डॉ. एसएम होलकर
धूम्रपान की लत हमेशा मानसिक निर्भरता की श्रेणी में आती है। शारीरिक निर्भरता नहीं होने के कारण इससे आसानी से मुक्ति भी पाई जा सकती है। कई लोग धूम्रपान की मानसिक गुलामी के इस कदर शिकार हो जाते हैं कि शारीरिक नुकसान उठाने के बाद भी मरते दम तक धूम्रपान नहीं छोड़ते।
धूम्रपान की लत का गुलाम बनाने के लिए सिगरेट या बी़ड़ी के दो दिन तक लगाए हुए कश ही काफी हैं। धुएं के पहले कश से कड़वापन व अटपटापन पहली बार सभी को लगता है फिर भी अपने से बड़ों की नकल या अनुकरण करने का लालच नहीं छूटता। दो-तीन दिन तक थोड़ी-थोड़ी करके मुंह को लगने वाली सिगरेट या बीड़ी कई बार मरते दम तक नहीं छूटती।
आमतौर पर धूम्रपान और गुटखे की लत किशोरावस्था में ही जकड़ती है। इस उम्र में अपने स्वभाव पर साथियों का बहुत असर पड़ता है। कई किशोर 'एकाग्रता' हासिल करने के लिए धूम्रपान करते हैं तो कई सिर्फ टाइम पास या मनोरंजन की खातिर धुएँ और गुटखे को जिगर तक उतार लेते हैं।
विज्ञापनों ने फैलाया जहर
धूम्रपान का व्यापार विज्ञापनों के दम पर चलता है। वे किशोरों और युवाओं को भ्रमित करने वाले उत्पादों के विज्ञापनों से बाजार पाट देते हैं। लो टार सिगरेट, निकोटीन फिल्टर सिगरेट, हर्बल सिगरेट या हर्बल हुक्का के विज्ञापन भ्रम पैदा करते हैं। हुक्का इन दिनों युवाओं में बहुत लोकप्रिय हो रहा है। अमेरिका में हुए एक अध्ययन से मालूम हुआ है कि हुक्का सिगरेट से अधिक घातक है। हुक्के की एक बैठक में 100 सिगरेट के बराबर धुआं फेफड़ों में जाता है।
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हुक्के में बहुत अधिक मात्रा में धुआं फेफड़ों में चला जाता है। कोई सिगरेट हर्बल नहीं होती क्योंकि धुआं चाहे जिस माध्यम से आ रहा है वह फेफड़ों के लिए नुकसानदायक होता है। फेफड़ों को केवल शुद्ध ऑक्सीजन चाहिए इसके अलावा कुछ नहीं।
कानून नहीं जागरूकता चाहिए
धूम्रपान निषेध कानून का पालन शहरी इलाकों में कराया जा सकता है, लेकिन हमारे देश में अब भी 80 प्रतिशत आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है। गांवों में कानून के जरिए तंबाकू सेवन अथवा धूम्रपान पर अंकुश लगाने के साथ-साथ जागरूकता की जरूरत है। केवल कानून पर्याप्त नहीं है। इसके लिए तंबाकू से होने वाले नुकसान के प्रति नित नई जानकारी बार-बार प्रचारित की जाना चाहिए।
क्या हो सकती है समस्या
धूम्रपान से स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान असीमित हैं लेकिन इससे एक भी फायदा नहीं है। अध्ययनों से पता चला है कि तंबाकू में जहरीले रसायनों का भंडार है। इससे कैंसर, श्वसन रोग, पेट रोग, दिल की बीमारियाँ, लकवा, गैंग्रीन, बर्जर्स डिसीज आदि कई बीमारियाँ होती हैं। कुछ लोग दूसरों के उदाहरणों से सबक हासिल कर इस लत को छोड़ देते हैं।
मेरे करियर में एक 25 वर्षीय युवा मरीज ऐसा था जिसका एक पैर धूम्रपान की लत के कारण काटना पड़ा था। इसे बर्जर्स डिसीज के कारण गैंगरीन हो गया था। इस मरीज ने धूम्रपान की लत से तौबा नहीं की और कुछ अर्से बाद दूसरा पैर भी काटने की नौबत आ गई। आमतौर पर देखा यह गया है कि धूम्रपान करने वाले 70-80 प्रतिशत किसी न किसी बीमारी के चुंगल में फँसते ही इसे छोड़ देते हैं।
कठिन नहीं है तंबाकू छोड़ना
तंबाकू की लत छोड़ना बहुत कठिन नहीं है। तंबाकू का किसी भी रूप में त्याग करने के 10-15 दिन अथवा एक महीने तक नियंत्रित रहने की जरूरत होती है। (समाप्त)