दिल्ली के नरेला इलाके में गैराज के अंदर खड़ी कार में हुई जूनियर इंजीनियर दिनेश की मौत जहरीली गैस के कारण हुई थी। बंद जगह पर खड़ी कार का लंबे समय तक एयरकंडीशन चालू रहने से उसमें कार्बन मोनोआक्साइड गैस बन गई थी। यह गैस साइलेंट किलर होती है। इसके असर से इंसान का पूरा शरीर निढाल हो जाता है। लेकिन दिमाग सक्रियता से काम करता रहता है। इसका शिकार व्यक्ति हर बात सोच समझ रहा होता है। लेकिन उसमें इतना भी दम नहीं रहता कि वह हाथ भी उठा पाए। इस गैस का शिकार बने व्यक्ति के शरीर पर चेरी रंग के धब्बे बन जाते हैं।
पुलिस के एक आला अधिकारी ने बताया कि दिनेश दोपहर 3 बजे घर से निकला था। स्वतंत्र नगर से उसने अपनी प्रेमिका को कार में बिठाया। अंधेरा होते ही शाम 7 बजे के आस-पास वह वापस गैराज में आ गया था। कार खड़ी करने के बाद उसने गैराज का शटर बंद कर दिया। गर्मी से बचने के लिए उसने कार का एसी चालू रखा होगा। गैराज का शटर बंद होने की बात दिनेश के पिता ने भी बताई है। कार में दोनों आपत्तिजनक हालत में पाए गए थे। दोनों के कपड़े भी अस्त-व्यस्त हालत में मिले थे।
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फोरेंसिक विशेषज्ञों के मुताबिक कार खड़ी करने के बाद गैराज में दो बातें हुई होंगी। एक तो कार का इंजन चालू होने के कारण गैराज में पेट्रोल जलने का धुआँ भर गया होगा। दूसरे लंबे समय तक कार के शीशे बंद होने से कार के अंदर कार्बन मोनोऑक्साइड गैस बननी शुरू हो गई होगी। यह गैस कार के एग्जास्ट सिस्टम को ऑक्सीजन न मिलने के कारण बननी शुरू हो जाती है। ऐसा खड़ी कार के एग्जॉस्ट बंद हो जाने के कारण होता है। जिससे कार के अंदर बनने वाली गैस बाहर नही निकल पाती।
कार्बन मोनोआक्साइड गैस हवा से भी हल्की होती है। यह गैस 240 गुणा तेजी से इंसानी फेंफड़ों में जाती है। शरीर में जाने के बाद तेजी से रक्त कोशिकाओं में हीमोग्लोबिन में मिल जाती है। जिस कारण जल्दी ही पूरा शरीर निष्क्रिय हो जाता है।