covid-19 महामारी ने इंसानों को अपने गिराबे में लेकर शारीरिक और मानसिक दोनों तरह से तोड़ दिया है। स्वस्थ इंसान कोविड की चपेट में आने के बाद को मोरबिडिटी बीमारियों का शिकार हो गया। अपनो को बेसमय खो दिया, तो किसी को आखिरी वक्त में कंधा भी नहीं दे सके और ना ही उन्हें आखिरी बार निहार सकें।
इस अदृश्य दुश्मन ने न जाने कितने बच्चे के सिर से माता-पिता का साया छीन लिया। अब तक रहे इस भयावह कोविड काल में जीवन में हताशा, निराशा, बेचैनी और खालीपन ने इंसान को अंदर से भी खोखला कर दिया। जब जीवन में पूर्ण रूप से निस्तेज और लैंग्विशिंग आने लगती है। इसे लैंग्विशिंग कहते हैं। एक ऐसी मन स्थिति में पहुंचना जब कुछ खाने या करने का मन नहीं करता हो, जीवन में बहुत अधिक सुस्ती छाई रहती है। जीवन में खालीपन बढ़ जाता है। अच्छे से अच्छे माहौल में भी लौ महसूस करते हैं। इस परिस्थिति से जल्द से जल्द छुटकारा पाना बहुत जरूरी होता है। अन्यथा मरीज एक बीमारी के साथ डिप्रेशन का भी शिकार हो जाता है।
10 फीसदी लोग खराब मूड से गुजरे
अप्रैल और जून 2020 के बीच 78 विभिन्न देशों के डेटा को देखने वाले एक अंतरराष्ट्रीय स्टडी में पाया कि 10 फीसदी लोगों ने महामारी के दौरान अपना मूड खराब महसूस किया। हालांकि हर व्यक्ति के उदासी का कारण अलग-अलग था। हालांकि अच्छी खबर यह भी है कि एक वक्त बाद यह सुस्ती खत्म हो जाती है। साथ ही मानसिक स्थिति से उबरने के लिए कई सारी गतिविधि जो की जा सकती है। और इससे उभरा जा सकता है।
भावनात्मक जुड़ाव जरूरी
स्टडी में सामने आया कि कई सारे उपाय है जिन्हें करके इस खालीपन को दूर किया जा सकता है। खासकर अपनों के साथ भावनात्मक रूप से जुड़े रहने पर खालीपन को दूर किया जा सकता है। इसके लिए लोगों के प्रति दयालुता दिखाएं। दूसरे के दुखी होने पर उनका साथ दें। कई बार प्रोफेशनल लाइफ में भी इसकी जरूरत पड़ सकती है। जी हां, ऐसे में अपने साथ की काम में मदद करके उनका काम आसान कर सकते हैं।
एंग्जाइटी आज के वक्त में सबसे बड़ी समस्या बन गई है। बदलती लाइफस्टाइल के साथ युवा वर्ग भी इसकी चपेट में तेजी से आ रहे हैं। जहां 40 से अधिक आयु के लोग बीमारी से जूझ रहे हैं वहीं 18 से 30 साल तक के युवा वर्ग सुसाइड को एंग्जाइटी का समाधान मान लेते हैं। अपनी हेल्थ को नजरअंदाज करने वाले इस बीमारी का सबसे अधिक शिकार हो रहे हैं। द लैंसेट जर्नल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में 2017 तक 19 करोड़ 73 लाख लोग मानसिक बीमारी से जूझ रहे हैं। मतलब कुल 15 फीसदी आबादी इस बीमारी का शिकार है। रिपोर्ट के मुताबिक 7 में से 1 भारतीय मानसिक रूप से बीमार है। जिसमें से 4 करोड़ 49 लाख एंग्जाइटी का शिकार है। लेकिन एक शोध में सामने आया है कि रोज व्यायाम करने से 60 फीसदी तक एंग्जाइटी का खतरा कम हो जाता है।
जर्नल फ्रंटियर साइकियाट्री में छपी रिपोर्ट में व्यायाम करने से एंग्जाइटी का खतरा टल जाता है। यह शोध 20 साल तक 4 लाख लोगों पर किया गया। स्वीडन की लुंड विश्वविद्यालय द्वारा यह शोध पूरा किया गया है। वहीं यूनिवर्सिटी डिपार्टमेंट ऑफ एक्सपेरिमेंटल मेडिकल साइंस में सामने आया कि 21 साल तक के वक्त तक एंग्जाइटी से संबंधित परेशानियां लगभग 60 फीसदी तक कम था। योग व्यक्ति को शारीरिक रूप से एक्टिव कर चिंता मुक्त करता है।
मानसिक रूप से स्वस्थ रखता है व्यायाम
जी हां, अगर आप सच में तनाव मुक्त रहना चाहते हैं तो डाइट में फाइबर की मात्रा बढ़ाएं साथ ही प्रतिदिन व्यायाम करें। उसे अपने जीवन का हिस्सा बना लें। आप किसी भी प्रकार का व्यायाम कर सकते हैं। अगर आप किसी प्रकार की मेडिसिन ले रहे हैं तो वह आपको आराम देगी लेकिन व्यायाम से तेजी से आराम मिलेगा। इसलिए रोज व्यायाम जरूर करें।