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भारतीयों के लिए कितनी फायदेमंद है Vegan Diet,वेजिटेरियन से कितनी अलग?

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सुरभि भटेवरा

पूरी दुनिया में वीगन डाइट को अपनाने वालों की संख्या अब बढ़ने लगी है। अमेरिका में एक रिसर्च के मुताबिक नॉनवेज लेने वालों के मुकाबले वीगन डाइट वालों के मुकाबले स्वस्थ होता है। ऐसे लोगों में दिल से संबंधित बीमारियों का खतरा भी कम होता है। यह आपके स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी बहुत फायदे का सौदा है। इस डाइट से वातावरण को प्रदूषित करने वाली ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन को कम करने में मदद मिलती है। क्योंकि दुनियाभर में हो रहे ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का एक चौथाई हिस्सा हमारे खाने की वजह से भी होता है।
 
डॉ. प्रीति शुक्ला, न्यूट्रिशनिस्ट ने बताया कि वीगन डाइट क्या होती है?
 
जिस तरह से वेजिटेरियन एक पॉप्युलेशन होती है उसी प्रकार वीगन डाइट फॉलो करने वालों की अलग ही पॉप्युलेशन है। वेजिटेरियन जानवरों से मिलने वाले प्राकृतिक खाद्य पदार्थों का सेवन करते हैं। वीगन वे हैं जो कोई भी एनिमल प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं करते हैं। एनिमल प्रोडक्ट जैसे, दूध, दही, घी और बटर।
 
वैज्ञानिक तौर पर इसका फायदा नहीं है यह सिर्फ एक विश्वास की बात है। जैन धर्म में भी इसे फॉलो किया जाता है।
 
वीगन डाइट के नुकसान -
 
- कैल्शियम की कमी होना।
- विटामिन डी की कमी
 
दूध से कैल्शियम मिलता है। दही में प्रोबायोटिक्स होते हैं जिससे गट फंक्शनिंग करने में आसानी होती है। पनीर हाई प्रोटीन का सोर्स है। वीगन डाइट फॉलो करने वाले सिर्फ पौधे से प्राप्त चीजे ही खाते हैं। पौधे युक्त पदार्थों में कैल्शियम नहीं होता है। बॉडी में कैल्शियम की कमी होने पर हड्डियों से जुड़ी समस्या होने लगती है। ऐसे में एनिमल प्रोडक्ट का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो भारतीय मसालों का सेवन करें। जैसे जीरा,अजवाइन जिसमें कैल्शियम होता है। हालांकि शाकाहारी और मांसाहारी दोनों तरह के लोगों में भी बोन फ्रेजिलिटी यानी हड्डियां का नाजुक होना देखा जाता है। घी और बटर ये दोनों सैचुरेटेड फैट्स है। शरीर को उनके करीब 7 फीसदी तक आवश्यकता रहती है।
 
ब्रेन का जो न्यूरॉन है उसकी बोरिंग ओमेगा-3, सैचुरेटेड फैट्स से बनी होती है। न्यूरोट्रांसमीटर में भी काम आता है। अगर घी-बटर का इस्तेमाल नहीं करते हैं तो नारियल तेल का सेवन करें, पीनट बटर खाएं। अगर आप लंबे वक्त तक इसे फॉलो करते हैं तो इसके दुष्प्रभाव क्या है उस पर भी ध्यान दें। ताकि बॉडी पर इसका उल्टा प्रभाव नहीं पड़ें।
 
कैल्शियम, विटामिन डी और ओमेगा-3 के सप्लीमेंट्स 

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नमक की कमी का असर आने वाले बच्चे पर पड़ता है
 
आयोडीन युक्त नमक छोड़कर अन्य नमक का सेवन कर रहे हैं। लेकिन इससे आने वाले बच्चे मंदबुद्धि हो सकते हैं। वीगन डाइट फॉलो करने वाले सी सॉल्ट नहीं खाते हैं। अनावश्यक रूप से आयोडीन नमक का सेवन करना चाहिए। वीगन युक्त लोगों को आयोडीन फोर्टिफाइड नमक का सेवन करना चाहिए।
 
दरअसल, भारतीय मसाले एंटीऑक्सीडेंट भी होते हैं और एंटी इंफ्लेमेटरी भी होते हैं और इम्युनिटी बूस्टर भी होते हैं। 
 
भारतीयों के लिए वीगन डाइट फॉलो करना कितना सही है?
 
इसमें कोई बुराई नहीं है लेकिन भारतीय मसालों का सेवन जरूर करें। इनमें कोई भी मसाले एनिमल ओरिजन का नहीं है, इसलिए मसालों का सेवन जरूर करें। भारतीयों को मसालों का सेवन तो करना चाहिए। वीगन डाइट वालों को कैल्शियम की आफत होती है इसलिए भारतीय मसालों में सप्लीमेंट के तौर पर वह मिल जाता है। 
 
वीगन शब्द कहा से आया और कैसे हुई वीगन डाइट की शुरुआत?
 
1 नवंबर 1944 में वीगन सोसायटी की स्थापना करने वाले डोनाल्ड वॉटसन ने वीगन शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया था। डोनाल्ड वॉटसन ऐसे शाकाहारी लोगों के खिलाफ थे जो डेयरी प्रोडक्ट का इस्तेमाल करते थे। उन्होंने वेजिटेरियन Vegetarian शब्दों के पहले तीन और अंतिम दो शब्दों को मिलाकर वेगन Vegan शब्द का निर्माण किया।
 
 
1. आशीष जैन (40) (IT Project Manager) ने बताया कि मैं पिछले 12 साल से विगन लाइफस्टाइल फॉलो कर रहा हूं और मेरी पत्नी भी। साथ ही मेरी 11 साल की बच्ची है वो भी वीगन लाइफस्टाइल ही फॉलो कर रही हैं। दरअसल, वीगन डाइट नहीं बल्कि वीगन लाइफस्टाइल होती है। वीगन लाइफस्टाइल ना केवल जानवरों के प्रति संवेदनशील व्यवहार के लिए प्रेरणा देती है, बल्कि बहुत ही स्वास्थ्य वर्धक और पर्यावरण के अनुकूल है। Vegan lifestyle अपना कर कई तरह के रोगों से बचा जा सकता है। वनस्पति आधारित भोजन अपनाने से लाइफ़स्टाइल डिजीज जैसे डायबिटीज, हार्ट डिसीज, कैंसर का खतरा बहुत कम हो जाता है। दूध और मांस में बहुत अधिक मात्रा में हार्मोन, कोलेस्ट्रॉल और एंटीबायोटिक होता है जो हमारे शरीर को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाता है। पशुपालन भविष्य में कोविड-19 से ज्यादा खतरनाक महामारी हो जैसे बर्ड फ्लू, स्वाइन फ्लू, mad cow का कारण बन सकता है।


लेकिन अगर आप दूध और उससे बने उत्पादों के शौकीन बन चुके हैं तो कितने वनस्पति आधारित विकल्प उपलब्ध है। बादाम और नारियल से दूध बनाया जा सकता है, मूंगफली के दूध से दही बना सकते, काजू और आलू से चीज बनाया जा सकता है।

2.मनीष जैन ने बताया कि मैं पेशे से CA हूं। मेरी आयु है 59 वर्ष। मेरी पत्नी डॉ. मीना जैन वे योग थेरेपिस्ट हैं। हम दोनों को वीगन लाइफस्टाइल फॉलो करते हुए 20 साल हो चुके हैं। वीगन डाइट में प्लांट आधारित फूड रहते हैं तो यह पूरी तरह से अल्कलाइन डाइट रहती है, जो आपकी बॉडी के लिए योग्य रहती है। इस डाइट को फॉलो करने से बहुत कम समस्या होती है, क्योंकि सबसे अधिक खतरा एनिमल प्रोटीन की वजह से होते हैं। जैसे दूध, पनीर, अंडा या चिकन इसके अलावा पेस्टीसाइड भी आपके शरीर में पहुंचते हैं। जब बॉडी में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है तो दूसरी बीमारियां शुरू होने लगती है। इस लाइफस्टाइल से मुझे व्यक्तिगत रूप से फायदा मिला। प्लांट बेस्ड डाइट से आपकी त्वचा, बाल, बॉडी को हर तरह से फायदा होता है।

इसके अंदर एक सबसे बड़ा फैक्टर होता है कैल्शियम जो आपको दूध से ही मिलता है। मैंने 20 साल में कैल्शियम का कोई सप्लीमेंट नहीं लिया है। अगर मुझे कैल्शियम की कमी होती तो शायद मेरी हड्डियां कमजोर हो जाती। जबकि उल्टा होता है कि डेयरी प्रोडक्ट्स लेने से हड्डियां कमजोर होती है। क्योंकि एनिमल प्रोटीन एसिडिक रहता है। जिस वजह से कैल्शियम नहीं बनता है, अंडा खाते हैं तो आयरन नहीं बनता है। आज की वक्त में डायटरी कोलेस्ट्रॉल से कोई फर्क नहीं पड़ता है। वहीं अपनी बॉडी भी कोलेस्ट्रॉल बनाती है। अगर अपनी बॉडी कोलेस्ट्रॉल नहीं बनाएंगी तो अपन मर जाएंगे।

अगर आप दूध पीते हैं या अंडा खाते हैं तो उससे थोड़ा बहुत ही कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है लेकिन नुकसान सैचुरेटेड फैट से हैं, या हाई प्रोटीन, घी और पनीर से हैं। सैचुरेटेड फैट और प्रोटीन से समस्या होती है। नारियल तेल में भी रहता है सैचुरेटेड फैट लेकिन वह नुकसान नहीं करता है। एनिमल प्रोडक्ट लॉन्ग चैन फैटी एसिड रहता है। इससे मोटापा भी बढ़ेगा और संक्रमण भी बढ़ेगा। इससे बॉडी को नुकसान होता है और वह अधिक कोलेस्ट्रॉल बनाने लगती है। कैल्शियम का सबसे अधिक रोल होता है लेकिन मैं और मेरी पत्नी हम डेयरी प्रोडक्ट नहीं खाते हैं। आप मूंगफली का तेल, तिल्ली का तेल खा सकते हैं यह प्लांट बेस्ड रहता है। अवाकोडा, नारियल, मूंगफली और बादाम खा सकते हैं।

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3. गिरीश शाह ने बताया कि मेरी उम्र 59 वर्ष की है और पिछले 7 साल से वीगन लाइफस्टाइल फॉलो कर रहा हूं। वीगन लाइफस्टाइल एथिकल स्टैंड है। अगर आप हॉस्पिटल में देखेंगे तो आपको पता चल जाएगा कि वीगन कितने हैं, वेजिटेरियन कितने और नॉन वेजिटेरियन कितने हैं। एथिकल रीजन यह है कि हम किसी को नुकसान पहुंचाकर रहना पसंद नहीं करते हैं। वीगन लाइफस्टाइल के लिए आप वेजिटेबल ऑयल का इस्तेमाल कर सकते है। वीगन लाइफस्टाइल फॉलो करते हैं तो प्लांट बेस्ड प्रोटीन रहता है। प्रोटीन की जरूरत 25 साल की उम्र तक होती है और एक्स्ट्रा प्रोटीन हमें दालों में, अनाज में मिल जाता है। इसके बाद प्रोटीन की बहुत अधिक जरूरत नहीं होती है अगर कोई खिलाड़ी या एथलीट ना हो तो। कैल्शियम के लिए आप चूना खा सकते हैं आपकी उससे पूर्ति हो सकती है।

पिछले 40 साल में कैंसर, हार्ट और डायबिटीज के मरीज तेजी से बढ़ रहे हैं। क्योंकि पिछले 40 सालों में एनिमल प्रोडक्ट की खपत तेजी से बढ़ी है। डेयरी प्रोडक्ट की वजह से महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर बढ़ गया है। अमेरिका के डॉक्टरों का एक संगठन है PCRM। उनका यह कहना है कि डेयरी प्रोडक्ट का सीधा लिंक ब्रेस्ट कैंसर और डायबिटीज से है। पनीर की जगह आप टोफू की सलाह दीजिए। क्योंकि प्लांट बेस्ड प्रोटीन एनिमल प्रोटीन से अधिक फायदेमंद है। दरअसल, इंसान की बॉडी भी कोलेस्ट्रॉल बनाती है और एनिमल प्रोडक्ट से भी कोलेस्ट्रॉल बढ़ता है ऐसे में आपकी बॉडी का कोलेस्ट्रॉल गड़बड़ा जाता है। और फिर बेड कोलेस्ट्रॉल से दिल की समस्या बढ़ती है। वीगन लाइफस्टाइल अच्छी सेहत के लिहाज से काफी अच्छी है।

डॉ भरत रावत, वरिष्ठ हृदय रोग और जीवन शैली विशेषज्ञ, मेदांता अस्पताल इंदौर, ने बताया कि मैं भी वीगन डाइट फॉलो करता हूं। लेकिन इसे प्लांट बेस्ड डाइट कहते हैं। इसमें बहुत सारी भ्रांतियां है और सबसे बड़ी भ्रांति प्रोटीन को लेकर है। किसी के पास कोई विकल्प नहीं है। अंत में वीगन लाइफस्टाइल सभी को अधिक से अधिक अपनाना पड़ेगा।क्रॉनिक डिजीज और इंफ्लेमेटरी डिजीज (संक्रमण) का सबसे बड़ा कारण है एनिमल प्रोडक्ट। इसमें कोई शंका नहीं है कि एनिमल प्रोडक्ट से हार्ट अटैक, ब्लड प्रेशर, डायबिटीज और कैंसर होता है। दरअसल, प्लांट बेस्ड डाइट को वेजिटेरियन डाइट समझ लिया जाता है। प्लांट बेस्ड डाइट में डेयरी प्रोडक्ट भी नहीं आते हैं। प्लांट बेस्ड डाइट को बहुत अधिक प्रोसेस्ड नहीं करना है। उसका मतलब यहीं है कि जो प्राकृतिक है उसे वैसा ही रहने दें। उसमें कम से कम बदलाव करें।

हमारी बॉडी का स्ट्रक्चर एनिमल फूड खाने के लिए बना ही नहीं है। हमारे पेट के गट के जो माइक्रोब्स होते हैं वे काफी युसफूल होते हैं। वे माइक्रोब्स की हेल्थ भी प्लांट बेस्ड डाइट से अच्छी बनती है और डेयरी प्रोडक्ट खराब होते हैं।

कैल्शियम और प्रोटीन को लेकर बहुत सारी भ्रांतिया है। हरी सब्जियों के अंदर कैल्शियम मौजूद होता है और ये कैल्शियम हमारी हड्डियों के लिए बहुत लाभदायक होता है। साथ ही अच्छी तरह से ये एब्जॉर्ब हो जाता है। वहीं एनिमल प्रोडक्ट्स में जो प्रोटीन होता है वे इस तरह के होते हैं कि हमारी बोन्स में से कैल्शियम को निकाल लेते हैं।
 
प्रोटीन - प्रोटीन आपको अंकुरित अनाज, और दाल में मिलता है।
 
वीगन लाइफस्टाइल से किसी प्रकार की कमजोरी नहीं होती है। बहुत सारे खिलाड़ी भी है जो शारीरिक परिश्रम करते हैं। वे भी वीगन लाइफस्टाइल फॉलो करते हैं।
 
इसमें कोई दो मत नहीं है कि वीगन लाइफस्टाइल में कोलेस्ट्रॉल नहीं होता है और कोलेस्ट्रॉल सिर्फ एनिमल डाइट में होता है। हार्ट अटैक, कोलेस्ट्रॉल, कैंसर का खतरा वीगन डाइट वालों को बहुत कम होता है। हमारा शरीर वीगन डाइट के लिए ही बना है। वीगन डाइट कम प्रोसेस्ड हो तभी इसका ज्यादा महत्व रहेगा। उसे प्राकृतिक ही रहने दें। उसे बहुत अधिक रिफाइंड नहीं करें, प्रोसेस्ड नहीं करें। आटा का मैदा बनाना, गन्ने का शुगर बनाना या एक ही तेल को बार-बार गर्म करते हैं तो ये सब हानिकारक है।
 
इसके अलावा वीगन डाइट का हमारी प्रकृति को सबसे बड़ा फायदा है जो हमारी इकोलॉजी है जिसमें बहुत सारी समस्या अब हम देख रहे हैं। जैसे - प्रदूषण हो रहा है, पानी की कमी होने वाली है, ये सभी समस्याएं वीगन डाइट से घटेगी। एनिमल प्रोडक्ट्स की वजह से बहुत सारा प्रदूषण भी होता है। 
 
Source : NCBI (National Center for Biotechnology Information) 2013 में The Permanente Journal में प्लांट बेस्ड डाइट पर शोध से परिणाम मिले की प्लांट बेस्ड डाइट की लागत सबसे कम होती है। इससे बॉडी मास इंडेक्स, ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम कर सकते हैं। साथ ही इस डाइट को फॉलो कर दिल की बीमारियों से होने वाली मौत के आंकड़ों को भी कम किया जा सकता है। स्वास्थ्य सुधार के लिए जरूरी दवाओं की मात्रा में भी कमी की जा सकती है। शोध में यह भी पाया गया कि चिकित्सकों को भी हाई बीपी, मधुमेह, हृदय रोग, मोटापे से ग्रस्त लोगों को प्लांट बेस्ड डाइट की सलाह के बारे में विचार करना चाहिए।

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Source : NCBI (National Center for Biotechnology Information) 2010 में द डायटेरी गाइडलाइंस एडवाइजरी कमेटी ने एक स्टडी की थी जिसमें पाया गया कि स्ट्रोक, हृदय रोग और अन्य बीमारियों से होने वाली मृत्यु दर को कम किया जा सकता है। प्लांट बेस्ड आधारित डाइट को फॉलो करने वाले वेजिटेरियन की तुलना में मृत्यु दर कम है।
 
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन द्वारा जर्नल में प्रकाशित किया गया कि जिन सोया प्रोडक्ट का सेवन करने वाली महिलाओं में करीब 32 फीसदी ब्रेस्ट कैंसर का रिस्क कम हुआ है। साथ ही 29 फीसदी मौत का जोखिम भी कम हुआ है।
 
अमेरिकन जर्नल ऑफ क्लीनिकल न्यूट्रीशन में 14 अध्ययन प्रकाशित हुए है। जिसमें देखा गया कि सोया प्रोडक्ट का इस्तेमाल करने वालों में 26 फीसदी प्रोस्टेट कैंसर का रिस्क घटा है। प्रोटीन का सबसे अच्छा सोर्स सोयाबीन है। जिसके सेवन से ब्लड में लिपोप्रोटीन का जोखिम कम होता है, हिप फ्रैक्चर का रिस्क कम होता है और कैंसर का जोखिम भी कम होता है।

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Source : NCBI (National Center for Biotechnology Information) The Permanente Journal में प्रकाशित शोध में पाया कि प्लांट बेस्ड डाइट से मोटापा, टाइप-2 डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, लिपिड डिसऑर्डर और हार्ट से जुड़ी बीमारियों का खतरा कम होता है। कोरोनरी आर्टरी डिजीज वालों को डेयरी प्रोडक्ट का सेवन कम करते हुए प्लांट बेस्ड डाइट शुरू करना चाहिए। मोटापा और मधुमेह के रोगियों के लिए यह फायदेमंद है। गुर्दे की बीमारी वाले लोगों को भी इसकी सलाह दी जाती है।
 
लेकिन थायराइड से ग्रसित मरीजों को थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है। उन्हें गोइट्रोजन और कच्ची क्रूस वाली सब्जी, शकरकंद और मकई का सेवन नहीं करना चाहिए। सब्जियों को पकाने के बाद गोइट्रोजन निष्क्रिय हो जाते हैं।

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