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प्राकृतिक चिकित्सा का प्रभाव

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हमें फॉलो करें योग स्वमूत्र चिकित्सा मक्खन मिश्री
-डॉ.रश्मिकान्त व्या

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चिकित्सा केवल दवाई से होनी चाहिए यह बात प्राचीन मान्यता के खिलाफ ही है। औषधि तो हमारी जीवन शक्ति (रेजिस्टेंस पॉवर) को कम ही करती है। योग, प्राणायाम, स्वमूत्र चिकित्सा, मक्खन, मिश्री (धागेवाली), तुकमरी मिश्री (अत्तारवालों के पास उपलब्ध होती है), धातु-सोना, चाँदी, ताँबा तथा लोहे के पानी से सूर्य-रश्मि चिकित्सा पद्धति (रंगीन शीशियों के तेल एवं पानी से), लौंग तथा मिश्री से चिकित्सा- ऐसे अनेक सरलतम साधन हैं, जिनसे बिना दवाई के हमारे शरीर का उपचार हो सकता है।

आज भी गौमूत्र चिकित्सा, अंकुरित चने-मूँग तथा मैथी दाने भोजन में लेने से, अधिक पानी पीने से आदि ये सभी ऐसे प्रयोग हैं, जिनसे यथाशीघ्र ही लाभ होता है। एक-एक गमले में एक-एक मुठ्ठी गेहूँ एक-एक दिन छोड़कर सात गमलों में जुआरे बोए जाएँ। इन जुआरों के रस से टी.बी., कैंसर जैसी बीमारियों को भी दबाया जा सकता है।

इसी प्रकार हमारे ऋषि-मुनियों ने रत्नों से भी कई बीमारियों के उपचार ज्योतिष शास्त्र में बताए हैं। ये हमारे देश की ज्योतिष विद्या का एक अद्भुत चमत्कार ही है।

रत्नों में प्रमुख 9 ग्रह के ये रत्न प्रमुख हैं : सूर्य- माणिक, चंद्र-मोती, मंगल- मूँगा, बुध- पन्ना, गुरु- पुखराज, शुक्र- हीरा, शनि-नीलम, राहू- लहसुनिया, केतु- लाजावत। मेष, सिंह व धनु राशि वाले कोई भी नग पहनें तो चाँदी में पहनना जरूरी है, क्योंकि चाँदी की तासीर ठंडी है। इसी प्रकार कर्क, वृश्चिक, मीन, कुंभ इन राशि वालों को सोने में नग धारण करना चाहिए तथा मंगल का नग ताँबे में धारण करना चाहिए, क्योंकि इन धातुओं की तासीर गरम है तथा राशियों की तासीर ठंडी है। इसके कारण इन तासीर वालों को जो शीत विकार होते हैं, उनको जल्दी ही लाभ होगा। यदि शुद्ध रत्न खरीदने का सामर्थ्य नहीं हो तो उनकी जगह धातु को पानी अथवा तेल में उबाल कर एक लीटर पानी को उबालकर 250 ग्राम करके उस पानी को पीना भी लाभ देगा तथा उसके इसी प्रकार के तैयार किए हुए तेल से मालिश भी विशेष लाभप्रद सिद्ध होगी।

स्वास्थ्य उत्तम रखने के लिए यदि सामर्थ्य हो तो 12 महीने शरीर पर मालिश करके स्नान करना चाहिए अन्यथा शीत ऋतु में मालिश का सर्वाधिक महत्व है। धातु का लाभ 50 प्रतिशत होगा, रत्नों का लाभ शत-प्रतिशत होगा।

ग्रहों के कारण होने वाली बीमारिया

सूर्य : हड्डी संबंधी विकार, शारीरिक तेज, आत्मबल की कमी, पेट विकार। इसकी शांति हेतु गुड़-रोटी का दान तथा प्रातःकाल स्नान के बाद सूर्य को जलधारा और नमस्कार करने से सूर्य के विकार शांत होते हैं। (नमस्कारः प्रिय भानु)-सुभाषित रत्नाकर (6/ 46)

चंद्र : मानसिक रोग, रक्त विकार, मन चंचल होने से एक निर्णय का अभाव, चंद्र के कारण समुद्र में ज्वार-भाटा होते हैं और हमारे रक्त में भी वही तत्व है, जो समुद्र के पानी में है। इसी कारण मानसिक व्याधियों से पीड़ित व्यक्ति अक्सर अमावस्या व पूर्णिमा को अधिक तकलीफ में होते हैं।

बुध : चर्म विकार, ब्रेन हेमरेज, स्मरण शक्ति संबंधी विकार।

मंगल : रक्त विकार, सिरदर्द, आधाशीशी, साहस की कमी। कायरता, रक्त-चर्म विकार, उष्णता (गर्मी अन्य रोग), सेप्टिक होना, सूजन आना, ऑपरेशन होना।

गुरु : लीवर (यकृत) और विवेकजन्य परेशानियाँ, अति चर्बी बढ़ना।

शुक्र : वीर्य संबंधी विकार, गुप्त विकार, मधुमेह, प्रमेह, नपुंसकता, आदि रोग।

शनि : मानसिक अवसाद, खून की कमी, नर्वस ब्रेकडाउन, जोड़ों का दर्द, वायु विकार, लकवा, टी.बी., कैंसर आदि (काले घोड़े की नाल का छल्ला या नाव के लंगर का छल्ला भी पहनना शनि के विकार में लाभप्रद रहता है।)

राहू : कमर के ऊपरी भाग के रोग, बड़े ऑपरेशन, सर्प-बिच्छू आदि के विष विकार।

केतु : कमर के नीचे के भाग के विकार, आग, बिजली, गोली लगने के बाद के विकार, उष्णताजन्य (गर्मी) विकार, धूप, लू के विकार, हीमोग्लोबिन कम होना।

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