शहद का उचित मात्रा में उपयोग करने से शरीर स्वस्थ, सुंदर व स्फूर्तिवान बनता है।
शहद को घाव पर लगाने से घाव जल्दी भर जाते हैं।
शहद का पीएच मान 3 से 4.8 के बीच होने से जीवाणुरोधी गुण स्वतः ही पाया जाता है।
प्रातःकाल शौच से पूर्व शहद-नींबू पानी का सेवन करने से कब्ज दूर होता है, रक्त शुद्ध होता है और मोटापा कम होता है।
गर्भावस्था के दौरान स्त्रियों द्वारा शहद का सेवन करने से पैदा होने वाली संतान स्वस्थ एवं मानसिक दृष्टि से अन्य शिशुओं से श्रेष्ठ होती है।
त्वचा पर निखार लाने के लिए गुलाब जल, नींबू और शहद मिलाकर लगाना चाहिए।
गाजर के रस में शहद मिलाकर लेने से नेत्र-ज्योति में सुधार होता है।
उच्च रक्तचाप में लहसुन और शहद लेने से रक्तचाप सामान्य होता है।
त्वचा के जलने, कटने या छिलने पर भी शहद लगाने से लाभ मिलता है।
शुद्ध शहद की पहचान- कांच के एक साफ ग्लास में पानी भरकर उसमें शहद की एक बूंद टपकाएं, अगर शहद नीचे तली में बैठ जाए तो यह शुद्ध है और यदि तली में पहुंचने के पहले ही घुल जाए तो शहद अशुद्ध है। शुद्ध शहद में मक्खी गिरकर फंसती नहीं बल्कि फड़फड़ाकर उड़ जाती है।
शुद्ध शहद आंखों में लगाने पर थोड़ी जलन होगी, परंतु चिपचिपाहट नहीं होगी।
शुद्ध शहद कुत्ता सूंघकर छोड़ देगा, जबकि अशुद्ध को चाटने लगता है।
शुद्ध शहद का दाग कपड़ों पर नहीं लगता।
शुद्ध शहद दिखने में पारदर्शी होता है।
शीशे की प्लेट पर शहद टपकाने पर यदि उसकी आकृति सांप की कुंडली जैसी बन जाए तो शहद शुद्ध है।
नोट : गर्म करके अथवा गुड़, घी, शकर, मिश्री, तेल, मांस-मछली आदि के साथ शहद का सेवन नहीं करना चाहिए।