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जानिए 'जहरीली' सिगरेट का इतिहास

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तंबाकू निषेध दिवस

सिगरेट बनाने की मशीन का विकास 1750 से 1800 ईस्वी के बीच हुआ। सिगरेट बनाने की पहली मशीन एक मिनट में लगभग 200 सिगरेट बनाती थी जबकि वर्तमान की मशीन एक मिनट में 9000 सिगरेट बना देती है। कम उत्पादन लागत और सिगरेट के उपयोग के विज्ञापनों ने तंबाकू कंपनियों के लिए इस दौरान मार्केट को मजबूत किया।



धूम्रपान से होने वाली बीमारियों को देखते हुए किसी भी तंबाकू कंपनी के खिलाफ पहला केस बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में लगाया गया था।

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क्या कहता है 2003 का कानून ( 1 मई 2004 से प्रभावी)

2003 में भारत सरकार ने एक अधिनियम पारित किया था, जिसके तहत ये कहा था-

* कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान नहीं करेगा। इनमें सभागृह, भवनों, रेलवे स्टेशन, पुस्तकालय, अस्पताल, रेस्तराँ, कोर्ट, स्कूल, कॉलेज आदि आते हैं।

* सार्वजनिक स्थलों पर भारतीय भाषाओं में बड़े अक्षरों में गैर-धूम्रपान क्षेत्र के बोर्ड लगाए जाएँ।

* सिगरेट और तंबाकू उत्पादों का विज्ञापन नहीं किया जाएगा।

* तीस कमरों के होटल या तीस से अधिक लोगों के बैठने की रेस्तराँ में मालिक या मैनेजर ये तय करें कि धूम्रपान व गैर-धूम्रपान क्षेत्र अलग हों। लोगों को गैर-धूम्रपान क्षेत्र में जाने के लिए धूम्रपान वाले इलाके से न गुजरना पड़े।

* तंबाकू एवं अन्य तंबाकू उत्पाद- गुटखा, खैनी, जर्दा, तंबाकू वाले मसाले, बीड़ी, सिगरेट, हुक्का, चुरट, सिगार, नसवार 18 साल से कम के लोगों के लिए प्रतिबंधित है।

* समय-समय पर इन नियमों में सुधार किए जाते रहे हैं। जैसे आजकल सभी सार्वजनिक स्थलों पर धूम्रपान निषेध है। विडंबना यही है कि कानून से अधिक कानून तोड़ने वाले प्रभावी है। जब तक नियमों का सख्ती से पालन नहीं करवाया जाता इस समस्या से मुक्ति असंभव है।

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