अक्टूबर-नवंबर के समय अश्विन व कार्तिक माह में शरद ऋतु की शुरुआत के साथ ही ठंड का आगाज हो जाता है। इस समय मौसम में परिवर्तन होता है जिसका असर आपकी सेहत पर भी पड़ता है। इस शरद काल में पित्त का प्रकोप अधिक होने से ज्वर, रक्तविकार, दाह, उल्टी, सिरदर्द, चक्कर आना, खट्टी डकारें, जलन, रक्त व कफ विकार, प्यास, कब्ज, अफरा, अपच, जुकाम, अरुचि आदि विकारों की आशंका होती है। खास तौर से पित्त प्रकृति के लोगों में इसके दुष्प्रभाव अधिक दिखाई देते हैं। इन समस्याओं से बचने के लिए जरूर जानिए इस मौसम में क्या खाएं क्या नहीं -
क्या खाएं -
1. हल्का भोजन करें ताकि आसानी से पाचन हो सके और पेट साफ होने में भी कठिनाई न हो। पेट साफ रखना हितकर है।
2. मधुर व शीतल, तिक्त (कड़वा नीम, करेला आदि) चावल, जौ का सेवन करना चाहिए।
3. करेला, परवल, तुरई, मैथी, लौकी, पालक, मूली, सिंघाड़ा, अंगूर, टमाटर, फलों का रस, सूखे मेवे व नारियल का प्रयोग करना चाहिए।
4. इलायची, मुनक्का, खजूर, घी का प्रयोग विशेष रूप से करना चाहिए।
5. त्रिफला चूर्ण, अमलतास का गूदा, छिल्के वाली दालें, मसालेरहित सब्जी गुनगुने पानी के साथ नींबू के रस का सेवन प्रात:काल व रात्रि में हरड़ का प्रयोग विशेष लाभदायक है।
6. तेल मालिश, व्यायाम तथा प्रात: भ्रमण, शीतल जल से स्नान करना चाहिए। हल्के वस्त्र धारण करें। रात्रि में चन्द्रमा की किरणों का सेवन करें। चंदन तथा मुल्तानी मिट्टी का लेप लाभदायक है।
क्या न खाएं -
1. मैदे से बनी हुई वस्तुएं, गरम, तीखा, भारी, मसालेदार तथा तेल में तले हुए खाद्य पदार्थों का उपयोग न करें।
2. दही व मछली का प्रयोग न करें। अमरूद को खाली पेट न खाएं। कंद शाक, वनस्पति घी, मूंगफली, भुट्टे, कच्ची ककड़ी, दही आदि का अधिक उपयोग न करें।
3. दिन में न सोएं। मुंह ढंककर न सोएं तथा धूप से बचें।