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क्या होता है गले का संक्रमण

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गला खराब होना, गले में काँटे जैसे पड़ना, खराश महसूस होती रहना आदि है तो सामान्य प्रक्रिया, लेकिन तुरंत ध्यान न दिया जाए तो गंभीर परिणाम देती है।

वायरस या बैक्टीरिया के संक्रमण से गला खराब हो जाता है, फ्लू हो तो गले पर असर होता है। ज्यादा ठंडा पेय पीने से, ठंडे पर गरम पीने से या गरम पर ठंडा पीने से तथा पसीने में पानी पीने से भी गला खराब हो जाता है।

गला दो तरह से खराब हो सकता है, पहला तो यह कि अगर कौक्स्सैकी वायरस का संक्रमण हो तो टांसिल व तालू पर छोटी-छोटी गाँठें नजर आती हैं और इनमें पीप भर जाता है, बाद में ये फूट जाती हैं और गले में बहुत दर्द होता है।

दूसरा कारण, स्टैप्टोकौकल बैक्टीरिया का संक्रमण होता है, इससे टांसिल्स में सूजन आ जाती है, गले में सफेद परत सी जम जाती है, बुखार भी आ सकता है, तबीयत ठीक नहीं लगती और साँस में बदबू पैदा हो जाती है, जो स्वयं को भी महसूस होती है।

यदि किसी को बुखार हो तो भी गले में खराबी आ जाती है और कुछ भी निगलने में परेशानी होती है।

कई बार रोगी के छींकनें, खाँसने से जीवाणु वायु में फैल जाते हैं और पास वाले स्वस्थ व्यक्ति को अपनी चपेट में ले लेते हैं। जब व्यक्ति संक्रमित हो जाता है तो दो-तीन दिन बाद रोग के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। कई लोगों का तो पूरा गला लाल हो जाता है और थूक तक निगलने में परेशानी होती है।

जब गला खराब हो जाता है तो लिम्फ ग्रंथियों में सूजन आ जाती है। पूरा कंठ लाल हो जाता है, टांसिल बढ़ जाते हैं, सर्दी लगकर बुखार भी आ सकता है। गले का दर्द कान तक महसूस होता है, नाक से पानी बहता है या नाक बंद हो जाती है, कभी-कभी सूखी खाँसी भी चलती है।

उपचार का तरीका
उपचार करने से पूर्व डॉक्टर यह जाँच करता है कि इन्फेक्शन वायरल है या बैक्टीरियल, उसी के अनुसार ट्रीटमेंट दिया जाता है।

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