घर की चाहरदीवारी से बाहर कदम रखने के साथ भारतीय महिलाएं भले ही आज अपने हुनर एवं मेहनत से विभिन्न क्षेत्रों में अपनी जीत का जश्न मना रही हैं लेकिन उनका दिल हार रहा है।
ह्रदय रोग विशेषज्ञों का कहना है कि कामकाज के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी के कारण एक तरफ जहां महिलाएं आर्थिक, सामाजिक एवं पारिवारिक रूप से अधिक सक्षम हुई है लेकिन उनका दिल कमजोर पड़ गया है।
आज बदलती जीवन शैली और महिलाओं पर बढ़ते कामकाज के तनाव के कारण वह पहले की तुलना में तेजी से ह्रदय रोगों से घिर रही है और यही कारण है कि आज ह्रदय रोग महिलाओं के लिये पहले नम्बर का हत्यारा बन गया है।
जाने-माने ह्रदय रोग विशेषज्ञ, हार्ट इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. पुरुषोत्तम लाल बताते हैं कि दिल की बीमारियां भारत जैसे विकसित देशों में महिलाओं की मौत का प्रमुख कारण बन गई है।
महिलाओं को पहला दिल को दौरा पड़ने पर पुरुषों की तुलना में उनकी मौत होने की आशंका अधिक होती है और यदि वे बच भी जाती हैं तो उन्हें पुरुषों की तुलना में दूसरा दौरा पड़ने की संभावना अधिक होती है।
डॉ. लाल कहते हैं कि हर साल कोरोनरी धमनी रोगों सीएडी से पुरुषों की तुलना में महिलाओं की मौत अधिक होती है, इसके बावजूद महिलाओं को पुरुषों के समान चिकित्सा सुविधाएं नहीं मिलती हैं।
विभिन्न अध्ययनों के अनुसार कैंसर, तपेदिक, एचआईवीएडस और मलेरिया से जितनी महिलाओं की मौत होती है उससे अधिक महिलाओं की मौत ह्रदय वाहिका रोगों, सीवीडी से होती है। दरअसल ह्रदय रोग महिलाओं के लिए पहले नम्बर का हत्यारा है और यह हर मिनट एक महिला को मौत का ग्रास बनाता है। इसे ध्यान में रखते हुए इस साल विश्व ह्रदय रोग दिवस को महिलाओं एवं बच्चों पर केन्द्रित किया गया है और इसका उद्देश्य इस मिथ को दूर करना है कि ह्रदय रोग और स्ट्रोक मुख्य रूप से अधिक उम्र के पुरुषों को ही प्रभावित करते हैं।
ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ. आरएन कालरा बताते है कि पुरुषों मे ह्रदय रोग होने पर छाती में दर्द, जाड़े के साथ पसीना आने और आंखों के सामने संकट दिखने जैसे लक्षण उभरते हैं जबकि महिलाओं को या तो किसी तरह के दर्द नहीं होता और अगर दर्द होता भी है तो बिल्कुल अलग अंगों में होता है जैसे कोहनी, कंधे या जबड़े में दर्द होता है। महिलाओं को आम तौर पर ठंड के साथ पसीना नहीं आता है बल्कि उन्हें सांस फूलने और अत्यधिक थकान जैसी समस्याएं होती है, जिसकी आमतौर अनदेखी होती है क्योंकि महिलाएं वैसे भी इन समस्याओं से ग्रस्त रहती है।
यह आम धारणा है कि महिलाओं को एस्ट्रोजन हार्मोन उन्हें ह्रदय रोगों से बचाता है लेकिन इसके बावजूद तथ्य यह है कि दुनिया भर में ह्रदय रोगों के जितने मामले होते हैं उनमें से 15 प्रतिशत मामले भारतीय महिलाओं के होते हैं।
दुनिया भर में 86 लाख महिलाओं की मौत हृदय संबंधी रोगों से होती है और इस तरह से महिलाओं में एक तिहाई मौतें इन्हीं रोगों से होती है। लेकिन इसके बावजूद कार्डियोलॉजी को पुरुषों का क्षेत्र माना जाता है।
डॉ. पुरुषोत्तम लाल कहते हैं कि भारतीय महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही ह्रदय रोगों का खतरा होता है क्योकि महिलाओं के मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसे रोगों की चपेट में आने के खतरे ज्यादा होते हैं। पुरुषों की तुलना में महिलाओं की कोरोनरी धमनियां संकरी होती है ओर जिसके कारण उन्हें धमनियों में अवरोध आने की समस्या अधिक होती है।
डॉ. कालरा के अनुसार पुरुषों की तुलना में महिलाओं को एकमात्र लाभ एस्ट्रोजेन हार्मोन के रूप में मिलता है। जो महिलाओं के शरीर में अच्छे कोलेस्ट्रॉल के स्तर को ऊपर उठाता है तथा खराब कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करता है।
लेकिन रजोनिवृति के बाद एस्ट्रोजन का स्तर घट जाता है और इसलिए इससे मिलने वाली सुरक्षा भी कम हो जाती है और रजोनिवृति के दस साल बाद महिलाओं को पुरुषों के बराबर ही ह्रदय रोगों का खतरा होता है।