आज हमारे आसपास ऐसे अनेक उदाहरण हैं, जिन्हें हम देखते हैं और देखकर भूल जाते हैं। मसलन मैंने अपनी दवाइयाँ कहाँ रख दी हैं, कल कौन से मेहमान आए थे, क्या तुमने मुझे बाजार से कुछ लाने को कहा था, शायद मैं कुछ भूल रहा हूँ, पर क्या भूल रहा हूँ यह भी याद नहीं आ रहा। ऐसी अनेक बातें हमें सुनाई देती हैं और कई बार तो हमारे साथ घटती भी हैं, जिन्हें हम नजरअंदाज कर देते हैं। अगर युवा अवस्था में किसी के साथ ऐसा हो तो सोचते हैं कि हो सकता है वह भूल गया हो या लापरवाह हो, अगर किसी के साथ बुढ़ापे में हो तो कहा जाता है कि उम्र का दोष है। जबकि यह दोष न तो उम्र का है और न ही लापरवाही का। यह कसूर है उस बीमारी का जिसे अल्जाइमर या डिमेन्शिया अवस्था कहते हैं।अल्जाइमर बीमारी से आज देश-विदेश में अनेक लोग पीड़ित हैं। यह रोग मस्तिष्क से संबंधित है। इसके कारण मस्तिष्क की अनेक ज्ञान तंतु वाली कोशिकाएँ निष्क्रिय हो जाती हैं। यह याद रखने और स्पष्टता से सोचने की योग्यता पर असर डालता है। डिमेन्शिया वह अवस्था है, जिसमें मानसिक योग्यताएँ, विशेषकर याददाश्त कम हो जाती है। जिन कामों और बातों को याद रखने में व्यक्ति पहले सामर्थवान था अब वे ही बातें वह भूलने लगता है। व्यक्ति गाड़ी चलाने, भोजन करने या शब्द बोलने में भी परेशानी महसूस करने लगता है। अधिक काम होने से वह घबरा भी जाता है। |
मैंने अपनी दवाइयाँ कहाँ रख दी हैं, कल कौन से मेहमान आए थे, क्या तुमने मुझे बाजार से कुछ लाने को कहा था, शायद मैं कुछ भूल रहा हूँ, पर क्या भूल रहा हूँ यह भी याद नहीं आ रहा। ऐसी अनेक बातें हमें सुनाई देती हैं और कई बार तो हमारे साथ घटती भी हैं। |
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* 80 वर्षीय रामलाल कोई भी वस्तु रखकर भूल जाते हैं। चार दिन पहले उन्होंने कौनसी चीज कहाँ रखी है, यह बात उन्हें याद नहीं रहती जबकि 20 साल पुरानी बात आज भी उन्हें याद है। कहीं कोई जरूरी बात भूल न जाएँ इसलिए वे जरूरी बातें लिखने लगे हैं।
* एक बार शर्मा की मम्मी चलते हुए गिर गईं। उसके बाद से उन्हें कोई भी बात याद रखने में परेशानी होने लगी। कुछ समय तक तो परिवार उनकी इस भूलने की आदत को नाटक, सठियाना जैसे शब्दों से ढँकता रहा पर अब उन्हें लगता है कि वह गलत थे।
इस संबंध में डॉ. अपूर्व पौराणिक बताते हैं यह बीमारी वैसे तो 60 साल से अधिक उम्र के लोगों को होती है पर अब यह युवाओं को भी होने लगी है। युवाओं में यह अनुवांशिक कारणों से होती है और इसका प्रतिशत भी बहुत कम है जबकि बुजुर्गों में यह प्रायः देखी जाती है। आज भी भारत के उन क्षेत्रों में यह समस्या कम है, जहाँ ग्रामीण परिवेश है। इसका कारण तनाव न होना और संतुलित आहार है।
उन्होंने कहा कि इस बीमारी का कोई अंत नहीं है। हाँ इस पर काबू जरूर पाया जा सकता है। यदि इस पर काबू पाना है तो उच्च शिक्षा देना, हरी-लाल सब्जियाँ, अंकुरित अनाज, दूध और दूध से बने पदार्थ, सोयाबीन तथा मछली खाना श्रेष्ठ होता है। दवाइयों से भी इसका अंत नहीं किया जा सकता।
यह समस्या 60 साल की उम्र के बाद बढ़ती जाती है और हर पाँच साल बाद यह दोगुनी गति से असर दिखाती है। 80 साल की उम्र होने पर यह करीब 32 प्रतिशत तक बढ़ जाती है।
इस बीमारी को दूर करने के लिए अभी शोध जारी है। इसमें यदि दवाइयों और टीकों की खोज की जा रही है तो अन्य उपाय भी निकाले जा रहे हैं। इसे रोकने के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से सक्रिय रहना, सामान्य ब्लडप्रेशर बनाए रखना, ज्ञान को बढ़ाते रहने का प्रयास करना, आहार-विहार पर ध्यान देना और धूम्रपान आदि को त्यागना चाहिए।