आँख का सबसे सामने वाला पारदर्शी काँच जैसा हिस्सा कार्निया कहलाता है। कार्निया की पारदर्शिता (सफाई) एवं उसके आकार (गोलाई) पर हमारी नजर की सफाई एवं पैनापन निर्भर करता है। प्रकाश की किरणें कार्निया से होते हुए आँख में प्रवेश करती है और लैंस से होते हुए अंत में रेटिना (पर्दे) पर फोकस होती है। कार्निया की सतह पर आँसू एक महीन परत बनाकर रहते हैं और उसके पोषण के तत्व प्रदान करते हैं। कार्निया में अतिसूक्ष्म नसें (नर्व) होती हैं और वे इसे शरीर का सबसे संवेदनशील अंग बनाती हैं।
कार्निया की सेहत बाहरी कारण जैसे प्रदूषण, कम्प्यूटर का इस्तेमाल इत्यादि से लेकर अंदरूनी बीमारियाँ जैसे गठिया, कई प्रकार के एलर्जी इत्यादि से प्रभावित हो सकती है। कार्निया पर इन्फेक्शन से अल्सर बन सकता है। मोतियाबिंद या अन्य ऑपरेशन के दौरान कार्निया के अंदरूनी सेल्स नष्ट होने की अवस्था में पारदर्शिता एवं नजर कम हो जाती है। केरेटोकोनस ऐसी बीमारी है जिसमें कार्निया की पारदर्शिता तो सही रहती है, पर उसका आकार गोलाकार की बजाय कोणाकार हो जाता है। आँख में आँसू की कमी में कार्निया की कुदरती चमक व पारदर्शिता कम हो सकती है।
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नेत्र रोग विशेषज्ञ या कार्निया विशेषज्ञ कार्निया की बीमारियों के निदान के लिए कई प्रकार की जाँच कर सकते हैं। स्लिट लैंप एक माइक्रोस्कोप की तरह होता है जिसके इस्तेमाल द्वारा बारीक त्रुटियाँ भी देखी जा सकती हैं। केरेटोमेट्री, टोपोग्राफी एवं पेकीमेट्री कार्निया के आकार एवं मोटाई की जानकारी प्रदान करते हैं। कार्निया के जटिल इन्फेक्शन (अल्सर) में उस पर से सेम्पल लेकर कल्चर द्वारा कीटाणुओं का सही पता लगाया जा सकता है।
अत्याधुनिक तकनीक द्वारा कीटाणु के डीएनए की भी जाँच कर उसको पहचाना जा सकता है। शरीर में विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ, जो कार्निया पर दुष्प्रभाव डाल सकती हैं, की जाँच कराई जाती है। स्पेकुलर माइक्रोस्कोप द्वारा कार्निया के पिछले भाग के सेल्स देखे व गिने जा सकते हैं।
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अल्सर का इलाज जाँच में पाए गए कीटाणु के अनुसार किया जाता है। अल्सर के भर जाने के बाद सफेदी रह जाती है और अगर यह नजर पर असर करती है तो शल्यक्रिया की जाती है। कार्निया के बदलने की प्रक्रिया को नेत्र प्रत्यारोपण कहा जाता है। केरेटोकोनस में कार्निया का आगे का हिस्सा बदला जाता है और इसे कार्नियल ट्रांसप्लांट कहा जाता है।
इसी प्रकार मोतियाबिंद ऑपरेशन पश्चात सेल्स के कम या खत्म होने पर कार्निया का सिर्फ पीछे का हिस्सा बदला जा सकता है। इसे पोस्टीरियर या एंडोथीनियल ट्रांसप्लांट कहते हैं। यह एक अत्यंत जटिल शल्यक्रिया है और इसे कार्नियल सर्जन ही करते हैं। कोणाकार कार्निया या केरेटोकोनस में कार्निया की परतों को सुदृढ़ या मजबूत बनाने के लिए विटामिन बी और खास तरह के प्रकाश से इलाज किया जाता है जिसे सी-3 आर या कहते हैं।
कार्निया में एमनियोटिक मेम्ब्रेन (नवजात शिशु के नाल की झिल्ली) का प्रयोग भी किया जाता है। चूने या एसिड से जलने के बाद एमनियोटिक मेम्ब्रेन के साथ स्टेम सेल थैरेपी की जरूरत पड़ सकती है। नाखूना होने पर कार्नियल सर्जन उसे निकालकर दूसरी साफ चमड़ी लगाकर उसके दुबारा होने को रोक सकते हैं। चश्मा उतारने वाले ऑपरेशन, जिसे लेसिक कहा जाता है, भी कार्निया की शल्यक्रिया है।
कार्नियल सर्जन इसमें एक परत को उठाकर लेजर द्वारा आकार बदलकर नंबर घटा सकते हैं। कार्नियल सर्जन इस शल्यक्रिया के पहले मरीज में जाँचों द्वारा सुनिश्चित करते हैं कि यह उसके लिए सुरक्षित है। यह जाँच हर उस मरीज को करानी चाहिए जो इस प्रकार की शल्यक्रिया के बारे में विचार बना रहा है।
नेत्रदान में आँख का सिर्फ कार्निया या उसके पास का सफेद हिस्सा प्रत्यारोपित किया जाता है। परदा प्रत्यारोपण विधि अभी विकसित नहीं हुई है। कार्निया ट्रांसप्लांट के लिए किसी मृत व्यक्ति की स्वच्छ कार्निया का इस्तेमाल किया जाता है। आप ऐसे होने में मदद कर सकते हैं। मृत्यु होने की अवस्था में अपने प्रिय व्यक्ति की आँख दान कीजिए। कोई भी व्यक्ति, स्त्री अथवा पुरुष, किसी धर्म, जाति का हो, नेत्रदान कर सकता है। चाहे उन्होंने नेत्रदान की घोषणा की हो या नहीं।
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मृत्यु के छः घंटे के अंदर आँखें ली जानी चाहिए, इसलिए नजदीक के नेत्र बैंक या कार्नियल सर्जन को सूचना देने में देर मत कीजिए। नेत्र बैंक का कर्मचारी डॉक्टर या प्रशिक्षित तकनीशियन के साथ दानकर्ता के घर आता है और आँख एवं रक्त का सेम्पल ले लेता है। इससे चेहरे पर कोई विकृति नहीं आती। यह एक निःशुल्क सेवा है। नेत्र बैंक पहुँचने के बाद आँख के कार्निया की जाँच की जाती है और जितनी जल्दी संभव हो, इसके इस्तेमाल के लिए कार्नियल सर्जन के पास भेज दिया जाता है।
कार्निया की बीमारियाँ
इंफेक्शन : अल्सर (बैक्टीरिया, फंगस या वायरस द्वारा)
चोट के कारण सफेदी : चोट नुकीली चीज या एसिड या चूने जैसे केमिकल द्वारा।
ऑपरेशन पश्चात : मोतियाबिंद एवं अन्य नेत्र शल्यक्रिया के कॉम्प्लीकेशन पश्चात।
शारीरिक बीमारी के कारण : गठिया, ड्राय आई, एलर्जी, लकवा इत्यादि।