Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia
Advertiesment

चुम्बक की प्रयोग विधियाँ

हमें फॉलो करें चुम्बक की प्रयोग विधियाँ
NDND
भिन्न-भिन्न चिकित्सकों ने अपने-अपने प्रयोगों और अनुभवों के आधार पर विविध पद्धतियाँ विकसित की हैं। प्रत्येक पद्धति से रोग निवारण में सफलता प्राप्त हुई है। अब तक के प्रयोगों द्वारा यह सिद्ध हो चुका है कि चुम्बकों का उपयोग किसी भी तरह से किया जाए, उसका असर तो पूरे शरीर पर होता है, साथ ही इस चिकित्सा का कोई दुष्परिणाम नहीं होता। चुम्बक प्रयोग विधि के दो मुख्य प्रकार हैं- 1. किसी भी एक अर्थात्‌ उत्तर या दक्षिण ध्रुव का उपयोग अथवा 2. दोनों ध्रुवों के एक साथ उपयोग, अर्थात्‌ सार्वदैहिक प्रयोग।

सार्वदैहिक चिकित्सा में दोनों ध्रुवों के सिद्धांतानुसार चुम्बक लगाने के पाँच तरीके हैं-

इन दोनों विधियों के विषय में अधिक विचार करने से पहले प्रत्येक ध्रुव के गुणधर्मों को जान लेना आवश्यक है।

दक्षिणी ध्रुव के गुण-धर्म

1. दक्षिणी ध्रुव में अवरोधक एवं वेग को मंद करने वाली शक्ति निहित है।

2. यह ठंडक और शांति प्रदान करता है।

3. यदि इस ध्रुव को कुछ देर तक सादे पानी में रखा जाए तो पानी की क्षारीयता बढ़ती है, अर्थात्‌ दक्षिणी ध्रुव अम्लता कम करता है।

4. इसमें संकोचन करने का गुण है।

5. यह सूक्ष्म केशवाहिनियों में रक्त परिभ्रमण की गति को मंद करता है।

6. यह संक्रमण को नियंत्रित और सूजन को कम करता है।

7. यह फोड़े-गाँठ आदि के विकास को रोकता है और उसे नियंत्रित करता है।

8. दक्षिणी ध्रुव के चुम्बकीय क्षेत्र में रखे हुए फल, साग-भाजी, दूध आदि लंबे समय तक ताजा रहते हैं।

संक्रमण और सूजन में दक्षिणी ध्रुव उपयोगी सिद्ध होता है। चर्मरोग, संधि स्थलों के रोग, सूक्ष्म जीवाणुओं द्वारा फैलते हुए सक्रमण, गाँठों, मानसिक अशांति, मूर्च्छा, आँखों की खामियाँ, आँखों के रोग, ज्ञानतंतु के दर्द, अनिद्रा आदि में दक्षिणी ध्रुव लाभप्रद है।

उत्तरी ध्रुव के गुणधर्म

उत्तरी ध्रुव में दक्षिणी ध्रुव की अपेक्षा विपरीत गुण होते हैं।

1. वह गर्मी और शक्ति प्रदान करता है तथा शरीर की क्रियाओं को उत्तेजित करता है।

2. इस ध्रुव को थोड़ी देर पानी में रखने के बाद यदि पीएच डिटेक्टर के द्वारा पानी का परीक्षण किया जाए तो वह अम्लीय मालूम पड़ता है। इस प्रकार यह क्षारीयता (प्रति अम्लता) कम करता है।

3. यह क्षेत्र बढ़ाता है।

4. यह सूक्ष्म केशवाहिनियों के रक्त परिभ्रमण में वेग लाता है।

5. यह संक्रमण को बढ़ाता है, क्योंकि जीवाणुओं को भी वह शक्ति और गर्मी देता है। यह सूजन बढ़ाता है।

6. सामान्य और कैंसर की गाँठ के कोषों को भी यह उत्तेजित करता है। अतः गाँठ बढ़ती है अथवा पककर फूट जाती है।

7. उत्तरी ध्रुव के चुम्बकीय क्षेत्र में रखे हुए फल जल्दी से पकते हैं। साग-भाजी थोड़े समय में सड़ने लगती है और दूध खट्टा होने लगता है।

उत्तरी ध्रुव में उत्तेजना, शक्ति और गर्मी देने वाले गुण-धर्म होने से वह पक्षाघात, अंत्रवृद्धि- हर्निया, त्वचा के सफेद दाग, एलोपेसिआ (सिर के केशरहित चकत्ते), स्नायविक कमजोरी, सामान्य और बीमारी के बाद की कमजोरी, मूर्च्छा रोग इत्यादि में उपयोगी सिद्ध होता है।

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi