ज्यादातर रंग केमिकल्स से तैयार किए जाते हैं, जिसमें कुछ ऐसे हानिकारक तत्व मिले होते हैं, जिनका सीधा उपयोग त्वचा को नुकसान पहुँचाता है। इसे पानी में मिलाकर लगाया जाए, तो कम असर होता है, लेकिन रंगों को पानी में घोले बिना त्वचा पर लगाने से केमिकल्स के कण सीधे त्वचा के संपर्क में आते हैं और त्वचा जल जाती है। दुष्प्रभाव* त्वचा का लाल हो जाना, दाने निकल आना।* त्वचा पर खुजली या जलन होना।* त्वचा छिल जाना, दरार पड़ना या सूख जाना।* त्वचा का रंग बदल जाना (काला, सफेद)।* रंगों से एलर्जी होने पर आँखों का सूजना, होंठ सूजना, आँखों से पानी आ सकता है।* नाखून के आसपास तथा हथेलियों में एलर्जी हो सकती है।आँखों को बचाएँ
रंगों से खेलते समय बाहरी तत्व आँखों में प्रवेश कर सकते हैं। नतीजा आँखों में लंबे समय तक किरकिरी महसूस होना, आँखों से पानी बहना और आँखों में लाली आना जैसे लक्षण होते हैं। इसके पश्चात आँखों को मलने या जोर से रगड़ने से कॉर्नियल इपीथीलियम को नुकसान पहुँचता है, जिससे कॉर्नियल अल्सर हो सकता है।
रंग या पानी भरे गुब्बारे फेंकने, कीचड़, ग्रीस या पत्थर फेंककर होली खेलना भी आँखों के लिए खतरनाक है। इससे कंजक्टाइवल हेमरेज भी हो सकता है। कैटेरेक्ट, रैटीना और मेक्यूला को हानि पहुँचने से आँखों की रोशनी भी जा सकती है।
परेशानी होने पर
* आँखों को मलने या रगड़ने के बजाय बार-बार पानी से धोएँ।
* आँखों में एंटीबायोटिक मल्हम लगाएँ।
* आँखों के विशेषज्ञ से जल्द से जल्द संपर्क करें।
* अच्छी क्वालिटी के वेजिटेबल रंग उपयोग करें।
जरूरी है कि हम चेत जाएँ और होली मनाएँ कुछ दोस्ताना अंदाज में। दोस्ती फूलों से, प्रकृति से और उन सभी चीजों से जो नुकसान न पहुँचाएँ। यह एक अच्छी बात है कि लोग अब होली के प्राकृतिक रंगों के प्रति जागरूक बन रहे हैं, पर इस चेतना को और फैलाना होगा।