्व पद पर काम किया।

उन्होंने कुछ माह तक आकाशवाणी के इलाहाबाद केंद्र में काम किया। वह 16 वर्ष तक दिल्ली में रहे और बाद में दस वर्ष तक विदेश मंत्रालय में हिंदी विशेषज्ञ के पद पर रहे। हिंदी के इस आधुनिक गीतकार को राज्यसभा में उन्हें छह वर्ष के लिए विशेष सदस्य के रूप में मनोनीत किया गया था।

वर्ष 1972 से 82 तक वह अपने दोनों पुत्रों अमिताभ और अजिताभ के पास दिल्ली और मुंबई में रहते थे। बाद में वह दिल्ली चले गए और गुलमोहर पार्क में 'सोपान' में रहने लगे तीस के दशक से 1983 तक हिंदी काव्य और साहित्य की सेवा में लगे रहे।

बच्चन द्वारा 1935 में लिखी गई 'मधुशाला' हिंदी काव्य की कालजयी रचना मानी जाती है। आम लोगों के समझ में आ सकने वाली मधुशाला को आज भी गुनगुनाया जाता है। जब खुद डॉ. बच्चन इसे गाकर सुनाते तो वे क्षण अद्भुत होते थे।

उन्होंने शराब और मयखाने के माध्यम से प्रेम, सौंदर्य, दर्द, दुख, मृत्यु और जीवन की सभी झाँकियों को शब्दों में पिरोकर जिस खूबसूरती से पेश किया, उसका नमूना कहीं और नहीं मिलता। उन्होंने हमेशा आम आदमी के लिए सरल भाषा में लिखा मधुशाला के बाद से काव्य में सरल भाषा का बोध हुआ।

डॉ. बच्चन किसी साहित्य आंदोलन से नहीं जुड़े और हर विधा को अपनाना। यश चोपड़ा की फिल्म 'सिलसिला' का सुपरहिट गीत 'रंग बरसे भीगे चुनरवाली, रंग बरसे..' उनके रूमानी कलम की कहानी कहता है। उन्होंने अग्निपथ सहित कुछ फिल्मों के लिए गीत लिखे।

डॉ. बच्चन को उनकी कृति 'दो चट्टानें' पर 1968 में हिन्दी कविता का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। बिड़ला फाउंडेशन ने उनकी आत्मकथा के लिए उन्हें सरस्वती सम्मान दिया था और 1968 में ही उन्हें 'सोवियतलैंड नेहरू और एफ्रो-एशियाई सम्मेलन के कमल पुरस्कार से भी नवाजा गया था। साहित्य सम्मेलन ने उन्हें साहित्य वाचस्पति पुरस्कार दिया। राष्ट्रपति ने पद्म भूषण से सम्मानित किया।

दशकों तक हिंदी की सेवा करने वाले डॉ. बच्चन को उनकी आत्मकथा पर 1991 में के के बिड़ला फाउंडेशन की ओर से तीन लाख रुपए का सबसे बड़ा 'सरस्वती सम्मान' पुरस्कार दिया गया। डॉ. बच्चन ने अपने काव्यकाल के आरंभ से 1983 तक कई श्रेष्ठ कविताएँ लिखीं जिनमें हिंदी कविता को नया आयाम देने वाली 'मधुशाला' सबसे लोकप्रिय मानी जाती है।

उनके समग्र कविता संग्रह में मधुशाला से लेकर मधुकलश, निशा निमंत्रण, आकुल अंतर, बंगाल का काल, खादी के फूल, धार के इधर-उधर, त्रिभंगिमा, बहुत दिन बीते, जाल समेटा, प्रणय पत्रिका, एकांत संगीत, मिलन यामिनी, बुध व नाचघर, सूत की माला, आरती और अंगारे आदि प्रमुख हैं। डॉ. बच्चन की कविताओं ने हमेशा सभी प्रवृत्तियों का प्रतिनिधित्व किया।

अपनों के बीच बाबूजी कहे जाने वाले डॉ. बच्चन की तीन खंडों की आत्मकथा और नौ खंडों में बच्चन रचनावली प्रकाशित हुई है। एक ओर उन्होंने महान अंग्रेजी नाटककार शेक्सपीयर के दुखांत नाटकों का हिन्दी अनुवाद किया तो दूसरी ओर 'चौंसठ रूसी कविताएँ' के नाम से उनका रूसी कविताओं का हिंदी संग्रह भी प्रकाशित हुआ। उनकी कविताओं में आरंभिक छायावाद और रहस्यवाद, प्रगतिवाद, प्रयोगवाद और नई कविताएं का एक साथ समावेश रहा।

डॉ. बच्चन के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और फिर इंदिरा गांधी से अच्छे संबंध रहे। अमिताभ बच्चन के लोकप्रियता की बुलंदी पर होने के बाद भी हरिवंश राय को हमेशा से ही डॉ. बच्चन कह कर बुलाया जाता रहा। अमिताभ भी कई सार्वजनिक अवसरों पर उनकी कविताएं पढ़ते जिनमें फरमाइश के साथ मधुशाला जरूर होती, लेकिन अमिताभ के शब्दों में उनके पिता की एक कविता जीवन के असली रंग को प्रदर्शित करती है।

जीवन की आपाधापी में
कब वक्त मिला, कुछ बैठ सोच सकूँ
अब तक जो कहा, किया
माना उसमें क्या भलाबुरा।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi