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हास्य चिकित्सा पद्धति : मुस्कुरोपैथी

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आपाधापी के युग में मनुष्य सुबह से शाम तक अवसाद में रहता है। इस अवसाद के कारण शारीरिक-मानसिक बीमारियाँ लगी रहती हैं। फिर आज मनुष्य का अहं भी बहुत बढ़ गया है, उसकी आवश्यकताएँ बढ़ गई हैं। जब आवश्यकताएँ पूर्ण नहीं होतीं या अहं को चोट लगती है तो उसे बहुत क्रोध आता है।

क्रोध की मात्रा के अनुसार ही उसका असर रहता है- 4 घंटे, 8 घंटे, 12 घंटे। ऐसे में कुछ यौगिक क्रियाएँ मन पर काबू पाने में सहायक हो सकती हैं।

जैसे- आसन, प्राणायाम, ध्यान, डीप ब्रीदिंग, योग निद्रा, शवासन, हास्य योग। इसमें से हास्य योग एक आसान व सहज क्रिया है। इसके लिए दिनभर में कम से कम एक वक्त दिल खोलकर हँसना चाहिए। पुराने समय में राजा-महाराजाओं के दरबार में भी विदूषक व बहुरूपिया रूप बदलकर या चुटकुले सुनाकर लोगों को हँसाते थे, उनका मनोरंजन करते थे। आजकल सभी महानगरों में हास्य क्लब शुरू हो गए हैं। योग सेंटर्स पर भी हास्य की क्रिया करवाई जाती हैं।

हँसने से आंतरिक भागों की चेहरे की मांसपेशियों को बहुत लाभ होता है। इससे लेक्टिव एसिड (दूषित पदार्थ) बाहर जाता है। मस्तिष्क की अल्फा वेन एक्टिव होती है तथा बीटा वेन डाउन होती है, जिससे आनंद की अनुभूति होती है। पिट्यूटरी ग्लेंड्स, एड्रीनल ग्लेंड्स प्रभावित होती हैं जिससे भय, तनाव और अवसाद दूर होता है। समूह में हँसने से अधिक लाभ होता है। जब मनुष्य हँसता है तो वह कुछ पलों के लिए सबसे अलग हो जाता है। उसके विचारों की श्रृंखला टूट जाती है। एकाग्रता आती है। मन-मस्तिष्क खाली व हल्के होने लगते हैं।

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हँसाकर बीमारों का इलाज भी आसानी से होता है। बीमारी से राहत जल्दी मिलती है। जिनका मन, मस्तिष्क प्रफुल्लित होता है, उन्हें उतना ही जल्दी आराम मिलता है। स्वीडन के डॉ. लार्स लजुंगदहल ने एक नई हास्य चिकित्सा पद्धति मुस्कुरोपैथी शुरू की थी। इसके द्वारा शारीरिक, मानसिक अनेक बीमारियाँ ठीक होती हैं।

मुस्कुरोपैथी से सभी कार्य सफल होते हैं। आपके आसपास एक सकारात्मक वातावरण बनता है, इसलिए आज का नारा है- 'मुस्कराओ व स्वस्थ रहो।'

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