प्रथमेश व्यास
	दुनियाभर में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच एक नई बीमारी ने दस्तक दी है। कई यूरोपीय देशों में 'मंकीपॉक्स' नामक बीमारी का संक्रमण बढ़ता नजर आ रहा है। ब्रिटेन, कनाडा, पुर्तगाल, स्पेन और अमेरिका को मिलाकर पिछले 3 हफ्तों में अब तक मंकीपॉक्स के 50 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। अमरीकी स्वास्थ विभाग ने जानकारी दी है कि अमेरिका के मैसाचुएट्स में रहना वाला एक आदमी जो मंकीपॉक्स पॉजिटिव पाया गया है, वो कुछ दिनों पहले कनाडा से लौटा था।
 
									
			
			 
 			
 
 			
					
			        							
								
																	
	 
	राहत की बात ये है कि इस बीमारी से संक्रमित होने के कुछ हफ्तों बाद व्यक्ति अपने आप ठीक हो जाता है। गंभीर संक्रमण के मामले बहुत कम पाए गए है। फिर भी एक महीने के भीतर 5 से ज्यादा देशों से आए मंकीपॉक्स के मामलों ने चिंता बढ़ा दी है। इसलिए, विश्व स्वास्थ संगठन (WHO) ने मंकीपॉक्स के सम्बन्ध में गाइडलाइन्स जारी करते हुए कहा है कि  संदिग्ध या पुष्ट मंकीपॉक्स वायरस वाले रोगियों की देखभाल करने वाले या उनके नमूनों को संभालने वाले स्वास्थ्य कर्मियों को संक्रमण नियंत्रण सावधानियों का पालन करना चाहिए। 
 
									
										
								
																	
	 
	आइए जानते है कि क्या है मंकीपॉक्स, ये कैसे फैलता है, क्या है इसके लक्षण और कैसे रखे सावधानियां ?
 
									
											
									
			        							
								
																	
	 
	क्या है मंकीपॉक्स?
	मंकीपॉक्स एक दुर्लभ और हल्का संक्रमण है, जो आमतौर पर अफ्रीका के कुछ हिस्सों में संक्रमित जंगली जानवरों से पकड़ा जाता है। इसका वायरस पहली बार 1958 में रिसर्च के लिए रखे गए बंदरों में पाया गया था, इसलिए अमेरिका के सेंटर फॉर डिसीज कंट्रोल (CDC) के मुताबिक इसका नाम 'मंकीपॉक्स' रखा गया। इंसानों में इसके संक्रमण का पहला मामला 1970 में सामने आया था।
 
									
											
								
								
								
								
								
								
										
			        							
								
																	
	 
	ऐसा माना जाता है कि दुनिया में मंकीपॉक्स अफ्रीका से फैला है। 2003 से 2018 के बीच अमेरिका, ब्रिटैन, नाइजीरिया, सिंगापुर और इजराइल आदि देशों में इसके कई मामले देखने को मिले थे।  
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	कैसे फैलता है मंकीपॉक्स?
	आमतौर पर मंकीपॉक्स संक्रमित जानवरों के खून, शरीर का पसीना या मल-मूत्र आदि तरल पदार्थों के सीधे सम्पर्क में आने से फैलता है। गिलहरियों और चूहों में भी इसका संक्रमण पाया जा चुका है, इन जानवरों का अधपका मांस से उससे बने हुए उत्पादों के सेवन से भी संक्रमण का खतरा रहता है। संक्रमित इंसानों से इंसान में मंकीपॉक्स फैलने के बहुत कम मामले सामने आए है। लेकिन, संक्रमित व्यक्ति को छूने या उसके संपर्क में आने से इसके फैलने का खतरा बना रहता है। 
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	क्या हैं इसके लक्षण?
	यदि आप मंकीपॉक्स से संक्रमित हो जाते हैं, तो आमतौर पर प्राथमिक लक्षणों का असर दिखने में पांच से 21 दिनों के बीच का समय लगता है। इनमें बुखार, सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द, पीठ दर्द, ग्रंथियों में सूजन, कंपकंपी और थकावट शामिल हैं। इन लक्षणों का अनुभव करने के एक से पांच दिन बाद आमतौर पर दाने दिखाई देते हैं। ये दाने शुरुआत में खसरा या चेचक जैसे दिखते है। ये दाने संक्रमण के पहले और दूसरे हफ्ते में हाथ-पैर से लेकर पूरे शरीर पर फैल सकते हैं। अगर संक्रमण गंभीर नहीं होता, तो ये दाने खुद सूखकर गिर जाते हैं। 
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	इस बीमारी से किसको कितना खतरा?
	अमरीकी स्वास्थ्य मंत्रालय की हाल ही में जारी की गई रिपोर्ट की माने तो ये बीमारी ज्यादा गंभीर नहीं है, किन्तु इससे संक्रमित हर 10वें व्यक्ति की मौत हो सकती है। खासकर जंगली क्षेत्रों के आस-पास रहने वाले या जानवरों का अधपका मांस खाने वाले व्यक्तियों को इससे खतरा ज्यादा है। छोटे बच्चों को इससे ज्यादा खतरा हो सकता है। हालांकि, भारत में इसका एक भी मामला अभी तक सामने नहीं आया है लेकिन देश के शीर्ष स्वास्थ संगठनों और विशेषज्ञों द्वारा सावधानी बरतने के निर्देश दिए जा चुके हैं। 
 
									
			                     
							
							
			        							
								
																	
	 
	क्या है इसका इलाज?
	फिलहाल संक्रमण से बचाव ही इसका एकमात्र इलाज है। विश्व स्वास्थ संगठन के मुताबिक अभी तक इसका कोई ठोस इलाज दुनिया में उपलब्ध नहीं है। कहा जा रहा है कि चेचक में काम आने वाले वैक्सीन मंकीपॉक्स को रोकने में 80-85 प्रतिशत असरदार साबित हुई है। लेकिन, चेचक के खत्म होने के बाद से ये वैक्सीन भी बाजारों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है।